सेल की तीसरी तिमाही गिरती कीमतों और बढ़ते आयात से प्रभावित
जागरण संवाददाता, राउरकेला : स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड (सेल) ने वित्त वर्ष 2015-16 की तीसरी
जागरण संवाददाता, राउरकेला : स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड (सेल) ने वित्त वर्ष 2015-16 की तीसरी तिमाही में तप्त धातु (हॉट मेटल), कच्चा इस्पात (क्रूड स्टील) और विक्रेय इस्पात के उत्पादन में वृद्धि दर्ज की है, जो मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के मु़काबले क्रमश: 2त्न, 4त्न और 14त्न अधिक है। सेल ने पिछली तिमाही के मु़काबले विक्रय में 6त्न की बढ़ोत्तरी करते हुए के 29.06 लाख टन विक्रय किया। इसी तरह से, तीसरी तिमाही में तकनीकी-आर्थिक मानकों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। सेल ने पिछली तिमाही के मु़काबले, मौजूदा तिमाही में ब्लास्ट फर्नेस उत्पादकता में 4त्न की वृद्धि और कंटिन्यूअस का¨स्टग में 6त्न की वृद्धि हासिल की है।हालांकि कंपनी को वित्त वर्ष 2015-16 की तीसरी तिमाही में, पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में दर्ज किए 579 करोड़ रुपये के लाभ के मु़काबले 1529 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है, जो प्राथमिक रूप से पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के मु़काबले शुद्ध विक्रय प्राप्ति में 24त्न की कमी की वजह से हुआ है। कम कीमत में भारी मात्रा में इस्पात आयात के कारण विक्रय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।पिछले वर्ष के मु़काबले वैश्विक इस्पात कीमतों में भारी कमी आई है। कीमतें लगभग 460 डॉलर से घटकर 280 डॉलर तक आ गईं। इसका मुख्य कारण चीन में इस्पात की खपत में कमी आने से, बा•ार में सस्ते इस्पात की अधिक आपूर्ति हो गई है। भारत में इस्पात आयात की वार्षिक दर 120 लाख टन है, जो वित्त वर्ष 2014-15 के अत्यधिक उच्च आधार के मु़काबले 20त्न अधिक है, जिसमें पहले ही वित्त वर्ष 2013-14 के मु़काबले 75त्न की तीव्र वृद्धि दर्ज की गयी थी। घरेलू इस्पात उद्योग मुख्य रूप से चीन, जापान और कोरिया से लगातार बढ़ते आयात से बुरी तरह प्रभावित है। इन देशों से आयातित इस्पात की कीमतें घरेलू उत्पादन लागत से भी बहुत कम हैं, जिससे भारत में इस्पात उत्पादन करने वाली कंपनियों का लाभार्जन प्रभावित हो रहा है।सेल अध्यक्ष श्री पी के ¨सह ने कहा, “वैश्विक परि²श्य बहुत ही चुनौतीपूर्ण है और मांग-आपूर्ति में असंतुलन से कीमतों में समायोजन घरेलू इस्पात उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है। हम अपनी नई इकाइयों से उत्पादन में तेजी लाने पर ध्यान केन्द्रित किए हुए हैं और शुद्ध विक्रय प्राप्ति बढ़ाने के लिए लागत प्रभावी रणनीतियों को अपना रहे हैं। सरकार द्वारा हाल ही में घोषित अनुकूल नीतियों और संबन्धित क्षेत्रों में आधारभूत संरचना खर्चों में बढ़ोत्तरी से घरेलू मांग बढ़ेगी और भारतीय उद्योग को कुछ राहत मिलेगी।