Move to Jagran APP

SCS पर नाकाम चीन की भारत पर भड़ास- कहा, NPT से ऊपर कोई नहीं

ये सच है कि एनएसजी में सदस्यता के मामले में भारत को सियोल में कामयाबी नहीं मिली। लेकिन चीन नापाक चाल में कामयाब रहने के बाद भी बुरी तरह परेशान है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Fri, 22 Jul 2016 01:07 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jul 2016 10:48 PM (IST)
SCS पर नाकाम चीन की भारत पर भड़ास- कहा, NPT से ऊपर कोई नहीं

बीजिंग। दक्षिण चीन सागर पर मुंह की खाने के बाद चीन हताश हो चुका है। भारत को राष्ट्रीयता की नसीहत देने वाला चीन अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के एक बयान से काफी हैरान है। सुषमा स्वराज ने गुरुवार को संसद में कहा था कि एनएसजी में सदस्यता हासिल करने के लिए एनपीटी पर भारत हस्ताक्षर नहीं करेगा। भारत के लिए एनपीटी पर हस्ताक्षर करना बाध्यकारी नहीं है। एक तरफ जब विदेश मंत्री लोकसभा में बयान दे रही थीं,ठीक उसके कुछ देर बाद चीन की तरफ से एक प्रतिक्रिया सामने आयी जो चीन की बौखलाहट को साफ बयां कर रही थी।

loksabha election banner

एनएसजी में प्रवेश पाने के लिए परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने के भारत के बयान के बीच अपने रुख पर अड़े चीन ने कहा कि किसी भी देश को खुद को एनपीटी के खिलाफ नहीं रखना चाहिए, ना ही खुद को इसके खिलाफ रख सकता है। चीन ने कहा कि किसी भी देश को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय नीति और नियमों के खिलाफ एकतरफा फैसला कोई देश नहीं कर सकता। हालांकि चीन की तरफ से इस बयान के आने के बाद वो भूल गया कि साउथ चीन सागर के मुद्दे पर उसने हेग स्थिति अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले का उसने माखौल ही उड़ाया था। चीन ने साफ कर दिया था कि वो ऐसे किसी भी फैसले को स्वीकार नहीं करता है।

एनएसजी पर अड़ियल चीन को मनाने की होगी नए सिरे से कोशिश

चीन की आपत्ति

- किसी भी देश को ये अधिकार नहीं है कि वो नियम-कानून को ताख पर रखकर एनएसजी की सदस्यता हासिल करे।

- एनएसजी सदस्यों से जुड़े संगठन के नियमों को चीन ने नहीं बनाया था। लिहाजा भारत समेत किसी को ये अधिकार नहीं है कि वो चीन की आलोचना करे।

- दरअसल दो दिन पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि भारत किसी भी कीमत पर एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।

लोकसभा में विदेश मंत्री ने क्या कहा ?

सरकार ने बुधवार को एक बार फिर स्पष्ट किया कि भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर कभी हस्ताक्षर नहीं करेगा। हालांकि वह निरस्त्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही कहा कि एनएसजी सदस्यता में चीन ने प्रक्रिया का हवाला देकर रोड़े अटकाए। लेकिन उसे मनाने के प्रयास जारी हैं।

लोकसभा में सांसद सुप्रिया सुले, सौगत बोस के पूरक प्रश्न के उत्तर में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने सदन को यह भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि भारत की परमाणु आपूर्ति समूह (एनएसजी) में सदस्यता पर चीन ने प्रक्रियागत बाधा खड़ी की। उसने सवाल उठाया कि एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाला देश एनएसजी का सदस्य कैसे बन सकता है? हम इस मुद्दे पर चीन के मदभेद दूर करने के प्रयास कर रहे हैं।

भारत हमारा ख्याल रखे तो हम उसका ख्याल रखेंगे: चीन

स्वराज ने कहा, समूह ने 2008 में असैन्य परमाणु संबंधी जो छूट दी थी, उसमें एनपीटी का सदस्य बने बिना ही इसे आगे बढ़ाने की बात कही गई थी। उन्होंने कहा, हम एनपीटी पर कभी हस्ताक्षर नहीं करेंगे। हम इसके लिए पूर्व की सरकार को भी श्रेय देते हैं। 2008 के बाद से छह वर्ष इस प्रतिबद्धता को पूर्व की सरकार ने पूरा किया और इसके बाद वर्तमान सरकार इस प्रतिबद्धता को पूरा कर रही है। लेकिन निरस्त्रीकरण इसके लिए हमारी पूर्ण प्रतिबद्धता है। सुषमा ने कहा कि एनएसजी का सदस्य बने बिना संवेदनशील प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नहीं हो सकता।

चीन का क्या है कहना ?

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लु कांग ने कहा कि हमने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में गैर एनपीटी देशों को शामिल किए जाने पर बार-बार अपना रुख बताया है। लु ने लोकसभा में बुधवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के दिए बयान पर प्रतिक्रिया जाहिर की, जिन्होंने कहा था कि भारत एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।

NSG में भारत की दावेदारी का हंगरी ने किया समर्थन

लु ने कहा कि यह जिक्र करना लाजिमी है कि नए सदस्य बनाने के तरीके के लिए चीन नियम नहीं बनाता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने काफी समय पहले ही यह आमराय बना लिया था कि एनपीटी अंतरराष्ट्रीय अप्रसार व्यवस्था की एनपीटी बुनियाद है। किसी देश को खुद को एनपीटी के खिलाफ नहीं रखना चाहिए या, वह खुद को इसके खिलाफ नहीं रख सकता।' लु की टिप्पणी में कहा गया कि एनपीटी पर चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है और इसलिए एनएसजी में शामिल होने की इच्छा रखने वाले नए सदस्यों को इस पर हस्ताक्षर करना होगा।

सियोल में क्या हुआ था ?

पिछले महीने दक्षिण कोरिया में हुई एनएसजी की बैठक में भारत की सदस्यता की अर्जी स्वीकार करने के खिलाफ फैसला लिया गया था। दरअसल, चीन और कुछ अन्य देशों ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देश के प्रवेश का विरोध किया था। सियोल में भारत को कामयाबी नहीं मिली लेकिन चीन इस कदर बौखला गया था कि उसने अपने मुख्य वार्ताकार वांग को उनके पद से हटा दिया था। दरअसल वांग ने चीनी प्रशासन को भरोसा दिया था कि 48 सदस्यों वाले एनएसजी संगठन के कम के कम एक तिहाई सदस्य भारत की दावेदारी का विरोध करेंगे। लेकिन नतीजा ये रहा कि चीन के समर्थन में महज पांच देशों ने हामी भरी। अपनी नाकामी पर चीन इस कदर नाराज हुआ कि उसने राज्य संचालित ग्लोबल टाइम्स के जरिए भारत को नैतिकता की पाठ पढ़ा दी।

भारत दक्षिण चीन सागर पर किसी के समर्थन या विरोध में नहीं

चीन क्यों है खफा ?

जानकारों का कहना है कि भारत के मुद्दे पर चीन का रवैया अड़ियल ही रहेगा। चीन कभी ये नहीं चाहेगा कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में उसका कोई मजबूत विकल्प उभरे। अमेरिका से भारत की बढ़ती नजदीकी से भी चीन परेशान है। चीन को ये लगता है कि भविष्य में अगर अमेरिका, जापान, भारत और रूस एक दूसरे के करीब आते हैं तो चीन की आर्थिक रीढ़ टूट जाएगी। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में भारत के बढ़ते प्रभाव से भी चीन परेशान है। साउथ चीन के कुछ हिस्सों पर अवैध कब्जे की भी भारत से सधी आलोचना की थी। भारत ने साफ कर दिया था कि चीन को हेग स्थिति अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले का सम्मान करना चाहिए। गौरतलब है कि पंचाट ने चीन की दावेदारी को खारिज कर फिलीपींस के दावे को स्वीकार कर लिया था।

SCS पर चीन हताश, अमेरिका-जापान को बताया कायर और नपुंसक


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.