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महिलाओं के प्रति बदल रही है दुनिया

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में अपने कार्यों से समाज को परिचित कराते हुए महिलाएं दे रही हैं सशक्तिकरण का संदेश। सशक्तिकरण के पैरोकार बनकर पुरुष भी खड़े हैं महिलाओं के साथ...

By Srishti VermaEdited By: Published: Fri, 03 Mar 2017 04:24 PM (IST)Updated: Tue, 07 Mar 2017 11:54 AM (IST)
महिलाओं के प्रति बदल रही है दुनिया
महिलाओं के प्रति बदल रही है दुनिया

रोज मने महिला दिवस
मिथिला पारकर
'गर्ल इन द सिटी' सीजन 2 में मीरा सहगल का किरदार निभाने वाली मिथिला पारकर कहती हैं, 'मुझे नहीं लगता कि महिला दिवस मनाने के लिए हमें किसी दिन की आवश्यकता है। मेरे हिसाब से हर दिन महिला दिवस है। यह दुखद है कि हम अभी भी महिला सशक्तिकरण के मुद्दे से जूझ रहे हैं। जिस दिन हम लैंगिक समानता हासिल करेंगे उसी दिन इस पर बहस बंद होगी। हमें इस अवधारणा से निकलना होगा कि महिलाएं कमजोर हैं। हमें अपनी क्षमता पर खुद यकीन करना होगा। आज तकनीकी, विज्ञान, सिनेमा, फैशन समेत शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र अछूता हो जहां महिलाओं का वर्चस्व न हो। मेरी मेंटर तोरल शाह मेरी प्रेरणा हैं। वह अपने पांच पार्टनर के साथ थिएटर कंपनी संचालित करती हैं। उसमें वह एकमात्र महिला हैं। मेरे शो में भी मेरा किरदार शहर में नया आया है। मायानगरी में अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रतिकूल हालातों से जूझ रही है। कई बार यह बातें भी लोगों को प्रेरणा दे जाती हैं। वहां से उनमें सपनों को साकार करने का जज्बा पनपता है।

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बेहतर समाज की सुध दिलाता है
शाल्मली खोलगड़े


'बलम पिचकारी...' जैसे हिट गाने वाली गायिका शाल्मली खोलगड़े कहती हैं, 'मेरे हिसाब से महिला दिवस यह याद दिलाता है कि हम बेहतर समाज के निर्माण में मदद करें, जहां लैंगिक भेदभाव न हो। वह दिन जब हममें से हर कोई लड़की के सपनों को तवच्जो देगा, लैंगिक भेदभाव नहीं होगा और दोनों के योगदान को बराबरी का दर्जा देगा। तब इस दिन की आवश्यकता महसूस नहीं होगी। बहरहाल, मुझे नहीं लगता कि महिला दिवस मनाने के लिए खास दिन की आवश्यकता है। मेरे लिए हर दिन महिला दिवस होता है। मेरे लिए महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं के लिए ऐसा मौहाल बनाना है जहां वे अपने फैसले खुद ले सकें। उन्हें अपना मनपसंद काम करने की आजादी हो। उन्हें फैसला लेते समय समाज की बंदिशों के बारे में न सोचना पड़े। उन्हेंं लैंगिक आधार पर बने घिटे-पिटे सामाजिक नियमों को मानने के लिए मजबूर न होना पड़े। तभी समाज में बदलाव आएगा। इस महिला दिवस पर मेरी कोशिश ढेरों महिलाओं से मिलने की होगी। मेरा उन्हें संदेश होगा कि वे समाज के हाथ की कठपुतली न बनें। अपने फैसले लेने से भयभीत न हों। महिला होने के कारण अपने सपनों को तिलांजलि न दें। मेरा पहला इंडिपेंडेंट सांग भी यही संदेश देता है।

महिलाओं का अपना वजूद है
सुरभि ज्योति, अभिनेत्री


हम स्कूल में महिला दिवस मनाया करते थे। उस दिन हम कविता पाठ या प्रेरक कथन पढ़ा करते थे। मेरे लिए हर वह महिला प्रेरणादायक रही है जिसने विषम परिस्थितियों से जूझने के बावजूद उपलब्धियां हासिल की हैं। महिला दिवस यह अहसास कराता है कि महिलाओं का अपना वजूद है। साथ ही इस तथ्य की ओर भी ध्यान इंगित कराता है कि हम कहीं पर पिछड़े हुए हैं। यह दुखद है कि हमें महिला सशक्तिकरण को साबित करना पड़ता है। हम सशक्त हैं। इससे सभी को वाकिफ होना चाहिए। हमें ऐसा समाज विकसित करने की आवश्यकता है जहां महिलाओं को अपने अधिकारों की लड़ाई लडऩे की आवश्यकता महसूस न हो। उन्हें बराबरी का दर्जा मिले। जहां तक समाज में बदलाव की बात है यह निर्भर करता है कि आप अपने बच्चों की परवरिश कैसे कर रहे हैं। अगर लड़कियों को सचेत रहना सिखाया जाता है तो लड़कों को भी मर्यादा में रहना बताना चाहिए। हमारे यहां लड़के-लड़कियों की परवरिश में ही भेदभाव होता है। असल समस्या वहीं से शुरू होती है। उन्हें अच्छा इंसान बनना और दूसरों से अच्छा बर्ताव करना सिखाना चाहिए। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि दोनों समान हैं। शिक्षा प्रणाली में भी इसका समावेश होना चाहिए। मुझे लगता है कि समाज में बदलाव की दिशा में टीवी और सिनेमा बदलाव ला सकते हैं। वे प्रभावी और बड़ा माध्यम हैं। हर कोई इनसे जुड़ा होता है। वैसे हम लोग भिन्न-भिन्न शो के माध्यम से संदेश प्रेषित करते रहते हैं।

महिला सशक्तिकरण का पैरोकार हूं
असित मोदी, निर्माता


तारक मेहता का उल्टा चश्मा के निर्माता असित मोदी कहते हैं, 'मैं हमेशा से महिला सशक्तिकरण का पैरोकार रहा हूं। उसे अपने शो के माध्यम से दर्शाया भी है। दयाबेन, अंजलि भाभी, बबिता सभी सशक्त किरदार हैं। नारी पुरुष से तनिक भी कमतर नहीं है। शास्त्रों में भी कहा गया है जहां नारी का अपमान होता है वहां सुख और समृद्धि नहीं आती है। नारी ही संसार का सृजन करती है। वह जननी है। मेरे प्रोडक्शन हाउस का नाम भी मेरी पत्नी नीला के नाम पर है। मैंने हमेशा कहा है कि जिस समाज में महिलाओं की इज्जत होती है वहां हमेशा खुशियां बिखरी होती है। मैं महिला दिवस को मनाने से ज्यादा प्रतिदिन अपनी बेटी को ढेर सारा प्यार देकर इस अहसास को सेलिब्रेट करता हूं। वहीं बतौर निर्माता मेरी जिम्मेदारी बनती है कि समाज में सकारात्मक बदलाव की पैरोकारी करूं। सिनेमा और टीवी को समाज का आईना कहा जाता है। हमने शो में महिला किरदारों को हमेशा सशक्त और काबिल दिखाया है। आगे भी यही कोशिश जारी रहेगी।

जब हर महिला करेगी उसे सेलिब्रेट
सुरभि चंदाना


अभिनेत्री सुरभि चंदाना कहती हैं, 'मेरे लिए महिला दिवस की सार्थकता तब होगी जब हर महिला उसका जश्न मनाएगी। बहरहाल, देश दुनिया के कई हिस्सों में महिलाएं उच्च पदों पर आसीन हैं। कई जगह वे देश की बागडोर संभाल रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने सफलता की इबारत भी लिखी है। अगर टीवी और फिल्म जगत की बात करें तो नायिका प्रधान सशक्त कहानियों को तरजीह दी जा रही है। उन्हें केंद्रीय भूमिका में लिया जा रहा है। यह सकारात्मक बदलाव है। मैं इससे खुश हूं। बहरहाल, असल जिंदगी में मैं अपनी मां को अपना आदर्श मानती हूं। उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को पढ़ाया और आत्मनिर्भर बनाया। दोनों आज सफल हैं और अपने मनमुताबिक जिंदगी जी रही हैं।

शिक्षा को देना होगा बढ़ावा
मनन शाह, संगीतकार


'कमांडो' सीरीज फिल्म के संगीतकार मनन शाह कहते हैं, 'वर्तमान में हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेर रही हैं। बतौर संगीतकार यही कहूंगा कि हमारे यहां ढेरों महिला गायिका हैं। वे लगातार उम्दा गाने गा रही हैं। मैं तो सभी के साथ काम करना चाहूंगा। पिछले कुछ वर्षों में आई फिल्म 'मैरी कॉम', 'गंगाजल' और 'दंगल' प्रेरणादायक फिल्में रहीं। उसने लड़कियों को खेल के क्षेत्र में मुकाम बनाने को प्रेरित किया। अन्य क्षेत्रों में महिलाएं मिसाल कायम कर रही हैं। मेरा मानना है कि लैंगिक भेदभाव मानसिक सोच बदलने से ही संभव है। हालांकि उसमें अब काफी सुधार आ रहा है। फिर भी उस दिशा में हमें ज्यादा प्रयास करने होंगे। केरल हमारे समक्ष उदाहरण है। वहां महिलाओं की साक्षर दर सर्वाधिक हैं। कहते हैं कि एक शिक्षित मां पूरे परिवार को आगे बढ़ाती है। लिहाजा हमें शिक्षा की अहमियत पर जोर देना होगा। मेरी मां ने ही संगीत के प्रति मेरे रुझान को समझा था। उन्होंने ही मुझे संगीत की शिक्षा दिलाई। उनके कारण ही मैं आज अपना मुकाम बना पाया हूं। मैं उन्हें अपना आदर्श मानता हूं। मेरी मां की सहेलियों का ग्रुप है। महिला दिवस को वे सब सेलिब्रेट करती हैं। मैं और डैड भी उन्हें उस दिन डिनर पर ले जाना नहीं भूलते।

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