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कैंसर की वजह से नहीं मरना चाहती

जीवन-मरण हमारे हाथ में नहीं, फिर भी मैं कैंसर की वजह से नहीं मरना चाहती। मैं खुशी-खुशी दुनिया को विदा कहना चाहती हूं। इच्छा यही है कि स्टेज पर परफार्म करते हुए मरूं...कहती हैं इंडियन ऑयल में मुख्य प्रबंधक, लेखक,थिएटर आर्टिस्ट विभा रानी..

By Srishti VermaEdited By: Published: Mon, 06 Feb 2017 12:24 PM (IST)Updated: Mon, 06 Feb 2017 12:49 PM (IST)
कैंसर की वजह से नहीं मरना चाहती
कैंसर की वजह से नहीं मरना चाहती

अक्टूबर, 2013 में मुझे कैंसर होने की जानकारी हुई। मुझे अहसास था कि मेरे लेफ्ट ब्रेस्ट में गांठ बन रही है। मैंने कैंसर विशेषज्ञ को दिखाया। उन्होंने बायोस्पियर समेत कई टेस्ट कराने को कहा। मैंने सब कराया। उसके बाद मुझे काम के सिलसिले में भोपाल जाना था। मैं वहां चली गई। रिपोट्र्स का ख्याल ही नहीं रहा। अचानक उनकी याद आई। अपने पति से रिपोर्ट के बारे में पूछा। उन्होंने कहा, पॉजिटिव हैं। भोपाल से वापस आने पर उन्होंने डॉक्टर के पास चलने की बात कही। बीमारी की जानकारी होने पर भी मैं विचलित नहीं हुई। खुद को कमजोर महसूस नहीं किया। अगली सुबह हमारा इंस्पेक्शन था। मैं अपने काम में मशगूल रही। मेरी प्राथमिकता उसे कुशलता से पूरा करना था। हालांकि बीच-बीच में बीमारी की बात दिमाग में घूम फिरकर आ जाती थी। काम की अधिकता उससे ध्यान हटा देती थी।

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हंसकर मुसीबत का सामना


किसी मुसीबत को हल करने के दो रास्ते होते हैं। घुटने टेक दें या हिम्मत से सामना करें। मेरी सोच हमेशा से दूसरा रास्ता अख्तियार करने की रही है। मैं समस्या का रोना रोने में यकीन नहीं रखती। निगेटिव फोर्स मेरी जिंदगी, करियर और सोच को हमेशा बढ़ाने में कारगर रहे हैं। मेरा मानना है कि जिंदगी में हमेशा सब कुछ पाजिटिव नहीं होना चाहिए। निगेटिव भी होना चाहिए। कैंसर ने मुझे जिंदगी जीने की नई दिशा दी। मुझे याद है कि सर्जरी के लिए जाते समय मेरे परिजनों की आंखों में आंसू थे। आलम यह था कि मैं उन्हें ढांढ़स बंधा रही थी। दरअसल, दो साल पहले मेरी जेठानी का ब्रेस्ट कैंसर की वजह से निधन हो गया था। एक साल पहले मेरे बड़े भाई भी कैंसर की वजह दुनिया छोड़ गए थे। हाल के वर्षों में मैं अपने परिवार में कैंसर का तीसरा मामला रही। कुछ वर्षों पहले मेरे मामा जी गले के कैंसर की वजह से गुजर गए थे। अतीत के इन मामलों की वजह से परिजन सहमे थे। उनकी घबराहट जायज थी। मैं अपने परिवार की धुरी हूं। मैं भी अगर घबरा जाती तो वह उम्मीद की किरण खो बैठते। मैंने घबराहट छुपाकर मजबूत बनने की कोशिश की। इलाज के दौरान मेरे पति और दोनों बेटियों ने भी घबराहट छुपाए रखी। अस्पताल में मुझे छोटे-छोटे बच्चों और बुजुर्गों की तकलीफ ज्यादा कष्ट देती थी। उनका दर्द देखकर मैं अपना गम भूल जाती थी। खैर, कीमियोथेरेपी के दौरान तकलीफ होना लाजमी था। मैं भी उससे गुजरी। बस उन पलों में मैं हिम्मती और साहसी बनी रही।

दूसरों में दिलचस्पी
जैसे ही परिचितों को मेरी बीमारी की जानकारी हुई, सुबह से शाम तक फोन घनघनाते रहे। मैं सबके जवाब देते-देते थक गई। कहने को वे चिंतित थे, लेकिन सभी निराश थे। कीमोथेरेपी के कारण मेरे बाल गिर चुके थे। मेरी शक्ल बिगड़ चुकी थी। चेहरे का रंग काला पड़ चुका था। कुछ लोग उसी स्थिति में कैसी दिखती हूं, यह देखने की खातिर अस्पताल आए थे। मैंने उनकी निराशाजनक सोच और बातों को नजरअंदाज किया। क्रिएटिव चीजों पर फोकस किया। वह बीमारी से उबारने में मददगार रहीं। मेरा मानना है मरीज को बीमारी का अहसास नहीं कराना चाहिए। उससे गर्मजोशी और जिंदादिली से मिलना चाहिए। इससे उसका आत्मबल बढ़ता है।

समय का सदुपयोग
बीमारी से पहले तक मेरी कहानी और नाटक की 18 किताबें आ चुकी थीं। उस दरम्यान इंफेक्शन की वजह से घर से बाहर निकलने पर पाबंदी थी। मेरे जैसे क्रिएटिव इंसान के लिए यह बंदिश किसी सजा से कम नहीं थी। पानी को बहने से कितना भी रोको, वह अपना रास्ता तलाश लेता है। मैंने भी बंद दीवारों में जीने के रास्ते खोजे। मैंने कविता लेखन से शुरुआत की थी। बाद में गद्य की तरफ मुड़ गई थी, लेकिन मुझे लगा अभी भी कविताएं लिख सकती हूं। मन में जो आया, उसे लिखती गई। उन कविताओं में आशावाद लाने की कोशिश की। लिखते समय यह ध्याान रखा कि उससे सभी को जीवन जीने की प्रेरणा मिले। अस्पताल से बाहर आने पर उन्हें प्रकाशित करने पर विचार किया। अंग्रेजी में उसका नाम ‘कैन’ जबकि हिंदी में ‘समरथ’ है। यह किताब सिर्फ कैंसर पीड़ितों के लिए नहीं है। इससे होने वाली आय मैं कैंसर पीड़ितों के हितार्थ देती हूं। इसके अलावा मैंने रूम थिएटर की शुरुआत की। यह अभी भी संचालित होता है। मुंबईवासी उसमें शिरकत करते हैं। इससे साहित्य और कला जगत के लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

बीमारी को लेकर न झिझकें
महिलाएं अपनी बीमारी का जिक्र करने में झिझकती हैं। उन्हें झिझक छोड़नी होगी। अगर शरीर में आपको कुछ आसामान्य दिखे तो कैंसर के डॉक्टर से मिलने में हिचकें नहीं। कैंसर पीड़ितों के लिए एहतियात जरूरी है। मैं अक्सर काम के सिलसिले में ट्रैवल करती हूं, मगर एक्सरसाइज और योग नियमित रूप से करती हूं और खुद की फिटनेस के प्रति सजग रहती हूं। मैं तीखा, मिर्च मसाला वाला खाना नहीं खाती हूं। पानी का विशेष ख्याल रखती हूं। ट्रैवल करने के दौरान कुछ भी खाने के बजाय फल, सत्तू या जूस बेहतर विकल्प होते हैं।

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