क्यों नहीं मनाया जाता पुरुष दिवस
समानता का अर्थ मुकाबला नहीं साथ होता है। बस इतनी सी बात समझे समाज, यही है आज की औरत की आवाज..
ऐश्वर्या सखूजा, अभिनेत्री
मेरे ख्याल से महिला दिवस खुद यह संदेश देता है कि महिलाओं के लिए खास दिन की आवश्यकता है। यह दर्शाता है कि समाज में असमानता मौजूद है। हमारे यहां पुरुष दिवस नहीं मनाया जाता है। फिर महिलाओं के लिए उसकी आवश्यकता क्यों होती है। मेरा मानना है महिला सशक्तिकरण तभी होगा जब महिलाएं पुरुषों पर निर्भर नहीं रहेंगी और वे स्वतंत्र और स्वछंद होकर अपने फैसले लेंगी। अपने लिए खुद खड़े होना सीखेंगी। मेरे लिए हर वह महिला अनुकरणीय है, जो बच्चे को सभ्य इंसान बनाने की कोशिश करती है। बच्चों को अच्छे संस्कार देकर समाज निर्माण में योगदान देती है।
ठोस कदम उठाने होंगे
नीति टेलर, अभिनेत्री
मुझे यह देखकर खुशी होती है कि महिलाओं की योग्यता को सम्मान मिल रहा है। मेरे लिए महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि हर महिला पूरे स्वाभिमान और सम्मान के साथ आजादी से अपनी जिंदगी जी सके। घर हो या कार्यक्षेत्र उसकी जिंदगी का नियंत्रण उसके अपने हाथ में होना चाहिये। महिलाओं ने लंबा सफर तय किया है और पुरुषों के समकक्ष खुद को साबित किया है। समाज में बदलाव के लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लगाम लगानी होगी। दुष्कर्मियों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए, ताकि ऐसे कृत्य करने की सोच मात्र से उनकी रूह कांप जाए। सामाजिक और आर्थिक स्तर पर उन्हें समानता का अधिकार देना होगा। कई फिल्मों में महिलाओं की क्षमता को दर्शाया गया है। हमारा शो गुलाम भी समाज के उस हिस्से की कहानी दिखा रहा है, जहां महिलाओं के साथ बदसलूकी की जाती है। बाद में कहानी में ऐसा मोड़ आएगा जब महिला की असल ताकत से सब रूबरू होंगे।
अपने पर गर्व होना चाहिए
पूनम आजाद, राजनेता
महिलाएं घर से बाहर निकली हैं। यह बदलाव गांव के स्तर पर भी देखा जा सकता है, लेकिन अभी भी गांव की महिलाएं अपने घर से बाहर निकलकर दलान पर नहीं जा सकती हैं। यह ठीक है कि अब वे मुखिया बन रही हैं, लेकिन सारा काम उनके पति ही करते हैं। यही वजह है कि उनको मुखिया पति कहा जाता है। सबसे दयनीय स्थिति यह है कि गांव में सेक्सुअल हैरेसमेंट और रेप जैसी घटनाओं की रिपोर्ट ही नहीं की जाती है। आज भी कई गांवों में स्कूल नहीं हैं। हालांकि लोग शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं। इसके बावजूद रोजगार की समुचित व्यवस्था नहीं है। राजनीति में महिलाओं को अपना वजूद बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। इसलिए परिवार और पति को काफी सपोर्ट करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें हर समय पुरुषों के बीच में रहना पड़ता है। किसी भी महिला को अपनी इज्जत- प्रतिष्ठा के साथ राजनीति में अपनी पहचान बनाए रखना बहुत ही मुश्किल काम है। सबसे अ ̈छी बात यह है कि राजनीति के क्षेत्र में नई महिलाओं को पुरानी महिलाएं प्रोत्साहित कर रही हैं। हालांकि सबसे दुखद स्थिति यह है कि लोग महिलाओं के चरित्र पर बहुत जल्दी अंगुली उठा देते हैं। उनके लिए यह बहुत ही आसान का म होता है। दिल्ली में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए खासतौर से महिलाओं को सुरक्षा मिलनी चाहिए। मेरा मानना है कि राजनीति में महिलाओं को आगे आना चाहिए। साथ ही हर गर्व होना चाहिए।
अब दुनिया भी सहमत है
रूबीना दिलायक, अभिनेत्री
हम एक अर्से से महिला सशक्तिकरण की बातें कर रहे हैं। हालात एक हद तक ठीक हुए हैं। हां, तब्दीली की रफ्तार जरा धी मी है, पर अब लोगों में महिलाओं को अपार शक्ति देने को लेकर अच्छी नीयत है। महिलाएं भी अब अपने हक के लिए आवाज उठाने लगी हैं। यह अच्छी बात है। रहा सवाल ग्लैमर जगत का तो यहां भी सशक्तिकरण बड़ी मजबूती के साथ हुआ है। महिला प्रधान फिल्में व अन्य कांसेप्ट्स इसके गवाह हैं। ऐसी कहानियां दी जा रही हैं, जिनमें महिला किरदारों की खूबसूरती से ज्यादा उनकी प्रतिभा पर जोर है। अपनी प्रतिभा के द्वारा समाज, परिवार व दुनियाभर में वे स्वीकृत की जा रही हैं। साथ ही ग्लैमर जगत उन्हें उनका ड्यू दे रहा है। यह जरूर है कि यहां का कामकाजी माहौल बहुत चुनौतीपूर्ण है। न सिर्फ महिलाओं के लिए, बल्कि मर्दों के लिए भी। वे एक्टर हों या एक्ट्रेस। यह इंडस्ट्री 15 घंटे रोजाना काम करने के बावजूद तरोताजा होने की मांग करती है। लोग हमें टेलीविजन पर देखते हैं लाइट, कैमरा व एक्शन से लैस, पर हकीकत कुछ और होती है। हमारे पास खुद के लिए वक्त नहीं होता।
-संगिनी फीचर