चिकित्सक भी हैं सूर्यदेव
मान्यता है कि सूर्यदेव की रश्मियों में है सभी रोगों की चिकित्सा का गुण..
मान्यता है कि माघ मास की शुक्लपक्ष सप्तमी के दिन सूर्यदेव प्रत्यक्ष होकर प्रकाशमान हुए थे। ग्रंथों के अनुसार, सूर्यदेव की उपासना से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है तथा आरोग्यता प्राप्त होती है। इसीलिए यह तिथि आरोग्य सप्तमी के नाम से जानी जाती है।
शरीरम् व्याधिमंदिरम् के अनुसार मानव-शरीर में रोग होना स्वाभाविक है। सूर्य की आरोग्यदायिनी शक्ति को सबसे पहले भारतीय ऋषि-मुनियों ने ही पहचाना। सूर्य की रोगनाशक शक्ति का परिचय अथर्ववेद (6-83-1) में देते हुए उनकी किरणों को औषधि बताया गया है। अथर्ववेद में ही सर्वप्रथम सूर्य की रश्मियों से विभिन्न रोगों की चिकित्सा का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ। उपवेद आयुर्वेद में सूर्य-चिकित्सा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
आरोग्यदायिनी सूर्य-रश्मियां
पाश्चात्य वैज्ञानिकों नेगहन अनुसंधान करके यह तथ्य सत्य पाया है कि सूर्य को आरोग्यदाता मानने की भारतीय विचारधारा पूर्णत: सही है। सूर्य में सात रंग समाहित होने के सिद्धांत की खोज का दावा भले ही पाश्चात्य भौतिक विज्ञानी करते हों, लेकिन यह तथ्य हजारों वर्ष पूर्व भारतीय मनीषियों ने जान लिया था। तभी तो उन्होंने भगवान सूर्यनारायण के रथ में सात घोड़े जुते होने वाले ध्यान का उपदेश दिया। सूर्यदेव के रथ में सप्त अश्व सप्त रश्मियां होने का ही द्योतक हैं। सूर्य चिकित्सा के अनुसार, जब शरीर में किसी रंग की कमी होती है, तब देह में उस रंग से संबंधित रोग उत्पन्न होता है। तब उस रंग की बोतल में जल भरकर कुछ दिन सूर्य की रोशनी में रखा जाता है। मान्यता है कि जल उस रंग की रश्मि के गुणों को ग्रहण कर लेता है और औषधि बन जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा की यह पद्धति क्रोमो थेरेपी कहलाती है। पाश्चात्य देशों में लोग सनबाथ (सूर्य-स्नान) करने के लिए समय निकालते हैं। पाश्चात्य विद्वान डॉ. सोले ने भी कहा है, सूर्य में जितनी रोगनाशक शक्ति है, उतनी संसार के किसी अन्य श्चोत में नहीं।
सूर्योपासना भी है चिकित्सा
शास्त्रों व पुराणों में सूर्योपासना के लाभ बताए गए हैं। सूर्य-नमस्कार को योगियों ने व्यायाम का स्वरूप दे दिया। वाल्मीकि रामायण में रावण पर विजय प्राप्त करने से पूर्व श्रीराम द्वारा सूर्योपासना किए जाने का विवरण मिलता है। श्रीकृष्ण और जांबवती के पुत्र साम्ब ने दुर्वासा ऋषि के शाप से हुए कुष्ठ रोग से मुक्ति सूर्यदेव के पूजन से ही प्राप्त की थी। महाराजा हर्षवर्द्धन के दरबार के सुप्रसिद्ध कवि मयूरभ जब कुष्ठ रोग से पीडि़त हुए, तब उन्होंने सूर्यशतकम् की रचना करके सौ श्लोकों से सूर्य की स्तुति की, जिसके फलस्वरूप वे रोग-मुक्त हो गए।
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