फेसबुक के संस्थापक जकरबर्ग ने दिया ऐसा भाषण, खुद भी रोए, सुनने वाले भी रो पड़े
हार्वर्ड ने शुक्रवार को जकरबर्ग को मानद उपाधि से सम्मानित किया।
[स्पेशल डेस्क], नई दिल्ली। अमेरिका के कैमब्रिज में स्थित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी दुनिया के उन प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शुमार है जहां से डिग्री लेना दुनिया भर के लोगों का सपना होता है। 1636 में स्थापित हुए इस विश्वविद्यालय में दुनिया भर की तमाम महान हस्तियों ने पढ़ाई की है। इसमें अमेरिका के 8 राष्ट्रपति, माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून सहित कई दिग्गज शामिल हैं। इन्हीं में एक नाम है फेसबुक के 33 वर्षीय संस्थापक मार्क जुकरबर्ग का, बस फर्क इतना है कि फेसबुक को तैयार करने के लक्ष्य और जिद के कारण उन्होंने हार्वर्ड को बीच में ही अलविदा कह दिया था। आज वो एक जानी-मानी हस्ती हैं तो हार्वर्ड ने उन्हें शुक्रवार को मानद उपाधि से सम्मानित करने का फैसला किया। ये हार्वर्ड के 2017 बैच के दीक्षान्त समारोह का मौका था।
- बारिश में भी बैठे रहे लोग
बाहर बारिश हो रही थी लेकिन 2017 बैच के सभी छात्र और उनके परिजन वहां संयम से बैठे रहे क्योंकि वे जकरबर्ग का भाषण सुनने को बेताब थे। इन्हीं के बीच जकरबर्ग की पत्नी प्रिसिला चान भी थीं जो रेनकोट पहने सबसे आगे की पंक्ति में मौजूद थीं।
जकरबर्ग ने अपने भाषण के दौरान अपने सफर की चर्चा की और वहां मौजूद छात्रों को अहसास दिलाया कि जो डिग्री आज वो लेकर जा रहे हैं उसका कितना महत्व है। जकरबर्ग ने कहा, 'आप सबने आज वो हासिल कर लिया है जो मैं हासिल नहीं कर सका (हार्वर्ड की डिग्री)।'
- जब रो पड़े जकरबर्ग और वहां मौजूद सभी
जकरबर्ग ने अपने भाषण के दौरान कई मौकों पर ये बताने का प्रयास किया कि पैसा कमाना जरूरी है और इसके लिए काम करना भी लेकिन हमे अगर दुनिया में फर्क लाना है तो समाज के विकास और हर वर्ग के लोगों के बारे में भी सोचना होगा। इसी बीच जकरबर्ग तब बेहद भावुक हो गए जब उन्होंने दो लोगों से जुड़े किस्से सुनाए। पहला किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा, 'एक छात्र था जो जिंदगी भर यहीं रहा लेकिन एक दिन वो इस डर में था कि उसे जल्द ही इस देश से बाहर (डिपोर्ट) किया जा सकता है। उसे इस बात का डर था कि जिस देश में वो बड़ा हुआ, जिसको वो हमेशा अपना घर मानता आया था वही देश अब उसको यहां के कॉलेज में पढ़ाई करने की इजाजत नहीं देगा।'
ऐसा ही एक किस्सा उन्होंने सुनाया जिसमें वो कहते हैं कि, 'वो छात्र मुझसे मिला और जो देश (अमेरिका) में अवैध रूप से रह रहा था। उसका जन्मदिन था और मैंने उससे पूछा कि उसे क्या तोहफा चाहिए, तो उसने कहा कि वो लोगों की मदद करना चाहता है इसलिए उसे सामाजिक न्याय (social justice) पर आधारित किताब चाहिए। उस छात्र का लक्ष्य बहुत सराहनीय और बड़ा था। मैं उसका नाम तक नहीं ले सकता क्योंकि मैं उसको किसी खतरे में नहीं डालना चाहता। ये एक ऐसा युवा है जिसे निंदा करने का पूरा हक है लेकिन वो खुद पर ही तरस खा रहा था। उसका लक्ष्य बहुत बड़ा था।'
- एक कमरे में बना डाली थी 'फेसबुक' वेबसाइट
गौरतलब है कि मार्क जकरबर्ग जब हार्वर्ड में पढ़ रहे थे उसी दौरान उन्हें अपने डॉर्म यानी जिस कमरे में वो कुछ साथियों के साथ रहते थे, वहीं पर उन्होंने फेसबुक वेबसाइट बना डाली थी।
शुरुआत में इसे कॉलेज के छात्रों को जोड़ने वाली एक वेबसाइट के रूप में बनाया गया था और धीरे-धीरे इसने बड़ा रूप ले लिया। कॉलेज ने उन्हें कैम्पस में ऐसा कुछ करने का दोषी करार दिया था हालांकि जकरबर्ग थमे नहीं। कुछ साथियों के साथ फेसबुक की स्थापना की और आगे बढ़ते गए। बीच में कुछ चुनौतियां भी आईं जिसके बारे में जकरबर्ग ने अपने भाषण में जिक्र किया ताकि छात्रों को प्रेरित किया जा सके। उन्होंने कहा, 'फेसबुक के शुरुआती दिनों में सब कुछ अच्छा नहीं था। एक कंपनी ने फेसबुक को ओवरटेक करने का प्रस्ताव रख दिया था। वो काफी खराब समय था। कंपनी के एक सलाहकार ने बताया कि अगर मैंने इसे नहीं बेचा तो मैं जिंदगी भर पछताऊंगा। इस दौरान सबने मेरा साथ छोड़ दिया। सब चले गए, मैं अकेला हो गया था, बेबस महसूस करने लगा था। मैं सिर्फ 22 साल का एक लड़का था जो नहीं जानता था कि दुनिया कैसे चलती है।' इसके बाद जो कुछ हुआ वो दुनिया ने देखा। जकरबर्ग ने हार नहीं मानी, वो संघर्ष करते रहे और फेसबुक को इस मुकाम तक पहुंचाया। आज फेसबुक 72 बिलियन डॉलर की कंपनी है और जकरबर्ग दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार किए जाते हैं।