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भारत ने बहुत कुछ खोया, अब सब बदलने का समय है

आस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज डीन जोन्स के मुताबिक यदि भारत को फिर से क्रिकेट जगत में नंबर एक बनना है तो उसे तेज गेंदबाजों और बल्लेबाजों का ऐसा समूह तैयार करना होगा जिन्हें तीनों प्रारूप में खेलने की महारत हासिल हो।

By Edited By: Published: Sat, 21 Jan 2012 12:23 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jan 2012 12:23 AM (IST)
भारत ने बहुत कुछ खोया, अब सब बदलने का समय है

एडिलेड। आस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज डीन जोन्स के मुताबिक यदि भारत को फिर से क्रिकेट जगत में नंबर एक बनना है तो उसे तेज गेंदबाजों और बल्लेबाजों का ऐसा समूह तैयार करना होगा जिन्हें तीनों प्रारूप में खेलने की महारत हासिल हो।

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भारत अभी चार मैच की सीरीज में आस्ट्रेलिया से 0-3 से पीछे चल रहा है। इनमें से कोई भी मैच पांच दिन तक नहीं चला और यहां तक कि पर्थ में तीसरा टेस्ट मैच तो ढाई दिन में ही समाप्त हो गया। जोन्स ने कहा, यह भारतीय टीम सम्मान के लिए तरस गई है लेकिन जिस तरह से भारत आगे बढ़ रहा है उसकी टीम ने सम्मान से भी ज्यादा गंवाया है। भारतीय थके हुए और मैदान पर बहुत धीमे दिख रहे हैं। उन्हें अपने महान खिलाडि़यों के सहारे आगे बढ़ना छोड़कर भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। जोन्स ने कहा, भारतीयों के लिए 13 महीने काफी कड़े रहे। उन्होंने 16 टेस्ट और 38 एकदिवसीय मैच के अलावा चार ट्वंटी-20 तथा कई आईपीएल मैच खेले। भारत ने विश्व कप जीता लेकिन विदेशों में उसे करारी हार मिली। यदि भारत खेल के सभी प्रारूपों में दुनिया की नंबर एक टीम बनना चाहता है तो उसे तेज गेंदबाजों और बल्लेबाजों का अच्छा समूह तैयार करना होगा जो सभी प्रारूप में महारत रखते हों।

जोन्स ने कहा कि टीमों का आकलन उनके पुछल्ले बल्लेबाजों के प्रदर्शन से पता चलता है और भारतीय निचला क्रम बेहद कमजोर दिखता है। जोन्स ने कहा, भारतीय निचला क्रम इतना दुर्बल लगता है कि उसे देखकर हंसी आती है। उन्हें जिस तरह से वहां होना चाहिए वे वैसा नहीं दिखते हैं तथा वे अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तैयार भी नहीं दिखते हैं। सीनियरों के मामले में भारत को कुछ कड़े फैसले करने होंगे। भारत को सीनियर खिलाडि़यों को अलविदा कहकर थोड़ा दुख सहना पड़ेगा। या फिर कुछ सीनियर खिलाड़ी खेल के एक प्रारूप के विशेषज्ञ बन जाएं। अब समय आ गया है जबकि सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, जहीर खान और वीवीएस लक्ष्मण को तय कर लेना चाहिए कि वे खेल के किस प्रारूप में खेलना चाहते हैं। इस क्रिकेटिया माहौल में 34 साल से अधिक उम्र के खिलाडि़यों पर काम का भार बहुत अधिक है। उन्हें फैसला करना होगा और विशेषज्ञ के रूप में शुरुआत करनी होगी।

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