सिंधु जल संधि की वजह से नुकसान के लिए कश्मीरियों को मुआवजे की मांग
नेताओं का कहना है कि 1960 में हुई जल संधि औद्योगिक रूप से पिछड़े राज्य के लिए के लिए विशेष रूप से बनाई गई थी।
आईएएनएस, श्रीनगर। भारत पाकिस्तान सिंधु जल संधि के कारण राज्य से 25 हजार मेगावाट से अधिक की क्षमता का विशाल पनबिजली संयंत्र हटा लिया गया है। इस नुकसान के लिए जम्मू एवं कश्मीर के नेताओं ने मुआवजे की मांग की है।
नेताओं का कहना है कि 1960 में हुई जल संधि औद्योगिक रूप से पिछड़े राज्य के लिए के लिए विशेष रूप से बनाई गई थी। जम्मू-कश्मीर के आर्थिक हितों प्रोजेक्ट को जारी रखने की जरूरत है। जम्मू-कश्मीर के आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए इस फैसले की समीक्षा की जरूरत है।
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राज्य के शिक्षामंत्री और सरकार के प्रवक्ता नईम अख्तर ने बताया कि, संधि के समय राज्य के हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए था। अख्तर ने बताया कि, द्विपक्षीय समझौते पर विश्वबैंक से चर्चा के बाद भारत को व्यास, रावी और सतलुज नदियों पर नियंत्रण मिला।
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इस समझौते पर 18 सितंबर को हुए उड़ी हमले के बाद तब फोकस किया गया जब भारत पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था। इस हमले का आरोप उन आतंकियों पर था जो पाकिस्तान के फैक्टो बॉर्डर से भारत आये थे। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संधि पर इशारा करते हुए यह कहा कि, "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते''।
विपक्षी दल नेशनल कांफ्रेंस ने भारत के समझौते की संभावित समीक्षा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि, बीते 56 सालों में इस संधि के खिलाफ दिल्ली से कोई अंगुली नहीं उठाई गयी, लेकिन अभी यह सब राजनयिक हिसाब बराबर करने की वकालत की जा रही है न कि जम्मू कश्मीर के हितों के अधिकारों की रक्षा के लिए किया जा रहा है।
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नेशनल कांफ्रेंस के नेता जुनैद मट्टू ने कहा, अगर भाजपा बंदूकों से फैसला करना चाहती है तो वो अपने कंधों पर रखकर चलाए हमारे कंधों पर नहीं, नेशनल कांफ्रेंस हमेशा से इस स्टैंड पर रही है संधि की रॉ डील से राज्य को एक पर्याप्त मुआवजा मिल सके।
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि, 'जो कुछ भी केन्द्र सरकार का फैसला होगा वह देशहित में होगा और जम्मू कश्मीर भी इसमें शामिल है'।