कुंभ नगरी में गरमाई सियासत
धर्म संसद की बैठक में नरेंद्र मोदी का नाम गूंजने के बाद भक्ति व अध्यात्म में डूबी कुंभनगरी में अब मोदी पर सियासी चर्चा और गहरी हो गई है। विहिप का कैंप जहां पहले से ही मोदी के स्वागत की तैयारी में लगा है वहीं आम आदमी को भी मोदी का इंतजार है।
कुंभनगर- धर्म संसद की बैठक में नरेंद्र मोदी का नाम गूंजने के बाद भक्ति व अध्यात्म में डूबी कुंभनगरी में अब मोदी पर सियासी चर्चा और गहरी हो गई है। विहिप का कैंप जहां पहले से ही मोदी के स्वागत की तैयारी में लगा है वहीं आम आदमी को भी मोदी का इंतजार है।
कुंभ में गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी 12 को आ रहे हैं। उनका स्नान का भी कार्यक्त्रम है। इस खबर के बाद से कुंभ में आए संतों के बीच सियासी बहस छिड़ गई है। संतों ने धर्म संसद में मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की मांग कर इसे और धार दे दी, जबकि विश्र्र्व हिंदू परिषद सीधे तौर पर मोदी के किसी कार्यक्त्रम को लेकर अब भी अपने को तटस्थ बनाए हुए है। पर, विहिप के अंदरखाने से जो बात निकलकर सामने आ रही है उससे साफ है उसके कैंप में मोदी को लेकर रणनीति तैयार की जा रही है। निर्णय इस बात पर होना है कि मोदी का स्वागत विहिप के बैनर तले हो या फिर संतों के माध्यम से मात्र औपचारिक रखा जाए। इस बीच यह बात भी सामने आई है कि मोदी कई संतों के कैंप में दर्शन के लिए जाएंगे। इसी बीच संत उनसे उनकी भावी भूमिका और हिंदू हित पर चर्चा करेंगे। फिलहाल मोदी के कार्यक्त्रम को लेकर धर्म नगरी का सियासी रूप क्या होगा, यह तो बाद की बात है, लेकिन उनके नाम की चर्चा अब आम लोगों के बीच में भी होने लगी है। दुकानों और प्रतिष्ठानों में भी जहां कहीं थोड़ा बहुत चिंतन सियासत के करीब है वहां मोदी के परख की तैयारी पर बहस हो रही है। बहस को हाल ही में अधोक्षजानंद के बयान से भी बल मिला है, जिसमें उन्होंने मोदी की यात्रा का विरोध करते हुए गुजरात में मारे गए हिंदुओं के मामले को मुद्दा बना उनके पिंडदान का कार्यक्त्रम तय किया है। हालांकि उनके इस बयान पर किसी बड़े संत की कोई प्रतिक्त्रिया नहीं आई है, लेकिन नमो नाम की गूंज बढ़ जरूर गई है।
रामगोपाल के बयान पर बिफरे-
संगम तीरे बैठी विश्र्र्व हिंदू परिषद में भले ही राम मंदिर को लेकर हिंदुओं को एकजुट करने का प्रस्ताव पास हुआ हो, परंतु राजनीतिक दल इसे महत्व नहीं दे रहे। कांग्रेस ने धर्म संसद को महत्व न देने की बात कही। इससे एक कदम आगे बढ़कर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के महासचिव एवं सांसद प्रो. रामगोपाल यादव ने यहां तक कह दिया कि धर्म संसद में कोई संत नहीं था। रामगोपाल के बयान पर विहिप के साथ संतों ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की। धर्म संसद में शिरकत करने वाले काशीसुमेरुपीठाधीश्र्र्वर स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा रामगोपाल जैसे नेता का काम बैठक, भोजन और ठगी करना है। जबकि मन, वाणी व कर्म में एकरूपता संत का लक्षण है। वह इससे कभी डिगते नहीं, संतों ने जो निर्णय लिया है उसे पूरा करके दिखाएंगे।
मामला यहीं नहीं थमा, श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने रामगोपाल के बयान को भारत धर्म, संस्कृति को बदनाम करने का षड़यंत्र बताया। कहा कि रामभक्तों पर गोली चलवाने वाले हमें बताएंगे कि संत कौन हैं, हमने जो ठाना है उसे पूरा करके रहेंगे। संतों को किसी नेताओं के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। संत उन्हें जल्द ही अपनी शक्ति का एहसास कराएंगे। स्वामी रामानंदाचार्य ने कहा कि रामगोपाल जैसे वोटर लोभी नेताओं के कारण ही हिंदुओं का अस्तित्व समाप्त होने के कगार में पहुंच गया है। उन्हें संतों की जानकारी चाहिए तो वह हमारे शिविर में आकर देखें। महामंडलेश्र्र्वर स्वामी विश्र्र्ववेश्र्र्वरानंद ने रामगोपाल के बयान को संत समाज का अपमान बताया, साथ ही उनसे अतिशीघ्र संतों से माफी मांगने की मांग की।
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