Move to Jagran APP

तीनों किरदार जिएं हैं मैंने

फिल्म बाजीराव मस्तानी में बाजीराव, मस्तानी और काशीबाई के कॉस्ट्यूम्स ने हर किसी को प्रभावित किया। इन कॉस्ट्यूम्स में भरपूर इमोशंस झलक रहे थे। इन किरदारों के कॉस्ट्यूम को बड़ी बारीकी से क्रिएट किया फैशन डिजाइनर अंजु मोदी ने। उन्होंने स्वीकारा चुनौती को और रच दिया इतिहास। अंजु कहती हैं

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 11 Jan 2016 03:00 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jan 2016 04:43 PM (IST)
तीनों किरदार जिएं हैं मैंने

फिल्म बाजीराव मस्तानी में बाजीराव, मस्तानी और काशीबाई के कॉस्ट्यूम्स ने हर किसी को प्रभावित किया। इन कॉस्ट्यूम्स में भरपूर इमोशंस झलक रहे थे। इन किरदारों के कॉस्ट्यूम को बड़ी बारीकी से क्रिएट किया फैशन डिजाइनर अंजु मोदी ने। उन्होंने स्वीकारा चुनौती को और रच दिया इतिहास। अंजु कहती हैं कि इस फिल्म में तीनों किरदार जिए हैं मैंने...

loksabha election banner

पीरियड फिल्मों के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइन करना कितनी बड़ी चुनौती है? किस तरह की मुश्किलें आती हैं इस दौरान?

बाजीराव मस्तानी के किरदारों में पैशन, वीरता, निडरता जैसे गुण दिखाई देते हैं। वह दर्शाने थे। मस्तानी भी हर हाल में बाजीराव को कुबूल करती हैं। बाजीराव भी आदर्श हैं एक हद में बंधे हैं उनका संघर्ष भी दिखता है। इतिहास में यह कहानी है, लेकिन हमने हिस्ट्री के पन्नों की रिसर्च से कपड़े नहीं बनाए। कपड़ों के पीछे भी इमोशंस हैं। जब बाजीराव युद्ध पर जा रहे हैं तो पावर गारमेंट्स पहनते हैं। हमें बहुत सी चीजें वीव करानी पड़ीं। कई चीजों को रिवाइव किया। पेंटिंग से इंस्पिरेशन ली। कपड़ों के इमोशंस हमने सीन की स्क्रिप्ट के हिसाब से तन्मयता से बनाए हैं, लेकिन काफी कठिनाई भी हुई, क्योंकि कपड़े नहीं मिलते, कलर्स क्रिएट करने थे। भरी गर्मी में मैं गांवों में गई। म्यूजियम विजिट किए। कॉस्ट्यूम्स को समझा और एडॉप्ट किया।

इस फिल्म में दीपिका की ड्रेसेज काफी वॉल्यूम वाली थीं। आपने कौन सा फैब्रिक और कौन सी कढ़ाईयां प्रयोग की?

उसी जमाने की कढ़ाईयां लीं हमने। उस जमाने में लोग वॉल्यूम पहनते थे। ऐसा हमने पेंटिंग्स में

देखा। बाजीराव के लिए हमने वॉल्यूम इसलिए दिया कि पेंटिंग्स में काफी घेरदार अंगरखा दिखाए गए हैं। दूसरी बात यह कि वह योद्धा हैं, जब वह घुड़सवारी करते हैं, छलांग लगाते हैं या जंप करके हाथी पर बैठते हैं तो उनकी लेग मूवमेंट फ्री होनी चाहिए। किसी भी कॉस्ट्यूम के पीछे उसकी जरूरत भी डिजाइनिंग का कारण होती है। राजस्थान में महिलाएं शॉर्ट एंकल लेंथ लहंगे पहनती हैं, क्योंकि उन्हें दूर-दूर तक पानी भरने जाना पड़ता है। उस समय वे साड़ी पहनकर नहीं जा सकती हैं। हमारे देश में टेक्सटाइल भी मेजर आर्ट रही है। पहले लोग धोती पहनते थे, दुशाला लेते थे, क्योंकि उस समय सिलाई शुरू नहीं हुई थी। कलीदार अंगरखा तो एक कपड़े के पीस से ही तनियों और बंधनों के साथ तैयार कर लिया जाता था। उस समय के पहनावे की हमने स्टडी की और उसे आज के हिसाब से ढाला।

फैशन शोज में भी रैंप पर 'मीराÓ और 'द्रौपदीÓ जैसे किरदार रचती हैं आप। आपके शोज में एक बेहतरीन कहानी और उसका प्रजेंटेशन दिखता है। कॉन्सेप्ट के लिए आप रिसर्च और तैयारी कैसे करती हैं?

हम लक्जरी गारमेंट्स बेच रहे हैं तो हमें इनकी चाहत पैदा करनी होती है। डिमांड क्रिएट न करें या गारमेंट्स में चेंज न दिखाएं तो लोगों को कैसे आकर्षित करेंगे? रैंप पर कहानी व किरदार रचने से मुझे दो फायदे होते हैं। एक तो यह कि लोग पसंद करते हैं, दूसरा जब तक मैं कहानी नहीं रचती तब तक मेरा कलेक्शन भी नहीं बनता। मुझे अपने एक्सप्रेशन देने के लिए किरदार रचना ही होता है। मैंने 'मीराÓ लिया, एक बार बंगाली लिटरेचर से 'देवीÓ लिया जिसका संगीत रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं के साथ क्रिएट किया। माधुरी दीक्षित को रैंप पर बुलाया, क्योंकि वह देवदास की चंद्रमुखी हैं। जब मैंने द्रौपदी किरदार लिया तो द्रौपदी की स्ट्रेंथ को दर्शाने की कोशिश की। मुझे सशक्त महिला का कोई भी किरदार बहुत आकर्षित करता है। मुझे लगता है कि महिला कोई नाजुक चीज नहीं है। यह प्रकृति की बहुत बड़ी देन है, जो जीवन को जन्म देती है। इनमें ताकत के साथ-साथ काफी कोमलता है। इसी भावना को जब अपने फैब्रिक्स में, अपने गारमेंट्स में डालती हूं तो मुझे खुद को एक्सप्रेस करने का मौका मिलता है। मैं समझती हूं कि औरत खूबसूरत लगे, पावरफुल नजर आए और आकर्षक दिखे। उनके कपड़ों से, उनके व्यक्तित्व से हमें उनका वजूद दिखाना होता है।

आप इंडियन कल्चर को आगे बढ़ा रही हैं। आपने ट्रेडीशनल आर्ट को ही अपना सिग्नेचर स्टाइल क्यों बनाया?

मैं अपने कल्चर और ट्रेडीशन से बहुत प्रभावित हूं। मैं इसी में पली-बढ़ी। इसी को समझा है। काम शुरू करने से पहले मैंने भारत भ्रमण किया। कई जगहों पर गई। वीवर्स के कल्चर को समझा। कपड़ों में वे जिन प्रतीकों का प्रयोग करते हैं उनके मतलब को समझा। जैसे कांचीपुरम में वे मोर डालते हैं, क्योंकि उनके मंदिरों में मोर देवता की सवारी है। हमारे कल्चर में कई सारे प्रतीक हैं। यही सिंबल हमारे कपड़ों की बुनाई, प्रिंट्स और आर्ट में आते हैं। मैं सोचती हूं कि आज की डिजाइनर होने के नाते मैं कैसे इस परंपरा को आगे लाऊं? कैसे अपनी सोच को अपने डिजाइंस में लाऊं कि फैशन गारमेंट बने, खूबसूरत लगे, लोगों के मन में भाए और आज की जेनरेशन उसे पहनकर प्राउड फील करे। इससे हमारा कल्चर भी आगे बढ़ रहा है और नई जेनरेशन समझ रही है अपनी हेरिटेज को।

फैशन डिजाइनिंग में आपके आने का संयोग कैसे बना?

शुरू में मैं पेंटिंग्स करती थी राजा रवि वर्मा की। कला की तरफ नेचुरल रुझान था, लेकिन जब जीवन में कॅरियर चुनने की बारी आई तो बिना जाने-पहचाने मैंने इस प्रोफेशन को पकड़ा। मुझे इसमें मजा आता था।

आपका पसंदीदा स्टाइल क्या है? क्या काम का प्रेशर कभी परेशान नहीं करता?

मेरा स्टाइल काफी साधारण है। खादी, हैंडलूम के कपड़े, लेकिन थोड़े स्टाइल में पहनती हूं। मिक्स एंड मैच करती हूं। सब कुछ एक सा नहीं पहनती हूं। मैं अंदर से खुश हूं। अपने मन का काम कर रही हूं। आप सोचकर तो स्माइल करते नहीं हैं। मुझमें जलन, क्रोध, लालच जैसी तामसिक प्रवृत्तियां घर नहीं करती हैं। अगर आपमें यह सब आ जाता है तो आपके चेहरे से हंसी गायब हो जाती है।

क्या इस साल फैशन डिजाइनिंग में एक और पद्मश्री की उम्मीद करें?

मैं अपना काम दिल से और पैशन से कर रही हूं। मैंने संजय लीला भंसाली के निर्देशन में काम किया है। वह सुप्रीम पर्सन हैं। जब वह कहते हैं कि मोहे रंग दे लाल... में मार्बल कलर का लहंगा चाहिए तो बस चाहिए। उनके विजन को रीड करके देना मेरा काम है। मुझे लगता है कि मैं अपना काम ईमानदारी से करती हूं और जहां मुझे अपनी क्रिएटिविटी देनी है वहां मैं देती हूं। मुझे क्या मिलेगा? इस बारे में मैं नहीं सोचती। इसके बाद, जो मिल जाए वह सोने पर सुहागा है। इतनी एप्रिसिएशन से कॉन्फिडेंस बढ़ता ही है।

आपके बेटा-बहू भी फैशन डिजाइनर हैं। क्या वे आपके स्टाइल पर ही कपड़े बना रहे हैं?

मेरे बेटे अंकुर मोदी और बहू प्रियंका का लेबल है एएम.पीएम। वे सेटल डिजाइनर हैं। मेरे बेटे अंकुर की बड़ी सीरियस और डिटेल नजर है। मेरी बहू भी छोटी-छोटी बातों का पूरा ख्याल करती है। मैं अपने संस्कारी बच्चों पर गर्व करती हूं। मैंने उन्हें मेरे किस्म की डिजाइनिंग करने की मजबूरी न देकर उन्हें अपने किस्म की डिजाइनिंग करने की फ्रीडम दी, क्योंकि मैं जानती हूं कि डिजाइनिंग पर्सनल होती है।

संगिनी की पाठिकाओं से क्या कहना चाहेंगी?

महिलाओं के पास अंदर की शक्ति है। अपने भीतर की ताकत को ढूंढ़ें। फिर ईमानदारी से वह काम करें, जो करना चाहती हैं। किसी से डरें नहीं। आज की औरत बहुत पावरफुल है। फैशन की बात करें तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि फैशन के नाम पर सब कुछ मत पहनिए, जो आपको सूट करता है, आपको अच्छा लगता है और जो आपकी पॉकेट के हिसाब से है उसे कॉन्फिडेंस के साथ पहनिए, आप उसी में खूबसूरत लगेंगी।

तीन अलग-अलग किरदारों की डिजाइनिंग के लिए खुद को किस तरह से तैयार किया?

किरदार और कहानी कहने का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है कॉस्ट्यूम। जब मैं इस फिल्म के लिए काम कर रही थी तो तीनों किरदारों को जी रही थी। संजय जी ने मुझे स्क्रिप्ट सेशन में साथ रखा। हमने सारी स्क्रिप्ट पढ़ी और समझी। मेंटल पिक्चर्स बननी शुरू हो गई कि कौन किस समय क्या पहनेगा? संजय जी इतने क्रिएटिव इंसान हैं कि वह गहराई के साथ ब्रीफ करते हैं। वह बताते हैं कि 'मस्तानी दीवानी हो गई...Ó के वक्त आईना महल है तो क्या कॉस्ट्यूम होना चाहिए? रंग ऐसा भी न हो कि भड़कीला लगे। उनके इंटरैक्टिव सेशन से गाइडेंस मिलती रही। कुछ अपने विचार डाले तो दो क्रिएटिव माइंड अगले स्तर तक पहुंचे। संजयलीला भंसाली जानते हैं कि कॉस्ट्यूम किरदार की भावनाओं को बाहर लाता है।

सुना है मस्तानी का ज्यादा रेफ्रेंस नहीं था। फिर टर्बन जैसे प्रयोग कैसे सामने आए?

मस्तानी का एक ही रेफ्रेंस है, जो पगड़ी पहने है। इंस्पीरेशन हमने वहीं से ली। शुरू में मुझे लगा कि पगड़ी कहीं अजीब न लगे। आज के जमाने में उसे खूबसूरत बनाना, पिक्चराइज करना, गाना गाना और दीपिका के पीछे झुकने पर भी पगड़ी का सिर पर टिका रहना जैसी चुनौतियां थीं, लेकिन हमने इन चुनौतियों को स्वीकारा। संजय लीला भंसाली चाहते थे कि मस्तानी के इस रियल लुक को फिल्म में जरूर लिया जाए। वह उसी अंदाज में मस्तानी को पेश करना चाहते थे। हमने वैसा ही किया। जब फैशन फोरकास्ट के कोर्स में अगले तीन साल के बाद के ट्रेंड को समझने की कला को मैंने दो सौ साल पीछे ले जाने में प्रयोग किया। सोचा कि उस वक्त लोग क्या सोचते होंगे? कैसा पहनते होंगे? क्या रंग चुनते होंगे? उनकी भावनाएं कैसी रही होंगी? हमने रिसर्च की, म्यूजियम देखे, पेंटिंग्स देखीं, लेकिन जब तक आप खुद भी उस समय पर नहीं उतरेंगे तो कुछ नहीं कर पाएंगे। अंदर से एक्सप्रेशन नहीं डालती तो कलेक्शन में स्ट्रेंथ नहीं आती।

यशा माथुर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.