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मां बिंदुवासिनी करती हैं सबकी मुरादें पूरी

राजमहल की पहाड़ी पर बरहड़वा स्टेशन से दो किलोमीटर का सफर पैदल या सड़क मार्ग से तय कर पहुंचा जा सकता है बिदुधाम स्थित मां बिदुवासिनी के मंदिर तक।

By Edited By: Published: Fri, 26 Oct 2012 02:42 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2012 02:42 PM (IST)

साहिबगंज। राजमहल की पहाड़ी पर बरहड़वा स्टेशन से दो किलोमीटर का सफर पैदल या सड़क मार्ग से तय कर पहुंचा जा सकता है बिदुधाम स्थित मां बिदुवासिनी के मंदिर तक। मां दर्शन करने आने वाले भक्तों की मुरादें पूरी करती है। नवरात्र में दूर-दराज के भक्त आकर मां के आगे माथा टेकते हैं और मनोवांछित फल पाते हैं। ऐतिहासिक मान्यता के मुताबिक जब भगवान भोले नाथ क्रोधित होकर मां सती के शव के साथ तांडव नृत्य कर रहे थे तो सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिया। धरती पर जहां जहां सती के कटे अंग गिरे सभी शक्तिपीठ बन गए। इसी क्रम में सती का तीन बुंद रक्त यहां आकर गिरा तभी से यह स्थान त्रि-बिंदु शक्तिपीठ बन गया है। बिंदुधाम में तीन पिंडियों की पूजा तभी से की जाती है। कालांतर में बिंदुधाम में हरिहरानंद गिरी नामक पहाड़ी बाबा के प्रयास से भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। मंदिर के मुख्य पुजारी गंगा बाबा ने बताया कि हरिहरानंद गिरी पहाड़ी बाबा ने मंदिर को समूचे देश में ख्याति दिलाने का कार्य किया है। यह स्थान पौराणिक आख्यान समेटे हुए है। पर्यटन विभाग भी इस मंदिर के विकास पर तथा पर्यटन स्थल बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है।

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पौराणिक कथा के अनुसार हनुमानजी जब हिमालय से संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे तो इस पहाड़ी की चोटी पर उन्होंने अपना एक पग धरा था। एक बड़ा शिला खंड पर उनके तलवे के आकार का गढ्डा आज भी बना हुआ है। इस चोटी पर अब हनुमान जी की 35 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है जो सालों भर आकर्षण का केंद्र बनी रहती है। बिंदुवासिनी मंदिर के यज्ञ शाला के पीछे खुदाई में सम्राट अशोक के राज चिन्ह के साथ नर कंकाल व कुछ मुहरें बरामद हुई थी जिन्हें पुरातत्व विभाग को सौंपा गया है। जब यह मंदिर घनघोर जंगलों से आच्छादित था और एक साल वृक्ष के नीचे मां बिंदुवासिनी की तीन पिंडियां विद्यमान थी। पहाड़ों पर रहने वाले आदिम जन जाति के लोग भी यहां पर पूजा करते थे। आज भी ये मंदिर में पूजा करते हैं।

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