टैलेंट ढूंढती हूं मैं
'बॉलीवुड हीरो मैटीरियल ढूंढ़ता है और मैं टैलेंट। मुझे एक्टर्स के साथ काम करना, एक्टिंग के लिए नए टैलेंट ढूंढऩा अच्छा लगता है। आउट ऑफ द बॉक्स कास्टिंग करना पसंद करती हूं मैं।' थियेटर से टीवी और फिर फिल्मों में कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में अपनी अलग पहचान बनाने वाली
'बॉलीवुड हीरो मैटीरियल ढूंढ़ता है और मैं टैलेंट। मुझे एक्टर्स के साथ काम करना, एक्टिंग के लिए नए टैलेंट ढूंढऩा अच्छा लगता है। आउट ऑफ द बॉक्स कास्टिंग करना पसंद करती हूं मैं।Ó थियेटर से टीवी और फिर फिल्मों में कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में अपनी अलग पहचान बनाने वाली नलिनी रत्नम का पूरा ध्यान रहता है नए टैेलेंट ढूंढऩे पर ...
कास्टिंग डायरेक्टर के इस प्रोफेशन की शुरुआत कैसे हुई?
लंबी कहानी है मेरी। मैं थियेटर आर्टिस्ट हूं और बचपन से मेरी बहुत रुचि थी एक्टिंग में। स्कूल, कॉलेज में मैंने कई अवाड्र्स जीते। बहुत सारा थियेटर किया बैंगलुरु में। उन दिनों मोबाइल फोन नहीं होते थे, लेकिन मेरी याददाश्त बहुत तेज थी। मुझे फोन नंबर याद रहते थे। मेरे पास डायरी भी होती थी जिसमें मैं बैंगलुरु के थियेटर ग्रुप्स के फोन नंबर्स लिख लेती थी। लोग मुझे फोन करते और कहते कि हमारा नाटक होने वाला है कोई एक्टर सजेस्ट करो। जैसे ही वे कैरेक्टर का रोल और जरूरत बताते मेरे दिमाग में फौरन आ जाता कि किसे लेना चाहिए। फिर वे उसका फोन नंबर मांगते तो वह भी मुझे याद होता। ऐसे ही मैंने बहुत सारे लोगों को कास्ट कर दिया, लेकिन वह सब थियेटर के लिए था। एक दिन मेरे दोस्तों ने कहा कि यह आपका टैलेंट है तो आप इसे प्रोफेशनली क्यों नहीं यूज करतीं। थियेटर द्वारा वर्ड ऑफ माउथ से ही मुंबई में लोगों ने मेरे बारे में सुना तो मुझे फोन आने लगे कि आप मुंबई में हमारे लिए कास्टिंग करेंगी क्या? कई विज्ञापनों के लिए मुझसे पूछा जाने लगा। इस तरह टीवी कमर्शियल्स के साथ कास्टिंग डायरेक्टर का यह काम शुरू किया।
बैंगलुरु से मुंबई और बॉलीवुड तक का सफर कैसे तय हुआ?
जब मैंने बहुत से टीवी कमर्शियल्स किए तो नेशनल अवार्ड विनर डायरेक्टर ओनेर ने मेरे बारे में सुना। उस समय वे 'आइ एमÓ की कास्टिंग करवाना चाहते थे। वे इस फिल्म की कास्टिंग के लिए मेरे घर बैंगलुरु आ गए। उनके लिए जब मैंने कास्टिंग की तो फिल्मों में कास्टिंग करने की शुरुआत हो गई। फिर आशुतोष गोवारिकर ने मेरे बारे में सुना और स्काइप पर मेरा इंटरव्यू लिया। उन्होंने 'बुद्धÓ के लिए मुंबई बुलाया। उस समय मैं बैंगलुरु में सेटल्ड थी और कास्टिंग के लिए ट्रैवल करती थी। मैं आशु सर के लिए मुंबई आई और 'बुद्धÓ के लिए कास्टिंग की। हालांकि बाद में यह पिक्चर बनी नहीं, लेकिन बॉम्बे में मुझे जितने भी लोग मिले उन्होंने कहा कि तुममें टैलेंट है। तुम्हें मुंबई आ जाना चाहिए। कुछ महीनों बाद मैं मुंबई आ गई। मुझे वर्ड ऑफ माउथ द्वारा ही एक के बाद एक फिल्म मिलती गई और कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में मेरी अलग पहचान बनती गई।
कैसी मुश्किलें आती हैं इस विशेष काम में?
टीवी कमर्शियल से लेकर फिल्मों तक कास्टिंग करते हुए मुझे पंद्रह साल हो गए हैं। इसमें मुश्किलें भी काफी आईं। आजकल लोग फिल्मों में तो आना चाहते हैं, लेकिन अपने ऊपर काम बिल्कुल नहीं करते हैं। बॉडी फिजीक बना लेते हैं, पर जबान साफ नहीं है, लहजा ठीक नहीं है, ठीक से हिंदी नहीं बोल सकते हैं। उनमें कोई टैलेंट दिखता ही नहीं है। दूसरे, हिंदी फिल्मों में डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के मन में एक स्टीरियोटाइप है कि मैं यह फिल्म बना रहा हूं और मुझे यही एक्टर चाहिए। इस स्टीरियोटाइप को ब्रेक करना सबसे मुश्किल है। मैं आउट ऑफ द बॉक्स कास्टिंग करना पसंद करती हूं। मैं उन्हें कास्ट करती हूं जिनके बारे में लोगों ने सोचा भी नहीं होता है। इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है। अगर कोई टैलेंट सिनेमा से गुम हो गया हो तो मैं उसे भी बाहर ले आती हूं।
ऐसा कोई वाकया जब आपने आउट ऑफ द बॉक्स कास्टिंग की हो?
मैंने 'खूबसूरतÓ की कास्टिंग की। आशुतोष गोवारिकर की 'मोहनजोदड़ोÓ के लिए करीब सौ लोगों की कास्टिंग की है। टीवी सीरियल एवरेस्ट के लिए करीब डेढ़ सौ लोग कास्ट किए थे जिसके लिए अवार्ड भी मिला था। जब मैं अनिल कपूर के लिए 'खूबसूरतÓ में कास्टिंग कर रही थी तो मैंने फवाद खान के ड्रामा देखे और उनको कास्ट किया। अगर मैं चाहती तो यहां से भी एक्टर ले सकती थी, लेकिन फवाद जो रियलटी लेकर आया है वह टच शायद यहां नहीं मिल पाता। इसी तरह से मैंने आमिर रजा हुसैन को लिया। उन्होंने 25 साल पहले हॉलीवुड में एक्ट किया था। वह दिल्ली के मशहूर थियेटर कलाकार हैं, लेकिन उनके बारे में किसी ने नहीं सोचा था। उन्हें मैंने खूबसूरत में कास्ट किया। इस तरह के काम करना ही पसंद करती हूं मैं। वैसे बॉलीवुड हीरो मैटीरियल ढूंढ़ता है। हीरो मैटीरियल में क्या आता है? बेस्ट लुकिंग...? लेकिन शाहरुख खान बेस्ट लुकिंग नहीं है। वह चार्मिंग हैं। फिर भी 25 साल से बॉलीवुड में छाए हैं। हीरो जैसे और रोमांस करने की काबिलियत रखने वाले चाहिए होते हैं बॉलीवुड को। यह एक पूर्वधारणा है और मुझे कहने में अफसोस होता है कि यह ठीक नहीं है। अलग क्वालिटीज के अलग-अलग लोग ढूंढऩे में मुझे मजा आता है।
कैसे ढूंढ़कर लाती हैं नए टैलेंट?
इसके लिए बहुत सारे थियेटर ग्रुप्स के साथ टच में हूं, लेकिन जिनके साथ नहीं हूं उनके बारे में भी रिसर्च करती हूं। देखती रहती हूं कि कहां, कौन, क्या कर रहा है? चाहे भोपाल हो या लखनऊ या पुणे या कोई और शहर। मेरी नजर आर्टिस्ट्स पर रहती है। नया टैलेंट और कहां से आएगा? मुंबई में तो पृथ्वी थियेटर है। बहुत से टैलेंटेड एक्टर्स हैं वहां जिन्होंने फिल्मों में काम नहीं किया है और करना चाहते हैं। मुझे एक्टर्स के साथ काम करना, एक्टिंग के लिए नए टैलेंट ढूंढऩा अच्छा लगता है। अच्छी बॉडी या गुडलुकिंग को तो कोई भी जज कर लेगा, लेकिन मेरी ख्वाहिश टैलेंट ढूंढऩे की है। इसलिए मैं मिस्टर इंडिया के कॉम्पिटिशन के साथ जुड़ी हूं और ऐसा टैलेंट छांट लेना चाहती हूं जिसे फिल्मों में लॉन्च किया जा सके। मैं इन्हें एक अलग नजरिए से देख रही हूं। इनकी आंखें देख रही हूं। इनकी आवाज और बोलने के तरीके को देख रही हूं। ये हरियाणवी में बोलें या राजस्थानी में, लेकिन कुछ तो अपना टैलेंट पेश करें। लड़कों में कुछ तो ऐसा हो जो मुझे मूव करे। दरअसल एक्टर्स कम्युनिकेटर्स होते हैं। उन्हें कम्युनिकेट करना होता है।
कास्टिंग करने वाला फुल टाइम जॉब और परिवार, कैसे मैनेज कर पाती हैं?
मैंने सत्रह साल की उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया था। थियेटर से पहले मैं गारमेंट बिजनेस में थी। फैशन इंडस्ट्री में थी। जॉब करती थी। वहां जीएम बनी, लोगों के लिए फैक्ट्री सेटअप की, लेकिन मैं बोर हो गई थी क्योंकि स्कूल के समय से ही मेरी परफॉर्मिंग आर्ट में रुचि थी। सिंगिंग, एक्टिंग में मन लगता था तो फिर मैंने थियेटर करना शुरू किया। मैंने प्लान कुछ नहीं किया, लेकिन जो काम करना चाहा, वह किया। परफॉर्मिंग आर्ट के साथ बने रहना मेरा पैशन था और उसे मैंने पूरा किया। जब बेटा छोटा था तब टाइम का इश्यू रहता था। मुश्किल होती थी। मैनेज करने के लिए हम मेड रखते हैं और उन पर ट्रस्ट करना ही पड़ता है। इसका बच्चे पर असर तो पड़ता है। सिंगल मदर होने के कारण भी मुश्किलें काफी रहीं, लेकिन अब मेरा बेटा गौरव बड़ा हो गया है, हम मुंबई में रहते हैं। गौरव सेलेब्रिटी मैनेजमेंट में काम करता है। वह काफी मेहनती है।
अगर युवा इस काम को करना चाहें तो उनमें कौन सी खूबियां जरूरी हैं?
कास्टिंग डायरेक्टर के प्रोफेशन के लिए जरूरी है कि आपके पास टैलेंट पहचानने की क्षमता हो। मुंबई में हर कोई कहता है कि वो कास्टिंग डायरेक्टर है, लेकिन वे कास्टिंग डायरेक्टर्स नहीं बल्कि एजेंट्स होते हैं। वास्तव में ऐसे कास्टिंग डायरेक्टर्स बहुत कम हैं जो हर चीज को देखते हैं। अगर किसी फिल्म में किसी करेक्टर को एक लाइन भी बोलनी है तो उसके लिए मैं खुद ऑडीशन लेती हूं। वहां बैठती हूं। उसमें एक्टर को ढूंढ़ती हूं। पहले दिन से ही पूरी तरह इनवॉल्व होती हूं। मैं ऐसा नहीं कर सकती कि अपने असिस्टेंट्स पर काम छोड़ दूं और खुद बाद में आकर देखूं। एक लाइन का डायलॉग भी जो बेहतर बोल सकता हो, उसका फेस भी मुझे पसंद हो तो ही मैं उसे कास्ट करती हूं। लीड एक्टर कास्ट करने के लिए तो मेहनत करती ही हूं, लेकिन छोटे-छोटे करेक्टर तय करने पर भी खासा ध्यान देती हूं मैं।
यशा माथुर