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मुस्कान दो खुशियां लो

ग्रामीण कारीगरों द्वारा बनाई वस्तुओं को मनदीप कौर सिद्धू वेबसाइट के जरिए अच्छे दामों में बिकवाकर लोगों को दे रही हैं अच्छे रोजगार का प्लेटफॉर्म भी..

By Srishti VermaEdited By: Published: Mon, 17 Apr 2017 01:34 PM (IST)Updated: Mon, 17 Apr 2017 02:16 PM (IST)
मुस्कान दो खुशियां लो
मुस्कान दो खुशियां लो

‘बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए। घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।’

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निदा फाजली के इस शेर को मनदीप कौर सिद्धू ने पूरी तरह अपने जीवन में उतार लिया है। लोगों के मन में मेहनत व खुशी के दीप जलाती मनदीप एक ओर अमृतसर के निकट स्थित गांव तांगड़ा के कारीगरों को उन्हीं के घर में रोजगार उपलब्ध करवा रही हैं, तो दूसरी ओर अपनी संस्था ‘स्माइल केयर’ के नाम के अनुरूप ही मुफ्त जूते बांटकर बच्चों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर रही हैं।

स्माइलबैक गारंटी
100 प्रतिशत ‘स्माइलबैक’ गारंटी के आश्वासन के साथ इन दिनों एक मिशन पर हैं मनदीप। वे जरूरतमंद बच्चों को 10,000 जूते बांटने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं। अपनी ही कंपनी के कट साइज जूते और दानी सज्जनों की मदद से वे पहली से पांचवी कक्षा तक के बच्चों को जूते देती हैं। संस्था के साथ जुड़े स्वयंसेवी विभिन्न स्कूलों व जरूरतमंद बच्चों के घर पहुंचकर जूते गिफ्ट करते हैं। मनदीप की संस्था जूतों के अलावा भोजन, कपड़े, पठन-पाठन सामग्री भी देती है। समय-समय पर रक्तदान व ब्लड ग्रुप जांच कैंप लगाना, नशे के विरुद्ध युवाओं में जागरूकता व नशा छुड़ाने में मदद करना, पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़ लगाने व वस्तुओं को रिसाइकिल करने के लिए प्रेरित करना, शाम को जरूरतमंद बच्चों के लिए पढ़ाई का प्रबंध करना भी संस्था के प्रमुख काम हैं। इन्हें कंप्यूटर और अंग्रेजी की शिक्षा भी दी जाती है।

ग्रामीण हुनर बने शहरी शान
मनदीप कहती हैं कि उनका मूल मंत्र है ‘रूरल पैशन टू सिटी ग्लैमर’। यानी ग्रामीण कारीगरों द्वारा जुनून और शौक से बनाई वस्तुओं को शहरी लोगों की शानोशौकत का सामान बनाकर गांववालों को अच्छे दाम दिलवाना। इस प्रकार वे न केवल गांववालों के लिए अच्छा रोजगार उपलब्ध करवा रही हैं साथ ही हुनर को प्रोत्साहित कर स्किल्ड इंडिया’ की झंडाबरदार भी बन गई हैं।

यूं बनीं सामाजिक कारोबारी
स्माइल्स.केयर की संस्थापक मनदीप कौर ने एलपीयू से एमबीए की पढ़ाई की है। शादी के बाद भी उन्होंने अपने मिशन के लिए ब्यास के निकटवर्ती गांव तांगड़ा में ही सिंबाकार्ट.कॉमनाम से स्टार्टअप शुरू कर गांव के लोगों की हस्तकला को पहचान दिलाने व उन्हें कमाई का साधन उपलब्ध करवाने की ठानी। इसके लिए यूएस में कार्यरत पति ने न केवल पूरे आर्थिक सहयोग का आश्वासन दिया बल्कि विदेशी लोगों को भी संस्था के साथ जोड़ा। इसके तहत मनदीप गांव की महिलाओं से आधुनिक स्टाइल के ऊनी वस्त्र, कुशन कवर, पंजाबी जूतियां आदि बनवाकर अपनी वेबसाइट पर बेचती हैं और उन्हें उचित मेहनताना दिलवाती हैं। इस प्रकार एक सामाजिक कारोबारी’ के रूप में उन्होंने पहचान बनाई है। आईआईटी, आईआईएम जैसे देश के विभिन्न शिक्षा संस्थानों व टेडेक्स (देश-विदेश में नई तकनीक, एंटरटेनमेंट व डिजाइन के आइडियाज को शेयर करने के लिए एक मंच) में एक आधुनिक महिला व्यवसायी के रूप में मोटीवेशनल लेक्चर दे चुकीं मनदीप ने गांव में ही ‘सिंबाक्वाट्र्स’ नामक एक कस्टमाइज्ड आईटी एंड डिजिटल मार्केटिंग फर्म भी शुरू की है। इसके लिए बंगलुरु से भी लोगों को काम पर रखा गया है। वे कहती हैं, ‘आम धारणा है कि गांव से कुछ बड़ा करना संभव नहीं लेकिन यदि सभी ऐसा ही सोचने लगे तो गांवों का विकास कैसे होगा? हमारी फर्म और एनजीओ के लिए हमने कोई सरकारी सहायता नहीं ली है। किसी बैंक पर निर्भर नहीं हुए। सारा फाइनेंस स्वयं मैनेज कर रहे हैं। इसमें पति का सबसे बड़ा सहयोग रहा है।हमारी शादी को तीन साल हो गए हैं लेकिन मैं यहां गांव में रहकर समाज सेवा के सपने को पूरा कर रही हूं और इसे वास्तविक रूप में साकार करने में मेरे पति भी जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।’

साधारण परिवार की असाधारण बेटी
मनदीप कौर सिद्धू के पिता सरबजीत सिंह की गांव तांगड़ा में आटा चक्की है और मां अरपिंदर कौर एक गृहिणी हैं। एक साधारण मध्यम परिवार में पली मनदीप एमबीए की सेमेस्टर फीस देने में आर्थिक रूप से असमर्थ थीं। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई में बढ़िया प्रदर्शन का वादा करते हुए फीस बाद में जमा करवाने का निवेदन कर मनदीप ने पढ़ाई जारी रखी। उनका यह निवेदन पिछले रिजल्ट को देखते हुए मंजूर कर लिया गया। बाद में उन्होंने यूनिवर्सिटी में टॉप कर अपनी बात सच साबित कर दी।

संबाकार्ट को एसोचैम (एसोसिएटेड चेंबर्स ऑफ कॉमर्स ऑफ इंडिया) की ओर से ‘बेस्ट अपकमिंग स्टार्टअप ऑफ द इयर 2016’ का सम्मान मिल चुका है। 1290 स्वयंसेवी जुड़े हैं मनदीप की संस्था के साथ।

-वंदना वालिया बाली

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