मां प्रेरणास्रोत हैं- आलिया भट्ट
आजाद ख्यालों से भरपूर आलिया भट्ट का मानना है कि अगर पक्षपात हो रहा है तो वह इसलिए कि आपने सिर नहीं उठाया स्वाभिमान से...
आपके लिए महिला दिवस का क्या महत्व है? क्या आप इस बात को मानती हैं कि बॉलीवुड में महिलाओं पुरुषों के संदर्भ में काफी मुद्दों पर पक्षपात होता है? अधिकतर यानी 90 प्रतिशत हीरोसेंट्रिक फिल्मों का निर्माण होता है, ऐसा क्यों? मौजूदा दौर महिलाओं का है। महिलाओं को ही यह सुनिश्चित करना है कि जीवन में वे क्या करना चाहती हैं। महिलाओं की मर्जी के खिलाफ उनका शोषण कर पाना अब पहले जैसा संभव नहीं रहा। अगर घर में काम करने वाली मेड को आप हर वर्ष उसकी पगार बढ़ाकर नहीं देंगी तो वह आपके घर का काम छोड़कर चली जाएगी या काम छोड़ने की धमकी देगी।
जब एक आम काम करने वाली मेड आपका काम छोड़कर जाने को तैयार है तो फिर कामकाजी और पढ़ी-लिखी युवतियां अपना शोषण क्यों होने देंगी भला? अब वक्त बदल चुका है। मुझे किस तरह की फिल्म करनी है यह सोचना मुझ पर निर्भर है। फिल्म ‘कपूर एंड संस’ 2016 में रिलीज हुई। यह एक परिवार की कहानी पर आधारित फिल्म थी। इस फिल्म में मेरा जो किरदार था, उसे मैंने बखूबी निभाया और मुझे दर्शकों ने पसंद भी किया। आजकल महिला प्रधान फिल्मों जैसे ‘पिंक’, ‘हाइवे’, ‘पीकू’ और ‘कहानी’ आदि को बड़े पैमाने पर दर्शक वर्ग मिल रहा है। वैसे बरसों से महिला प्रधान फिल्में बनती आ रही हैं।
मीना कुमारी, नरगिस, नूतन, वैजयंतीमाला फिर उनके बाद रेखा, हेमा, शबाना, स्मिता पाटिल जैसी कई अभिनेत्रियों ने एक से एक सदाबहार फिल्में दीं। वह दौर भी नायिका प्रधान फिल्मों का था, लेकिन अब पिछले कुछ सालों से हम सभी महिला सशक्तिकरण की बातें करने लगे हैं। हर वर्ष कुछ फिल्में नायिका प्रधान तो बनती ही हैं। महिलाएं अब जागरूक हो चुकी हैं, यह बहुत अच्छी बात है। मेरे डैड ने शबाना मैम को लेकर फिल्म ‘अर्थ’ बनाई थी। अब नारी मुक्ति या महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में इससे उम्दा उदाहरण क्या होगा। मेरे मुताबिक महिला सशक्तिकरण की बेमिसाल फिल्म है यह।
नारी स्वाभिमान की जीती-जागती मिसाल है यह फिल्म। 60 के दशक में फिल्म ‘मुगले-आजम’ आई थी। इस फिल्म को कोई भुला नहीं सकता। सलीम की कहानी में अगर अनारकली न होती तो उस प्रेमकहानी का मतलब क्या होता? बॉबी फिल्म में अगर बॉबी ही न होती तो क्या मतलब था फिल्म का? फिल्म बॉबी में एक आम घर की युवती एक अमीर घराने के लड़के से प्रेम करती है, पर उसका प्यार पाने के लिए अपना स्वाभिमान नहीं खोती। यह भी तो एक खास पहलू है स्त्री शक्ति का। एक सिक्के के दो पहलू हैं- स्त्री और पुरुष। इस पहलू को आज मान्यता मिल रही है। मेरी मॉम (सोनी राजदान) ने अपनी एक अलग जगह बनाई, जबकि डैड प्रसिद्ध निर्देशक हैं।
मॉम ने ऐसे निर्देशक की सिर्फ पत्नी ही नहीं, सही मायने में अर्र्धांगिनी बनकर अपनी अलग पहचान बनाई। मेरी मां मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं। नूतन, मधुबाला, वैजयंतीमाला, हेमा मालिनी, रेखा और श्रीदेवी आदि अनेक ऐसी अभिनेत्रियां हैं, जिनके जिक्र के बिना फिल्म इतिहास संपूर्ण नहीं होगा। जहां तक पारिश्रमिक की बात है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जिसकी फिल्म जितना बिजनेस करती है, उस हिसाब से ही उस कलाकार की मार्केट प्राइस तय होती है।
फिल्म ‘नीरजा’ की जबर्दस्त सफलता ने सोनम कपूर की मार्केट प्राइस बहुत बढ़ा दी, क्योंकि इस फिल्म ने उम्दा बिजनेस जो किया। अब हर दूसरी अभिनेत्री उतना ही मेहनताना मांगे तो गलत होगा न। हीरो के पारिश्रमिक में भी कैटेगरी है। सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘एमएस धोनी’ की सफलता के बाद उनकी मार्केट प्राइस बढ़ गई और यह तो होता ही रहता है। मेरे ख्याल से महिलाओं के बगैर यह समाज अधूरा है। उनके योगदान को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इसलिए मेरी नजर में हर दिन महिला दिवस है।
-संगिनी फीचर
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