नवकलेवर महोत्सव को लेकर उत्साह
जागरण संवाददाता, राउरकेला: विश्व प्रसिद्ध पुरी जगन्नाथ धाम समेत राज्य भर के जगन्नाथ मंदिरों में न
जागरण संवाददाता, राउरकेला:
विश्व प्रसिद्ध पुरी जगन्नाथ धाम समेत राज्य भर के जगन्नाथ मंदिरों में नवकलेवर महोत्सव को लेकर भक्तों का उत्साह चरम पर है। दारू की पहचान के बाद दारू छेदन के पश्चात महाप्रभु जगन्नाथ समेत देवी सुभद्रा व भगवान बलभद्र के विग्रह का निर्माण पारंपरिक रीति-नीति के साथ शुरू हो गया है। शहर के अहिराबंध, उदितनगर, झीरपानी, नयाबाजार, सेक्टर-6, हनुमान वाटिका आदि स्थानों पर जगन्नाथ मंदिरों में नवकलेवर महोत्सव को लेकर अंचल के भक्तों में उत्साह देखा जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि श्री जगन्नाथ महाप्रभु अनादिकाल से ही दारू ब्रह्म के रूप में पूजे जाते हैं। दारू शब्द का सामान्य अर्थ है काष्ठ या काठ। भक्ति, मुक्ति और शांति प्रदान करने वाले जिस दारू देव के दर्शन मात्र से संसार के सभी दुखों का नाश हो जाता है, काष्ठ मूर्ति में विद्यमान उसी ब्रह्म को दारू ब्रह्म कहते हैं। यह दारू अर्थात नीम के काठ से निर्मित मूर्ति है जो बारह वर्ष के उपरांत युग्म आषाढ़ होने पर पुराने कलेवर को त्याग कर नये कलेवर को ग्रहण कर लेती है। इसे ही नवकलेवर कहा जाता है। महाप्रभु के पुराने कलेवर को तज कर नये कलेवर को इसलिये धारण किया जाता है क्योंकि सभी विग्रह काष्ठ से निर्मित होते हैं जो विशेष प्रकार के नीम के पेड़ से बनाया जाता है। काष्ठ निर्मित होने के कारण यह विग्रह दीर्घकाल तक स्थायी नहीं रह सकते। इसीलिए कुछ वर्ष के अंतराल पर नए विग्रहों के निर्माण की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए नीम पेड़ अर्थात दारू की आवश्यकता पड़ती है। नवकलेवर के लिए चुने जानेवाले नीम पेड़ों के लिए कुछ नियम भी हैं। मसलन इस पेड़ में चार से सात शाखा होने, यह दस से 12 फुट तक ऊंचा होना, वज्रपात या किसी प्रकार से खंडित न होना, पंछी का घोंसला न होना, पास में देवालय, मठ, श्मशान आदि न होना, वृक्ष ¨कचित श्यामवर्णी होने व उस पर शंख, चक्र, गदा, पद्म के चिह्न होना, वृक्ष की जड में नागदेव की बांबी होना जरूरी है।