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नेपाल के संविधान से बाहर होगी 'धर्मनिरपेक्षता'

लोगों के भारी दबाव के चलते नेपाल के नए संविधान से 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को हटाने पर राजनीतिक दलों के बीच सहमति बन गई है। एक दशक से ज्यादा समय के विद्रोह के बाद 2007 में यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी (यूसीपीएन-माओ) के मुख्यधारा की राजनीति में आने पर नेपाल को

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2015 09:31 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2015 09:42 PM (IST)
नेपाल के संविधान से बाहर होगी 'धर्मनिरपेक्षता'

काठमांडू। लोगों के भारी दबाव के चलते नेपाल के नए संविधान से 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को हटाने पर राजनीतिक दलों के बीच सहमति बन गई है। एक दशक से ज्यादा समय के विद्रोह के बाद 2007 में यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी (यूसीपीएन-माओ) के मुख्यधारा की राजनीति में आने पर नेपाल को 'धर्मनिरपेक्ष' राष्ट्र घोषित किया गया था। लेकिन अब यूसीपीएन-माओवादी भी इस शब्द को अलविदा कहने के लिए तैयार हो गई है।

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2007 के फैसले के बाद से नेपाल की सदियों पुरानी हिंदू राष्ट्र की पहचान में बदलाव हो गया था। नेपाल में 80 फीसद से ज्यादा हिंदू आबादी है। नए संविधान को लेकर लाखों लोगों के सुझाव के बाद यहां के राजनीतिक दलों पर इस फैसले को बदलने का दबाव था। नए संविधान पर लोगों की राय का अध्ययन कर रही संविधान सभा ने बताया कि ज्यादातर लोग 'धर्मनिरपेक्ष' के स्थान पर हिंदू या 'धार्मिक स्वतंत्र' लिखे जाने के पक्ष में हैं।

यूसीपीएन-माओ के प्रमुख पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने कहा, 'धर्मनिरपेक्ष शब्द सटीक नहीं है। इसने लाखों लोगों की भावनाओं को आहत किया है। हम इसे किसी अन्य शब्द से बदल रहे हैं। हमें निश्चित तौर पर लोगों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।' लोगों ने संविधान में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को सीधे जनता द्वारा चुने जाने का प्रावधान करने का सुझाव भी दिया है। प्रचंड की पार्टी के अलावा नेपाली कांग्रेस, द कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनिफाइड मा‌र्क्सवादी लेनिनवादी और मधेसी दलों ने भी 'धर्म निरपेक्ष' शब्द हटाने का समर्थन किया है।

'धर्म निरपेक्ष शब्द उचित नहीं है। लोग इससे खफा हैं। इसने लाखों लोगों की भावनाओं को आहत किया है। हम इसको किसी दूसरे शब्द से बदलेंगे। लोगों के फैसले का हमें सम्मान करना होगा।' -प्रचंड, माओवादी नेता


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