बीती बातें याद आती हैं
धारावाहिक देवों के देव महादेव में माता पार्वती का किरदार निभा चुकी अभिनेत्री पूजा बोस को उनके चाहने वाले बहुत से लोग माता के रूप में ही कल्पना करते हैं। पूजा को मां पार्वती के रोल ने एक अलग पहचान और शोहरत दिलाई...
धारावाहिक देवों के देव महादेव में माता पार्वती का किरदार निभा चुकी अभिनेत्री पूजा बोस को उनके चाहने वाले बहुत से लोग माता के रूप में ही कल्पना करते हैं। पूजा को मां पार्वती के रोल ने एक अलग पहचान और शोहरत दिलाई...
मेरी राय में बंगालियों का ही नहीं, बल्कि देश का यह सबसे बड़ा त्योहार होता है। आप किसी भी शहर में जाएं, पाएंगे कि मंदिर हों या पंडाल दोनों बहुत खूबसूरती से सजाए गए हैं। हर पंडाल की एक अलग थीम होती है और वह बहुत क्रिएटिव तरीके से सजाया जाता है। अब तो नवरात्र के दिनों में भी बहुत काम रहता है, लेकिन बहुत मिस करती हूं पुरानी बातें और शरारतें। हम सब फ्रेंड्स मिलकर मस्ती करते थे। आजकल ज्यादा पूजा-अर्चना तो नहीं कर पाती, क्योंकि सुबह से रात तक सेट पर ही होती हूं, लेकिन कोशिश करती हूं कि नवरात्र के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करूं। मेरे घर वाले चाहते हैं कि दुर्गा पूजा के दौरान मैं घर पर ही रहूं, लेकिन काम के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाता। परिवार वालों से भी मिलना कम ही हो पाता है।
डांडिया का मौका नहीं मिलता
कई बार इवेंट में गेस्ट अपियरेंस के लिए जाती हूं तो दूसरों को खेलते देखकर ही खुश हो जाती हूं, क्योंकि खुद को तो डांडिया और गरबा खेलने का मौका ही नहीं मिलता है। यहां तक कि दुर्गा पूजा के पंडाल में भी दर्शन करने रात में बारह या एक बजे के बाद जाती हूं, जब भीड़ कम हो जाती है।
बचपन और नवरात्र
दुर्गा पूजा हमारा सबसे बड़ा त्योहार होता है। मेरे बचपन और नवरात्र दोनों का जबरदस्त कनेक्शन है। दुर्गा पूजा के दौरान ही सबसे ज्यादा गिफ्ट मिलते हैं, क्योंकि घर पर बहुत सारे रिश्तेदार आते हैं। बचपन में हमें भी ढेर सारे कपड़े मिलते थे। दुर्गा पूजा के दौरान मम्मी, पापा, चाचा, बुआ, मासी से जो गिफ्ट्स और कपड़े मिलते थे उन गिफ्ट्स और कपड़़ों का कॉम्पिटिशन दोस्तों में होता था। जिसके पास सबसे ज्यादा होते थे, वो ही शो ऑफ करता था। पंडालों में जाकर खाना, मस्ती करना और स्कूल से छुट्टी मारने में मजा आता था, क्योंकि दुर्गा पूजा के दौरान स्कूल से छुट्टी मारने का लाइसेंस सा हम बच्चों के पास होता था। माता-पिता भी रिश्तेदारों के सामने कुछ नहीं कहते थे। हम बच्चे भी इस बात का बहुत फायदा उठाते थे। बचपन की वे सब बातें बहुत याद आती हैं।
शिखा धारीवाल