सिर्फ नारेबाजी नहीं बल्कि अपना वजूद रखना ही फेमिनिज्म है
दीपिका पादुकोण कहती हैं कि मेरे परिवार ने मुझे कॅरियर चुनने की आजादी दी। इसी का नतीजा है कि आज मैं परिवार और देश का नाम रोशन कर रही हूं...
मेरी मां उज्जला का बहुत प्रभाव है मुझ पर, जो कि स्वाभाविक है। उन्होंने अपना कॅरियर त्यागा नहीं, पर प्राथमिकता हम बेटियों की परवरिश को दी। मेरी मां की तरह ही अनगिनत सम्माननीय महिलाएं हैं हमारे समाज में जिहोंने अपनी प्राथमिकताएं बदलीं, क्योंकि उन्हें अपने परिवार-बच्चे देखने थे। महिला दिवस की बात हकीकत में समाज के ऊपरी स्तर पर है। इसका अर्थ अभी समाज के उस स्तर तक नहीं पहुंचा जहां उसे असलियत में समझना होगा। एक आम घरेलू और कम पढ़ी-लिखी औरत क्या जाने क्या हैं महिला दिवस के मायने...। इलीट क्लास की महिलाओं के लिए उनका हर दिन महिला दिवस होता है, हो सकता है। उनके लिए घर के बाहर निकलने पर, अपना वक्त अपने हिसाब से गुजरने पर कोई खास पाबंदी नहीं होती।
वे खुद के लिए पैसे खर्च कर सकती हैं। समस्या है आम मध्यम और गरीब घर की महिलाओं के लिए...। क्या है महिलाओं के लिए फ्रीडम? मुझसे यह सवाल अक्सर महिला दिवस के आसपास पूछा जाता है। मेरे लिए अपने हिसाब से जिंदगी जीने की आजादी। आजादी का मतलब यह नहीं कि महिलाएं सिर्फ स्वयं के बारे में सोचें। अगर हजारों में कोई एकाध स्त्री स्वार्थी निकल गई तो इसका यह मतलब नहीं कि सभी वैसी हों। अपने देश में विवाहित हों या अविवाहित, पुरुष महिलाओं को अपनी जागीर मानते हंै। बहुत सी जगहों पर अभी भी शादी के बाद भी स्त्री घर के बाहर कदम नहीं रख सकती, जब तक कि घर के पुरुषों का समर्थन न हासिल हो।
बड़ी मुसीबत की स्थिति है यह। लड़की चाहे कितनी भी पढ़ी-लिखी हो, उसे कुछ कहने का, अपनी बात रखने का कोई अधिकार नहीं? क्यों उसे दबी-दबी, सहमी-सहमी सी जिंदगी जीने पर मजबूर किया जाता है। अत्यधिक प्रेशर के कारण कभी -कभी लड़कियां दबंग बन जाती हैं और वे बागी बनने पर मजबूर हो जाती हैं...। क्या हमारा समाज नहीं है इसका उत्तरदायी... मेरा मानना है कि महिलाओं की रक्षा करें, पर उनकी आवाज दबाने के लिए उन्हें मजबूर न करें। मेरे पिताजी (प्रकाश पादुकोण) ने मुझे और मेरी बहन अनिशा को अपने दिल की बात खुले मन से कहने की आजादी दी। अगर डैड ने मुझे अपना कॅरियर चुनने की आजादी नहीं दी होती तो संभवत: मैं बैडमिंटन प्लेयर के रूप में नजर आती। मैंने खुद अपने पिताजी और दूसरे कोच से बैडमिंटन की कोचिंग ली, लेकिन बाद में मेरा मन अभिनय की ओर झुका।
मेरे डैड ने मुझे खुशी-खुशी अभिनय में जाने के लिए दिल से इजाजत दी और आज मैं मॉडलिंग, बॉलीवुड और फिर हॉलीवुड में काम करते हुए अपने अभिनय की 10 वर्षों की पारी पूरी कर चुकी हूं। कई बार लोग महिला दिवस का मतलब फेमिनिज्म से जोड़ते हैं। फेमिनिज्म का मतलब नारेबाजी नहीं है। अपना वजूद रखना ही फेमिनिज्म है। महिलाओं को आदर और प्यार चाहिए, ओहदा नहीं। उन्हें एक समान नजरों से देखा जाना चाहिए। महिला दिवस की सार्थकता तभी होगी। आजकल मैं बहुत व्यस्त हूं, लेकिन मेरी भागदौड़ भरी जिंदगी में मेरे लिए आज सबसे ज्यादा मायने रखते हैं कुछ सुकून के पल।
जब मुंबई आई तो पहले अकेले किराए के घर पर रहती थी। फिर अपना फ्लैट प्रभादेवी इलाके में लिया। अकेले रहकर आजादी क्या होती है इसे समझा। घर को अकेले मैनेज करना आसान नहीं था। बिजली का बिल भरने से लेकर ग्रोसरी भरना और फ्लैट का मेंटीनेंस भरने तक, आटे-दाल के भाव मालूम पड़ गए मुझे। मेरे लिए आज फ्रीडम के पल हैं, अपनी कमाई से खरीदे घर में सुकून से वक्त बिताना। सुकून के पलों में मैं जब अलमारी को ठीक करने बैठती हूं तो पुरानी चीजें मिल जाती हैं और मेरा मन पुरानी यादों में खो जाता है। मन करता है तो गाने सुनती हूं, मूड करता है तो कॉफी बनाकर पीती हूं। फिर देखते-देखते शाम का सूरज ढलने को आ जाता है।
मैं सभी महिलाओं को यही मैसेज देना चाहूंगी कि आपके जीवन में कोई उतार-चढ़ाव आए हों या दिल हर्ट हुआ हो। कभी किसी मौके पर अगर उन पलों को गलती से याद करती हैं तो खुद को कसूरवार मत मानना। हम सभी अपना अधिकांश वक्त पुरुषों के लिए, परिवार के लिए और दूसरों के लिए काम करने में लगाते हैं। कभी खुद के लिए भी वक्त गुजारकर देखिए। घड़ी को देखते- भागते थक नहीं गईं आप? किसी दिन वक्त निकालिए खुद के लिए। शांति-सुकून के जिन पलों को आपने खोया था, वे आपके लिए फिर हाजिर हो सकते हैं। ऐसा किया तो आप खुद के साथ रहेंगी, रिलैक्स महसूस करेंगी। यह आजादी आज की महिलाओं के लिए बेहद आवश्यक है। खुद का बेशकीमती वक्त खुद पर गुजारें।
-संगिनी फीचर
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