जो लड़ेगा वही जीतेगा कहना है रेसलर साक्षी मलिक का
किसी सूरत में हार नहीं मानना, अंतिम क्षणों में भी पलट सकती है बाजी, यह यकीन था मन में और यही हुआ। रियो ओलंपिक में अपनी इसी बात को सच कर दिखाया रेसलर साक्षी मलिक ने।
हरियाणा राज्य के रोहतक से रियो ओलंपिक तक का सफर किसी परीकथा से कम नहीं। कल तक गिने-चुने लोगों की जुबां पर था उनका नाम, आज दुनिया दीवानी हो रही है इस पहलवान के जीतने के हौसले और हारी बाजी जीत लेने के साहस को देखकर। ताकत ही नहीं तकनीक में भी इनका कोई जवाब नहीं। 12 साल की उम्र से लड़कों के साथ कुश्ती करने और उन्हें पटखनी देने में माहिर इस खिलाड़ी की विजयी मुस्कान और उसके पीछे की कहानी अखबारों, टीवी चैनल्स और दुनियाभर की मीडिया की सुर्खियां बन रही हैं। उन्होंने बता दिया कि लड़के-लड़कियों केबीच भेदभाव करने का समय अब ढलान पर है।
वह कहती हैं हमें इस विषय पर बहस करने के बजाय सोचना चाहिए उन प्रतिभाओं के बारे में जो लड़की हैं और केवल लड़की होने के कारण उनके आगे जाने की राह रुकी हुई है। इस करिश्माई खिलाड़ी से बातचीत भी कम रोचक नहीं...।
ये खुशी अनमोल है
बहुत खुशी होती है, मेरे पदक जीतने के बाद गांव का माहौल बदला है। मुझे देखकर लड़कियां उत्साह से भर जाती हैं। गांव की लड़कियों को देख रही हूं कि अब ज्यादा से ज्यादा संख्या में वे रेसलिंग में प्रशिक्षण लेने के लिए आगे आ रही हैं। इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि एक लड़की आगे बढ़े और उसके पीछे-पीछे पूरा कारवां शामिल हो जाए।
खेल के क्षेत्र में आने के लिए पहले से अधिक जागरूकता बढ़ी है। सरकारें भी बेटियों को आगे ले जाने और खिलाडिय़ों को प्रोत्साहित करने के लिए एकजुट हो रही हैं। यह सब मेरे लिए बड़ी बात है, यह खुशी अनमोल है।
शापिंग का नहीं टाइम
मुझे क्या पहनना है, कैसे कपड़े पहनने हैं, इस तरह का कोई निर्देश कभी नहीं रहा। जब जो सूट करता है पहन लेती हूं। अवसर के मुताबिक, सजने-संवरने का शौक है। यह अच्छा भी है, यह आपको अलग खुशी देता है। बस शॉपिंग के लिए टाइम नहीं मिलता। बड़ी मुश्किल से मार्केट या मॉल आदि जाने के लिए समय निकलता है।
पसंद है घर का खाना
खाने की शौकीन हूं, लेकिन प्रशिक्षण की वजह से मेरा शेड्यूल ऐसा रहता है कि बाहर जाने का समय नहीं मिलता। मैं फूडी नहीं हूं, बाहर का खाना भी कोई खास पसंद नहीं। घर का बना दाल-चावल-सब्जी बहुत पसंद है। यह जब मिल जाए तो मन खुश हो जाता है। दिन में तीन-तीन घंटे के लिए ट्रेनिंग करती हूं। इस दौरान अपनी डाइट पर कड़ाई से नियंत्रण करना होता है। इसमें कोई समझौता मुझे मंजूर नहीं।
बचपन से जा रही हूं किचन में
किचन का माहौल आकर्षित करता है। वहां जाकर मूड फ्रेश हो जाता है। हां, यह अलग बात है इसके लिए समय नहीं बचता, पर किचन अजनबी नहीं है मेरे लिए। बचपन से जाती हूं किचन में। मां का हाथ भी बंटाती हूं और हर तरह का व्यंजन भी बना लेती हूं। परफेक्ट हूं। दाल, रोटी, सब्जी जो कहो सब मेरे हाथ का बना खा सकते हैं और उसमें स्वाद भी होता है।
परिवार साथ तो कैसी चिंता
मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे ऐसा परिवार मिला है। चाहे कितनी भी परेशानी आई हो मुझे इसकी भनक तक नहीं लगने दी उन्होंने। हर कोई ढाल बनकर साथ खड़ा रहा। कभी कोई प्रतिबंध नहीं, न कभी इस बात का अहसास होने दिया कि मैं लड़की हूं तो अमुक चीज नहीं कर सकती। पढ़ाई के लिए भी ज्यादा दबाव नहीं दिया, क्योंकि मैंने खेल के क्षेत्र में खुद को साबित किया। एक समय था कि जब मां कहती थीं कि पढ़ाई कर ले पर जैसे-जैसे मेरे पदकों की संख्या बढ़ती गई, उनका मुझ पर भरोसा भी बढ़ता गया। भाई ने तो राखी पर मेडल लाने का वादा लिया। पिता अक्सर कहते कि बड़े सपने देखती हूं तो बड़ा काम और कड़ी मेहनत भी करनी होगी। ये सारी बातें मेरी ताकत हैं। परिवार हर मोड़ पर साथ रहे तो किसी बात की चिंता नहीं करनी पड़ती, मंजिल करीब लगती है।
कुश्ती है मेरी दुनिया
मुझे बचपन से पढ़ाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं रही। बस पास कर जाऊं, यही कोशिश करती हूं। ग्रेजुएशन पूरा कर लिया है और इसके आगे सोचा नहीं। अभी मुझे हर वक्त अपने लक्ष्य की चिंता रहती है। यही दबाव मेरे ऊपर हावी रहता है कि रेसलिंग में मैंने जो टार्गेट सेट किया है उसे हासिल करने में कोई चूक न रह जाए। मेरी बातचीत, मेरे ख्वाब, मेरे दिन-रात में बस कुश्ती ही कुश्ती है और कुछ नहीं। पूरा दिन इसी में निकल जाता है। बाकी कोई और चीज सूझती नहीं।
इनसे मिलती है प्रेरणा
छोटी थी और जब से कुश्ती को जाना-समझा है मेरे रोल मॉडल योगेश्वर दत्त जी, सुशील जी और गीता फोगाट रही हैं। गीता दी की काबिलियत और साहस को देखकर बहुत प्रेरणा मिलती है। उनकी पहल की वजह से आज हरियाणा की लड़कियों को इस क्षेत्र में आने की हिम्मत मिली है। उन सबसे मैंने काफी कुछ सीखा है और सीख रही हूं। आदर्श शानदार हों तो आपकी कोशिशें भी बड़ी हो जाती हैं। आप लगातार बेहतर करने की कोशिश में जुटे होते हैं।
मन का भ्रम चुनौतियां
लड़कियों की अपनी परेशानियां हैं। अक्सर शारीरिक दिक्कतों की वजह से वे मात खा जाती हैं, लेकिन इन्हीं दिक्कतों को साथ लेकर वे बड़े-बड़े कारनामे कर दिखाती हैं। मुझे लगता है मुश्किलें चाहे किसी भी रूप में हों वे तब तक आड़े नहीं आ सकतीं जब तक आप उन्हें मौका न दें। मैंने कभी शारीरिक या जैविकीय समस्याओं को अपने खेल के आड़े नहीं आने दिया। बस एक ही चीज मालूम है या तो खेलो या फिर इन समस्याओं के आगे घुटने टेक दो।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल इंटरनेट, सोशल मीडिया का आप जितना पॉजिटिव इस्तेमाल करेंगे, फायदे में रहेंगे। बस इसे मैनेज करना होता है। मैनेज करना भी मुश्किल नहीं, यदि आपका इरादा अच्छा हो और आप संतुलन बनाने में यकीन रखते हों। हर चीज के दोनों पहलू होते हैं अच्छा और बुरा। आपके हाथ में है कि आप सोशल मीडिया को अपनी जिंदगी में कितनी अहमियत देते हैं और अपने लिए इसे कितना बेहतर या उपयोगी बना सकते हैं।
समय दें समाज को
हम जिस समाज में रहते हैं, उसके हित के बारे में हम नहीं सोचेंगे तो और कौन सोचेगा। इंसानियत के बारे में हमें ही सोचना होगा। मुझे ऐसे लोग बहुत प्रेरित करते हैं जो अपने हित या स्वार्थ की परवाह किए बिना समाज के लिए कुछ करते हैं। यह सोचना गलत है कि कोई हमारे लिए नहीं करता तो हम क्यों करें? दिल बड़ा करें और लोगों की मदद करें तो इसमें लोगों का ही नहीं हमारा भी भला होता है।
मुस्कुराते रहो
मुझे किसी बात को लेकर झल्लाहट होती है। क भी -कभी खीझ या तंज भी आता है पर गुस्सा नहीं करती मैं। कभी कोई ऐसा वाकया नहीं हुआ कि मुझे अपने गुस्से की वजह से कुछ खोना पड़ा हो। कोई मुझसे मेरे गुस्से की वजह से नाराज नहीं हुआ। यह बात सही है कि गुस्सा करना मानवीय स्वभाव है, पर मेरा स्वभाव गुस्सैल नहीं और कभी यदि गुस्सा आता भी है तो अधिक देर तक नहीं टिक सकता, मैं खुशमिजाज इंसान हूं। मेरे चेहरे पर रहती है हमेशा मुस्कान। सबसे यही कहती हूं कि ज्यादा मत सोचो, मुस्कुराते रहो!
जितना तपोगे निखर जाओगे
मुझे अभी कुछ नहीं सूझता और लगता है जीवन यही है। यदि आपके पास कोई लक्ष्य है आप उसे पाने के लिए अपना सौ प्रतिशत झोंक दें। सब कुछ भूल जाएं। जिंदगी में जो भी टास्क मिले उसे गंभीरता से पूरा करें। मैं भी सब कुछ भूलकर जुटी हूं। फिल्म, संगीत, शॉपिंग या मनोरंजन से दूर हूं।
किसी भी राजनीतिक-सामुदायिक कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला किया है। घरवालों के साथ वक्त बिताकर तरोताजा हो गई हूं। मैं पहले से कहीं अधिक गंभीर हो गई हूं। अब फिर से प्रशिक्षण के लिए तैयार हो चुकी हूं। अब एक और नई मंजिल पर है मेरी नजर।
बाधाओं से बनें बड़े
कोई नहीं ऐसा, जिसकी जिंदगी मुश्किलों से भरी न हो। पिता बस कंडक्टर थे। घर की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। जाहिर है मुझे वे तमाम सुविधाएं नहीं मिलीं जो बाकी खिलाडिय़ों या सुविधा प्राप्त लड़कियों को प्राप्त होंगी। आसपास का माहौल भी ऐसा नहीं था कि मैं उस समाज में रहकर तसल्ली से आगे बढ़ पाती, पर शायद यही बातें आज मेरे आगे बढऩे का कारण भी बनी हैं। मुझे अपने देश की युवा लड़कियों से यही कहना है कि समस्याएं तो आएंगी ही, इसका रोना रोकर अपनी ऊर्जा क्यों जाया किया जाए! कभी मुश्किलों या राह की बाधाओं को हावी न होने दें, बाधाओं को हराकर उनसे आगे निकल जाएं।
एक नजर
फ्र ीस्टाइल रेसलिंग 58 किग्रा
जन्मदिन 3 सितंबर, 1992
स्थान रोहतक हरियाणा
विश्व रैकिंग कुश्ती में चौथा स्थान
हॉबी कुश्ती का अभ्यास
सीमा झा