फाल्गुनी पाठक: डांडिया की रानी
डांडिया के माहौल में फाल्गुनी पाठक के गीतों के बिना रौनक नहीं आती डांस फ्लोर पर। 'मेरी चूनर उड़ उड़ जाए', 'चूड़ी जो खनके हाथों में' जैसे म्यूजिकल हिट्स की यह मल्लिका आज भी हिट है गरबा डांडिया नाइट्स में...
नवरात्र के आखिरी दिनों में पूजा के बीच होती है डांडिया और गरबे की धूम। इनमें माहौल बना देते हैं
फाल्गुनी पाठक के गीत। वह नियमों का पालन तो करती ही हैं और टीम के साथ शो बना देती हैं फुल पैसा वसूल। मुंबई के चर्चगेट स्थित एक होटल में बैठीं शांत स्वभाव की फाल्गुनी से, 'आप 52 साल की हैं ऐसे में डांडिया के
सुरों और गीतों के बीच खुद को कैसे ढाल लेती हैं?' पूछने पर वह अपनी टीम की तरफ एक नजर देखते हुए कहती हैं, 'अरे यार विकिपीडिया की मत मानो मैं 52 की नहीं 45 की हूं। लोग विकिपीडिया पर कुछ भी डाल देते हैं।'
एज लेस ब्यूटी
देखा जाए तो बात भी सही है। थोड़े तंदुरुस्त शरीर वाली छोटे कद की फाल्गुनी काली फॉर्मल जैकेट, ट्राउजर और गले में पेडेंट पहने कई सालों से ऐसी ही दिख रही हैं। उनको इस अवतार में देखकर बता पाना मुश्किल होता है कि उनकी उम्र कितनी होगी। एक समय था, जब यह चेहरा अपने गानों के कारण हर किसी का चहेता था। हालफिलहाल वो कैमरे की नजर से काफी दूर रहती नजर आईं, पर हर साल मुंबई और देश के कई शहरों में वह नवरात्र में अपने 'ता थईया' जैसे कमाऊ बैंड के साथ नौ से 11 दिनों के लिए आती हैं और फिर दोबारा अपनी
दुनिया में चली जाती हैं। इसके बाद आप न तो उनके बारे में कोई बात सुनेंगे और न ही उन्हें किसी एल्बम, साउंडटै्रक या कंसर्ट में देखेंगे।
हर साल यही कहानी
फाल्गुनी 1994 से 15,000 से 25,000 तक लोगों की भीड़ को अटेंड करने की तैयारियां कर रही हैं। शुरुआत उन्होंने अपने जनपद खार में नवरात्र महोत्सव में गाने से की थी। हालांकि उनके पिता इस कॅरियर को पसंद नहीं
करते थे। वह कहती हैं, 'अब वह इस दुनिया में नहीं हैं पर मुझे पता है कि उन्हें मुझ पर गर्व होता।' हर
पिता अपनी ऐसी बेटी पर जरूर गर्व करता है।
सदाबहार है परी
फाल्गुनी में ऐसी क्या बात है जो उन्हें अपनी फील्ड में नंबर वन बनाती है? ऐसा क्या अलग है गरबा के संगीत में? फाल्गुनी कहती हैं, 'कॅरियर के शुरुआती दिनों में शो के दौरान लोग सुनीता राव का गाना 'परी हूं मैं' की फरमाइश करते थे। दरअसल यह गाना डांडिया के लिए एकदम परफेक्ट है।'
गुजराती संस्कृति पर बनी
'काई पो छे' में भी गरबा सीन में सुनीता राव का यह गाना प्रयोग किया गया था। फाल्गुनी मानती हैं कि इस
फिल्म का 'शुभारंभ' गाना भी डांडिया के लिए एकदम आदर्श है। इस सबके पीछे की असल कड़ी फाल्गुनी बताती हैं, 'देखिए बात एकदम सीधी है। गरबा के दौरान 'ठेका' बीट का प्रयोग होता है, जो डमरू की 'डकला' बीट
से तैयार होती है। इसे गुजराती मंदिरों में बजाया जाता है। मैं इस बात का ध्यान रखती हूं कि गाना चाहे जो भी हो, पर धुन न बिगड़े।'
मैनेज करती पूरी टीम
अपनी ऑडियंस की धड़कनों को थिरका देने वाली फाल्गुनी का काम वर्ष 2000 में थोड़ा प्रभावित हुआ। जब सरकार ने रात 10 बजे के बाद पब्लिक एरिया में स्पीकर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। हालांकि 2002 में नियम में थोड़ा बदलाव हुआ कि नवरात्र के सप्ताहांतों में आधी रात तक गाने बजाए जा सकते हैं।
फाल्गुनी कहती हैं, 'मुझे हर हाल में साढ़े तीन घंटे के अंदर पूरा शो खत्म करने के साथ ही यह भी देखना होता था कि शो फुल पैसा वसूल भी हो।' क्या इसका असर उनकी कमाई पर भी पड़ा? सुना है कि आप 10 दिनों के शो के लिए काफी अधिक रकम लेती हैं, क्या यह सच है?
इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि अधिक फीस तब होती है, जब वह मुंबई
के बाहर परफॉर्म करती हैं। वह आगे कहती हैं, 'मेरी इस फीस में मुझे 40 म्यूजिशियन, कॉस्ट्यूम्स, रिहर्सल, साउंड और लाइट सबका अरेंजमेंट करना होता है।'
मयंक शेखर
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