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सामने आई श्रीलंकाई सेना की दरिंदगी

जेनेवा। श्रीलंकाई सेना ने देश में 26 साल तक चले गृह युद्ध के आखिरी महीनों के दौरान अनगिनत युद्ध अपराध किए थे। श्रीलंका के जोरदार विरोध के बावजूद पहली बार प्रदर्शित की गई ब्रिटिश डॉक्यूमेंट्री में सैनिकों द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार को दिखाया गया है। चैनल-4 द्वारा निर्मित 'नो फायर जोन-द किलिंग फील्ड्स ऑफ श्रीलंका' मइ

By Edited By: Published: Sat, 02 Mar 2013 04:53 PM (IST)Updated: Sat, 02 Mar 2013 05:48 PM (IST)
सामने आई श्रीलंकाई सेना की दरिंदगी

जेनेवा। श्रीलंकाई सेना ने देश में 26 साल तक चले गृह युद्ध के आखिरी महीनों के दौरान अनगिनत युद्ध अपराध किए थे। श्रीलंका के जोरदार विरोध के बावजूद पहली बार प्रदर्शित की गई ब्रिटिश डॉक्यूमेंट्री में सैनिकों द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार को दिखाया गया है।

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चैनल-4 द्वारा निर्मित 'नो फायर जोन-द किलिंग फील्ड्स ऑफ श्रीलंका' मई, 2009 में समाप्त हुए गृहयुद्ध के आखिरी 138 दिनों की दहला देने वाली तस्वीर पेश करती है। इसमें तमिल विद्रोहियों, नागरिकों और विजयी श्रीलंकाई सैनिकों द्वारा लिए गए वीडियो और तस्वीरों का प्रयोग किया गया है। फिल्म मेकर कैलम मैकरे ने शुक्रवार को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फिल्म के प्रदर्शन से पहले जोर दिया कि इसे युद्ध अपराध के सुबूत और मानवाधिकार के खिलाफ अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा,'असली सच बाहर आ रहा है।'

जेनेवा में श्रीलंका के राजदूत रविनाथ आर्यसिन्हा ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक से इतर फिल्म के प्रदर्शन का जोरदार विरोध किया। उन्होंने इसे दोषपूर्ण और जानबूझ कर संचालित अभियान का हिस्सा बताया ताकि परिषद में देश में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर जारी बहस को प्रभावित किया जा सके।

फिल्म का प्रदर्शन आयोजित करने वाली मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल परिषद से मामले की अंतरराष्ट्रीय जांच कराने की मांग कर रही है। उसने आरोप लगाया कि श्रीलंका के लेसंस ल‌र्न्ट एंड रिकंसिलीऐशंस कमीशन [एलएलआरसी] ने सेना की भूमिका को नजरअंदाज किया। फिल्म में उदाहरण के तौर पर आरोप लगाया गया है कि जनवरी, 2009 में सरकार ने नो फायर जोन स्थापित किया। मूल रूप से यह हजारों नागरिकों फंसाने की चाल थी जो सुरक्षा की आस में इसमें आ गए थे।

दरअसल, यह भारी गोलाबारी का क्षेत्र था। फिल्म में अपंग, खून से लथपथ महिलाओं, बच्चों और पुरुषों के शरीर को बिखरे दिखाया गया है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि युद्ध के आखिरी महीनों में करीब 40 हजार लोग मारे गए थे। इनमें से ज्यादातर श्रीलंकाई सेना द्वारा की गई अंधाधुंध गोलीबारी में मारे गए थे।

क्षेत्र में दो सप्ताह के लिए फंसे संयुक्त राष्ट्र के कार्यकर्ता पीटर मैकके ने फिल्म में सवाल उठाया कि सरकार ने अपने सभी तोपखाने की सीमा के भीतर क्यों नो फायर जोन बनाया। उनका मानना है कि लोगों को जानबूझ कर निशाना बनाया गया।

वीडियो फुटेज में माता-पिता को उनके मर रहे या मृतक बच्चों के शवों पर विलाप करते दिखाया है। फिल्म में लिट्टे प्रमुख दिवंगत वी. प्रभाकरण के 12 साल के बेटे के सीने में पांच गोली लगी दिखाई गई है। इसमें एक तमिल कमांडर से पूछताछ का वीडियो है। उसके बाद गंदगी में उसके क्षत-विक्षत शरीर की तस्वीर है। इसके अलावा निर्वस्त्र महिलाओं और निर्ममता से मारे गए कैदियों को देखने से स्पष्ट है कि उनके साथ यौन दु‌र्व्यवहार किया गया। इसे सैनिकों की अपमानजनक टिप्पणी के बीच फिल्माया गया है। वहीं श्रीलंका सरकार ने फुटेज की प्रामाणिकता पर संदेह जताया है।

अमेरिका लाएगा श्रीलंका के खिलाफ नया प्रस्ताव

वाशिंगटन । अमेरिका कथित युद्ध अपराधों को लेकर श्रीलंका के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के वर्तमान सत्र में नया प्रस्ताव लाएगा। प्रस्ताव में श्रीलंका सरकार से देश में सामंजस्य को बढ़ावा देने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कहा जाएगा।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता पैट्रिक वेंट्रेल ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, 'प्रस्ताव में श्रीलंकाई सरकार से कहा जाएगा कि वह अपने लोगों के प्रति वचनबद्धता को पूरा करे और लेसंस ल‌र्न्ट एंड रिकंसिलिएशन कमीशन द्वारा की गई रचनात्मक अनुशंसाओं को लागू करे।' अमेरिका पिछले वर्ष भी ऐसा प्रस्ताव लाया था। वेंट्रेल ने कहा कि नया प्रस्ताव 2012 के प्रस्ताव पर आधारित होगा। उस प्रस्ताव में श्रीलंका से देश में सामंजस्य और जवाबदेही को और अधिक प्रोत्साहन देने को कहा गया था।

इस बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने जेनेवा में संवाददाताओं से कहा कि वह लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं श्रीलंका में व्यापक राष्ट्रीय प्रक्रिया के जरिए जवाबदेही सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है। इससे देश में सामंजस्य स्थापित किया जा सकेगा। मून ने कहा कि श्रीलंकाई सरकार के लिए जरूरी है कि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ रचनात्मक तरीके से काम करे। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने श्रीलंका में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता जताई है।

श्रीलंका पर यूएन में ही रुख साफ करेगा भारत

चेन्नई। मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में श्रीलंका के खिलाफ आने वाले अमेरिकी प्रस्ताव पर भारत जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेगा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में प्रस्ताव की भाषा देखने के बाद ही भारत इसके समर्थन या विरोध करने पर कोई फैसला लेगा।

केंद्रीय मंत्री वी नारायणसामी ने शनिवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि भारत पड़ोसी मुल्क श्रीलंका के हालातों पर करीबी नजर बनाए हुए हैं और तमिलों की सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठा रहा है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र में आने वाले प्रस्ताव पर भारत कोई जल्दबाजी में फैसला नहीं लेगा। उन्होंने कहा कि हम देखेंगे कि आयोग में श्रीलंका के खिलाफ किस तरह का प्रस्ताव आता है और किस तरह का प्रस्ताव पारित किया जाता है। लेकिन जिनेवा में प्रस्ताव पेश किए जाने के पहले राय जाहिर करना भारत के लिए उचित नहीं होगा।

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