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गंगा के आंचल पर किरणों की रंगोली

सुबहे बनारस यानी दीदार उस नायाब नजारे का जो आंखों के रास्ते दिल तक उतर जाए और निहारने वाले को ताउम्र के लिए दीवाना कर जाए।

By Edited By: Published: Wed, 02 May 2012 04:08 PM (IST)Updated: Wed, 02 May 2012 04:08 PM (IST)
गंगा के आंचल पर किरणों की रंगोली

बनारस। सुबहे बनारस यानी दीदार उस नायाब नजारे का जो आंखों के रास्ते दिल तक उतर जाए और निहारने वाले को ताउम्र के लिए दीवाना कर जाए। दरअसल इस नजारे को बेनजीर बनाने में कुदरत के करिश्मे के अलावा बहुत कुछ अंशदान है बनारस के पथरीले घाटों पर हर रोज जीवंत होने वाले वाले उस माहौल का भी जो देखने वाले को एक अनूठे अहसास के मायापाश में बांध लेता है। सच कहें तो राग -विराग दोनों के ही साक्षात्कार के इस रोमांचक अनुभव का नाम ही सुबहे बनारस है। दप-दप करती आरती की लौ के साथ घंटे-घरियालों की घन-घन और शंखनाद की गूंज के बीच सूरज की पहली किरण का आगमन यहां सिर्फ एक घटना नहीं नित्य का एक उत्सव है। एक ऐसा उत्सव जिसमें शामिल होना बनारस के नेमीजनों के लिए एक संस्कार की तरह है। यही कारण है कि जाड़ा- गर्मी या बरसात हो इस नजारे के मुरीद हो चुके लोग हजारों की संख्या में बनारस के घाटों पर जुटते हैं और रोजाना के इस रंगोत्सव के साक्षी के रूप में अपने हस्ताक्षर दर्ज कराते हैं। बहाना गंगा स्नान का हो, दर्शन-पूजन का हो या फिर हो आवारगी से बंधी टहलान का। इंद्र धनुषी रंगों के इस विहंगम कोलॉज के अलग-अलग टुकड़ों को अगर नजदीक से निहारने की कोशिश करें तो पहली तस्वीर बनती है उदित होते सूर्य की अरुणिम आभा के गंगा की लहरों के साथ अठखेलियों की। सुर्ख रंगत से रंगी गंगा के अप्रतिम सौंदर्य को निखारने वाला यह दृश्य तब और भी पुरनूर हो जाता है जब इसके स्वागत में मंदिरों के घंटे बज उठते हैं और शंखनाद की गुरुगंभीर ध्वनि से पूरे माहौल में एक अजब सा रुहानी अहसास उतरता चला जाता है। घाटों पर सुबहे बनारस के अलौकिक नजारे का गवाह बनने को आतुर देश-दुनिया से चल कर आये सैलानियों के कैमरों के फ्लैश जब तक विराम लेते हैं तब तक पूरबी क्षितिज पर तस्वीर बदल चुकी होती है। अब आंखों के सामने होता है सुनहरे रंगों का सैलाब गंगा के उजले आंचल पर रंगोलिया सजाता,नाथों के नाथ विश्वनाथ की नगरी के सम्मान में मंगल गीत गाता। देखते ही देखते यह सुनहरी चादर गंगा की लहरों को पार करती घाटों की सीढि़यों को फलांगती घाट किनारे की अट्टालिकाओ को सुनहरे रंगों में नहलाती शहर की सड़कों की ओर बढ़ती चली जाती है। यह होता है चरम प्रकृति और बनारस की जीवंतता की युगलबंदी से रची गई रंग सर्जना का। पीछे छूट जाती हैं सद्य: स्नाता सी खिली-खिली एक खूबसूरत सुबह हर खासो आम को ताजगी और नई उर्जा का उपहार बांटती। इस बेनजीर नजारे की खूबसूरती को बांहों में समटने के लोगों के अलग-अलग अंदाज भी हैं। कोई इन दृश्यों को अपनी श्रद्धा से जोड़ सूरज को जल चढ़ा रहा होता है तो कोई कैमरे की आंखों से इस खूबसूरत नजारे को जिंदगी की यादगारों की सूची में दर्ज करने को आतुर। किसी की कोशिश कैनवास पर रंगों में डूबी कूंची से इस नजारे को अमर बना देने की। यकीनन सुबहे बनारस के हुस्न का जादू ही रहा होगा जिसने सदियों पहले काशी में टहलान मारने आए मिंया गालिब को यह लिखने को मजबूर कर दिया होगा- त-आलअल्लाह बनारस चश्मे-ए- बददूर बिहिश्त-ए-खुर्रम-ओ-फिरदौस-ए-मामूर यानी (बनारस एक हरा-भरा सुंदर स्वर्ग है, अल्लाह इसे बद नजर से बचाय ).आमीन.।

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