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जुड़वां सोच हमारी

‘एनएच-10’ की सफलता के बाद अपने बैनर तले ‘फिल्लौरी’ लेकर आ रही हैं अनुष्का शर्मा। कर्णेश शर्मा इस बैनर के सहनिर्माता और अनुष्का के भाई हैं। अजय ब्रह्मात्मज से साझा बातचीत के अंश...

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Sun, 19 Feb 2017 01:06 PM (IST)Updated: Mon, 20 Feb 2017 02:37 PM (IST)
जुड़वां सोच हमारी
जुड़वां सोच हमारी

बॉलीवुड में अभिनेत्री के तौर पर अनुष्का स्थापित नाम हैं। उनकी रुचि फिल्म निर्माण में भी है और भाई कर्णेश शर्मा के संग वे अपने बैनर की जिम्मेदारी को बखूबी संभाल रही हैं। ‘एनएच-10’ के बाद ‘फिल्लौरी’ दूसरी ऐसी फिल्म है, जिसका निर्माण दोनों ने संयुक्त रूप से ‘क्लीन स्लेट फिल्म्स’ के अधीन किया है।

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सफल हुआ पहला कदम
इस सफर के आगाज को कर्णेश जाहिर करते हैं, ‘एनएच-10’ पहला मौका था जब हम दोनों ने इस भूमिका के बारे में सोचा। दरअसल, हम अच्छी कहानियों को मुकम्मल मंच मुहैया कराना चाहते हैं। शुरुआत तो अच्छी हुई है। हमारी कंपनी का मकसद केवल अनुष्का के लिए या उन्हें ध्यान में रखकर फिल्में बनाना नहीं है। शुरुआती फिल्मों में उनकी मौजूदगी से कंटेंट को मदद तो मिली ही, रिलीज के लिए ठीक-ठाक तादाद में स्क्रीन भी मिले। फिर जब, वे एक बेहतरीन और सफल अदाकारा भी हैं तो फिल्म का हिस्सा भी क्यूं न रहें? उद्देश्य यह रहा कि
फिल्म की बेहतरी के लिए जो भी अच्छा हो, हम करेंगे। अलबत्ता, हम आगे उनके बिना भी फिल्में बनाएंगे।’ अनुष्का इसमें अपने विचार जोड़ती हैं। उनके शब्दों में, ‘मुझसे लोगों ने कहा था कि एक अभिनेत्री तब निर्माण में कदम रखती है, जब उसका कॅरियर ढलान पर होता है। मैं अभी कॅरियर के उठान पर ही हूं। मेरा मानना है कि मैं इस वक्त बैंकेबल एक्ट्रेस हूं। मेरी मौजूदगी से कोई फिल्म एक खास बजट में बन सकती है। लिहाजा मैं इसे क्यों न इस्तेमाल करूं?’

लीक से हटकर पहचान
अनुष्का कहती हैं, ‘हम फिल्में अलग तरह से डिजाइन कर रहे हैं। एक्टर को दिमाग में पहले ही बिठाकर किरदार के बारे में नहीं सोचते। आगे ऐसा बिल्कुल मुमकिन है कि किसी किरदार में मैं फिट न बैठूं। फिर वहां मैं एक्टर के तौर पर नहीं जुडूंगी। उस रोल के लिए जो एक्टर सही होंगे, उन्हीं को कास्ट किया जाएगा। हम जो कुछ भी करना चाहते हैं, उसको लेकर पूरी क्लियरिटी है। हमारी फिल्में देखने के बाद इंडस्ट्री को अंदाजा लगेगा कि हम क्या
करना चाहते हैं। इस काम में बाकी लोगों का भी साथ मिल रहा है। ‘क्रियाज’ नामक कंपनी है। उनके
साथ हम कुछ लीक से हटकर फिल्में बना रहे हैं।’

नहीं चलनी भेड़चाल
अनुष्का-कर्णेश के बैनर का नाम ‘क्लीन स्लेट’ है। इस नाम का आइडिया अनुष्का का था। कर्णेश बताते हैं, ‘हम लोग एक दिन वीडियो गेम खेल रहे थे। विमर्श चल रहा था कि कंपनी का नाम क्या रखा जाए। अनुष्का ने झट कहा, ‘क्लीन स्लेट’। वह इसलिए कि हम कुछ भी पूर्वाग्रह के साथ नहीं करना चाहते थे।’ अनुष्का कहती हैं, ‘मुझे भेड़चाल से बड़ी प्रॉब्लम है। अगर कोई जॉनर चल पड़ा तो उसी लीक पर चलने का सिलसिला शुरू हो जाता है। हम ऐसा नहीं चाहते हैं। हमारी हर फिल्म पिछली वाली से अलग होगी। हम ज्यादा से ज्यादा अनूठा काम करना
चाहते हैं।’

चखा दुनियाभर का सिनेमा
कर्णेश पहले मर्चेंट नेवी में थे। वहां काम की अलग डिमांड रहती है। क्या उन दिनों फिल्मों से किसी प्रकार का जुड़ाव था? कर्णेश ‘हां’ में जवाब देते हैं। वे कहते हैं, ‘शिप पर मेरी ड्यूटी तकरीबन 18 घंटे की होती थी। हम दुनिया से कटे रहते थे। मनोरंजन का एकमात्र साधन फिल्में ही हुआ करती थीं। मैं रोज एक फिल्म देखा
करता था। सिर्फ हिंदी ही नहीं, हॉलीवुड और वर्ल्‍ड सिनेमा भी। मैंने जर्मनी, फ्रांस, पनामा से लेकर अर्जेंटीना तक की फिल्में देखी हैं। इससे फिल्मों की ठीक-ठाक समझ तो आ ही गई थी, बाकी यह नहीं कहूंगा कि मैं बहुत क्रिएटिव हूं।’ पर अनुष्का कर्णेश को काबिल मानती हैं। उनके शब्दों में, ‘इनमें हीरे को परखने की भरपूर खूबी है।
दूसरी चीज यह भी कि ये शिप का मैनेजमेंट संभालते रहे हैं, जिसका बजट करोड़ों में होता है। इन्हें लोगों को हैंडल करना बड़े अच्छे से आता है। मुझमें यह खूबी नहीं है। हम दोनों की सोच एक ही है। अगर हमारी पैदाइश में चार-पांच साल का फर्क नहीं होता तो लोग हमें जुड़वां कह देते।’

अलहदा है फिल्लौरी
‘एनएच-10’ में महिला हक और अस्मिता की बात थी। ‘फिल्लौरी’ जरा अलग है। दोनों भाई-बहन लगभग एक स्वर में बताते हैं, ‘फिल्म पंजाब के फिल्लौर इलाके में सेट है, वहां के लोगों को फिल्लौरी कहा जाता है। एक मांगलिक लड़का है। ग्रह-दोष दूर करने के लिए कहा जाता है कि उसे पेड़ से शादी करनी होगी। वह चाहता तो नहीं
है, फिर भी कर लेता है। उस पेड़ में भूतनी रहती है। वह भूतनी मैं (अनुष्का) बनी हूं। वह टिपिकल भूतनी नहीं है, जो लोगों को डराती है। वह इस शादी से खुद डरी हुई है। उसके लिए भी इस किस्म की चीज अजीबोगरीब है। चूंकि वह पुराने जमाने से है, जब आस-पास बिजली भी नहीं हुआ करती थी तो आज की तारीख की चीजों को देखकर वह हक्की-बक्की है। उन दोनों का सफर आगे क्या रूप लेता है, यह उसकी बानगी है।’

अजय ब्रह्मात्मज


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