अपने लिए एक लक्ष्य बनाएं
शारीरिक चुनौतियां और जमाने में खुद को साबित करने की जद्दोजहद। इन सबके बीच संकल्पों को परवान चढ़ाना इतना आसान न था, लेकिन शारीरिक रूप से अशक्त होते हुए भी इरा सिंघल ने यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल किया। बस इरा को अफसोस इस बात का
शारीरिक चुनौतियां और जमाने में खुद को साबित करने की जद्दोजहद। इन सबके बीच संकल्पों को परवान चढ़ाना इतना आसान न था, लेकिन शारीरिक रूप से अशक्त होते हुए भी इरा सिंघल ने यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल किया। बस इरा को अफसोस इस बात का है कि आज भी लोग शक्ल और शरीर से आकलन करते हैं क्षमता का...
बचपन में ही सोचा था कि आईएएस बनूंगी या डॉक्टर। लक्ष्य तय था, लेकिन रास्ता घूमकर मिला। मुझे समाज की सेवा करनी है और इसके लिए सिविल सेवा से बेहतर और क्या हो सकता है...।
जीवन जीने के लिए किन सिद्धांतों को फॉलो करती हैं और सफलता के लिए किन चीजों को जरूरी समझती हैं?
'कर्म करो फल की चिंता न करो', गीता के इस सार पर ही जीती हूं। जो लोग बहुत ज्यादा रिजल्ट पर फोकस होते हैं और सोचते हैं कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो कुछ नहीं कर पाऊंगा या दुनिया क्या कहेगी? उनको समस्या होती है। मैं समझती हूं कि परीक्षा दी थी, उसमें पास हो गई। जो सफलता मुझे चाहिए उसके पैरामीटर्स अलग हैं। उन्हें अभी मैंने हासिल नहीं किया है। सफलता वह होगी जब मैं कोई सकारात्मक परिणाम दे पाऊंगी और लोगों के जीवन में कुछ बदलाव ला पाऊंगी।
क्या आपको शारीरिक कमी की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
हां, मैं जब छोटी थी तो मुझे क्लैफ पैलेट सिंड्रोम था। उसमें नेजल वॉयस होती है। नर्सरी स्कूल में जो बच्चे मेरे साथ एडमिशन ले रहे थे मैंने उनसे अच्छा परफॉर्म किया, लेकिन स्कूल ने मुझे रिजेक्ट कर दिया। मेरे पापा राजेंद्र सिंघल को काफी मेहनत करनी पड़ी। स्कूल वालों से रिक्वेस्ट करनी पड़ी। कई-कई बार टेस्ट दिलाने पड़े तब जाकर मुझे लिया गया। स्कूल में मैं हमेशा टॉप थ्री में रही। मेरा ऑपरेशन भी हुआ। इसके बाद जब हम दिल्ली आए तो पापा ने मॉडर्न स्कूल, बाराखंभा में एडमिशन दिलाने का प्रयास किया। वहां की प्रिंसिपल ने तो यहां तक कहा कि ऐसे बच्चों को तो स्पेशल स्कूल में डालना चाहिए। यह नॉर्मल स्कूल्स के लिए नहीं है। पहले प्रयास में ही सिविल सेवा परीक्षा पास कर लेने के बावजूद मुझे नौकरी के लिए मेडिकली अनफिट करार दे दिया गया। तब मैंने कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। जीत मेरी हुई और मुझे इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज की ट्रेनिंग करने हैदराबाद भेजा गया।
संघर्ष के दिनों में कभी डिमोटिवेट हुईं?
नहीं, मैं कभी डिमोटिवेट नहीं होती। मुझे लगता है कि आप डिप्रेशन में जिएंगे तो आपको जीवन में बहुत सी चीजें ऐसी दिख जाएंगी जो गलत हो रही होंगी। निगेटिव सोचने लगेंगे तो कोई अंत नहीं है। आप चीजों को पॉजिटिव भी देख सकते हैं और निगेटिव भी।
आपकी शारीरिक समस्या कैसी है, इसका पता कब चला?
मेरी प्रॉब्लम जेनेटिक है। यह बचपन से अंदर थी, लेकिन सात-आठ साल की उम्र में बाहर आने लगी। इसे स्कॉलियोसिस कहते हैं। मेरे हाथों और पैरों में प्रॉब्लम थी। पैरों की प्रॉब्लम तो फिजियोथेरेपी से काफी हद तक ठीक हो गई, लेकिन हाथों के मूवमेंट में अभी भी समस्या है। जैसे-जैसे स्पाइन ग्रो करती गई वैसे-वैसे मुड़ती गई। इसके लिए ब्रेस बांधी जाती है, जिससे स्पाइन सीधी हो जाती है। कई सुपरमॉडल्स हुई हैं जिनको बचपन में स्कॉलियोसिस था। कई कारण रहे कि मेरा ट्रीटमेंट नहीं हो सका। जब जॉब में थी तो बीस घंटे काम करती थी। बोझ नहीं उठा पाती, फिजिकल वर्क में थोड़ी दिक्कत रहती है। अफसोस इस बात का है कि दुनिया आपकी क्षमता शक्ल से आंकती है।
स्पेशली एबल्ड लोगों के लिए समाज से क्या कहना चाहेंगी?
यही कि इन्हें अलग मत करिए। कई बार घर-परिवार में ही अलग समझ लिया जाता है। जबकि इन्हें मेनस्ट्रीम से जोडऩे की जरूरत है। हमें किसी को सिंपैथी नहीं देनी है। हमें अंडरस्टैंडिंग देनी है। अगर मां-बाप ही नहीं समझेंगे तो और कौन समझ सकता है।
अगर आपको इनके लिए काम करने का मौका मिला तो क्या करेंगी?
फिजिकली चैलेंज्ड लोगों के लिए भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर की बहुत कमी है। अगर मुझे मौका मिला तो दो चीजों पर काम करूंगी। पहला इमोशनल पहलू पर कि दुनिया उन्हें स्वीकार करे और उनका परिवार उन्हें बराबर समझे। दूसरे, हमें अगर इनक्लूसिव सोसाइटी बनानी है तो सिस्टम को सबके लिए ढालना होगा। जो सुन नहीं सकते उनकी एक भाषा होती है, लेकिन भारत में कितने लोगों को यह भाषा आती है। यहां तक कि उन्हें भी नहीं सिखाई जाती, जो सुन नहीं सकते। बिल्डिंग्स में रैंप नहीं हैं, लिफ्ट्स नहीं हैं। एस्केलेटर्स नहीं हैं। इन सबमें सुधार की जरूरत है।
आपने सफलता किस चीज के बल पर हासिल की?
किसी भी जीत के लिए मेंटल स्ट्रेंथ सबसे महत्वपूर्ण है। सिविल सेवा परीक्षा के कई प्रयासों में एक ही चीज बार-बार करनी होती है। उसे अलग-अलग जगह से अलग तरीके से बार-बार पढऩा होता है। इसलिए जिस विषय को गहरे तक पढ़ सकें, जिसमें आपका इंट्रेस्ट हो। उन्हीं विषयों को इस तरह की परीक्षाओं के लिए चुनें। फिर चाहे वह साइंस हो या आट्र्स, कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरा ऑप्शनल सब्जेक्ट ज्योग्रॉफी था। इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की स्टूडेंट रहने के बावजूद मैंने भूगोल को चुना। अपने पहले प्रयास में मैंने बहुत मेहनत की थी। कोचिंग और सेल्फ स्टडी सब था उस समय, बाद में तो बस खुद को अपडेट रखा। मानसिक मजबूती मेरा सबसे स्ट्रांग प्वाइंट है।
अपनी हॉबीज के बारे में बताइए?
लाइन लगाकर हॉबीज हैं मेरी। मैंने अपनी लाइफ हॉबीज को समर्पित की है। मुझे नॉवेल्स का शौक है। मुझे फीमेल ऑथर्स पसंद हैं। 'लिटिल प्रिंसेस एंड लिटिल वुमेनÓ की स्टोरी सबको पढ़ाई जानी चाहिए। यह एक उम्मीद देती है। यह किताब आपको पॉजिटिविटी सिखाती है। हिंदी में प्रेमचंद को पढ़ा है। उनकी कहानियां अच्छी लगती हैं। डांस का शौक है, एक्टिंग में मजा आता है, थियेटर किया है, डायरेक्शन पसंद है, ट्रैवलिंग का काफी शौक है। काफी जगह घूमी हूं। इजिप्ट मेरी पसंदीदा जगह है। फुटबॉल का बहुत शौक है। एस्ट्रोलॉजी करती हूं, पामेस्ट्री करती हूं। कॉलेज में फेस्ट ऑर्गेनाइज किए, इवेंट्स किए, गेम खेले। हिस्ट्री का भी बहुत शौक है।
क्या स्प्रिचुअल हैं?
मै रिलिजियस नहीं हूं, स्प्रिचुअल हूं। पूजा नहीं करती। मेरे लिए स्प्रिचुअल होने का मतलब है कि अच्छे काम करो। जो आप करते हैं, वही आपको वापस मिलता है। मैं पुनर्जन्म और कर्म की थ्योरी में विश्वास रखती हूं। मैं मानती हूं कि हम जीवन में कुछ सीखने आए हैं। हमारा कोई टारगेट है। सबको एक ही चीज नहीं सीखनी है। इसलिए हम सब एक से नहीं बने हैं। सबकी लाइफ में एक सी चीजें नहीं हो रही हैं। हम दुनियादारी में फंस जाते हैं और यह नहीं सोचते कि इसके आगे और कुछ है कि नहीं है? मेरे हिसाब से सभी इस दुनिया में एक उद्देश्य लेकर आए हैं।
आप हौसले की एक मिसाल बन गईं हैं। संगिनी की पाठिकाओं से क्या कहना चाहेंगी?
किसी भी चीज से घबराइए मत। अगर आसपास के लोग कह रहे हैं कि आप किसी से कम हैं तो उनकी मत सुनिए। अपने आपको किसी से ज्यादा भी मत समझिए। हम सबमें कुछ अलग करने की ताकत है, उसको पहचानिए। कभी यह न सोचें कि मैं तो इस लायक नहीं हूं। खुद में जो अच्छाईयां हैं उन्हें उभारें। बुराईयों को पहचानें, उन्हें सुधारें। अपने लिए एक लक्ष्य बनाएं और उसके लिए गंभीरता से प्रयास करें। विश्वास रखें कि जो होगा वह आपकी मर्जी से ही होगा। हम घबराते हैं कि कोई हमें समझेगा नहीं, कोई क्या कहेगा... लेकिन इन चीजों की परवाह नहीं करनी है। डिमोटिवेट न हों। आप डिमोटिवेट तब होते हैं जब आप सोसाइटी और सिस्टम को ब्लेम करते हैं।
यशा माथुर