सिटीग्रुप चेयरमैन ने रची थी पंडित को हटाने की साजिश
प्रमुख ग्लोबल वित्तीय संस्थान सिटीगु्रप के दबंग सीईओ विक्रम पंडित को हटाने के लिए महीनों पहले योजना बनाई गई थी। इसके भारतीय मूल के सीईओ को शानदार प्रदर्शन के बावजूद साजिश का शिकार होना पड़ा। उनके खिलाफ यह जाल खुद सिटीगु्रप के चेयरमैन माइकल ओ-नील ने बुना था। इसकी वजह से ही पंडित को इस साल 15 अक्टूबर को अपना प
न्यूयॉर्क। प्रमुख ग्लोबल वित्तीय संस्थान सिटीगु्रप के दबंग सीईओ विक्रम पंडित को हटाने के लिए महीनों पहले योजना बनाई गई थी। इसके भारतीय मूल के सीईओ को शानदार प्रदर्शन के बावजूद साजिश का शिकार होना पड़ा। उनके खिलाफ यह जाल खुद सिटीगु्रप के चेयरमैन माइकल ओ-नील ने बुना था। इसकी वजह से ही पंडित को इस साल 15 अक्टूबर को अपना पद छोड़ना पड़ा।
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। पंडित वर्ष 2007 में भारी घाटे से जूझ रहे इस बैंक के सीईओ बने थे। इस महीने की पंद्रह तारीख को निदेशक मंडल की बैठक चल रही थी। इस दौरान ओ-नील ने अचानक ही विक्रम के सामने बड़ी रुखाई से कह दिया, बोर्ड को अब आप पर भरोसा नहीं रह गया है। इसके साथ ही उन्होंने पंडित को पद छोड़ने के विकल्प देते हुए तीन पर्चिया थमा दीं।
यह वास्तव में प्रेस रिलीज थीं। इनमें पहला विकल्प तत्काल प्रभाव से पद से इस्तीफा देने का था। दूसरे में इस साल के अंत तक पद छोड़ने की बात स्वीकारनी थी। आखिरी विकल्प में कहा गया था कि बोर्ड ने उन्हें बिना कोई कारण तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है। स्वाभिमानी पंडित ने तत्काल प्रभाव से त्यागपत्र देने का विकल्प चुना। इसके बाद लंबे समय से विक्रम की कुर्सी के लिए लालायित माइकल एल कोर्बट सीईओ बना दिए गए।
ओ-नील और पंडित के बीच बखेड़े के बीज उसी वक्त पड़ गए थे, जब माइकल इस साल अप्रैल में रिचर्ड पारसंस की जगह चेयरमैन बने थे। कई विश्लेषकों ने तभी ओ-नील की इस ताजपोशी को विक्रम के लिए खतरे की घटी करार दिया था। उनका कहना था कि बैंक कितना भी बेहतर प्रदर्शन करे, पंडित का पद पर बने रहना मुश्किल है। यह दीगर है कि शुरुआत में ऊपरी तौर पर सिटीग्रुप में सब कुछ ठीकठाक दिख रहा था। मगर अंदर ही अंदर ओ-नील और पंडित के बीच तनाव पनप रहा था।
माइकल ने पंडित की हर गलती को अपने फायदे के लिए बढ़ाचढ़ा कर पेश किया। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने पंडित की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसमें सिटी के शेयरों की पुनर्खरीद (बायबैक) की पेशकश के साथ ही शेयधारकों के लिए डिविडेंड बढ़ाने की बात कही गई थी। फेडरल रिजर्व से बैंक को लगे इस झटके को भी चेयरमैन ने विक्रम के खिलाफ बोर्ड सदस्यों के कान भरने के लिए इस्तेमाल किया। आमतौर पर अमेरिका में कंपनियों के कामकाज में चेयरमैन की सक्रिय भूमिका नहीं होती है। मगर ओ-नील ने सिटीगु्रप के प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी।
इस दखलंदाजी से पंडित के भीतर नाराजगी बढ़ने लगी। पूरी गर्मियों में माइकल निदेशक मंडल के सदस्यों को यह समझाने में लगे रहे कि कई कारोबारी मुद्दों को लेकर पंडित की सोच ठीक नहीं है। उन्होंने पहले से ही पंडित से असंतुष्ट सदस्यों को अपने पक्ष में कर लिया। इसके बाद उन्होंने आरोप लगाते हुए पंडित के समर्थक निदेशकों को भी उनके खिलाफ भड़काना शुरू किया। सदस्यों से व्यक्तिगत मुलाकात के दौरान वह उनसे कहते थे कि पंडित को हटाने के प्रस्ताव को 12 सदस्यीय बोर्ड में बहुमत का समर्थन है। माइकल तब तक इस काम में पूरी शिद्दत से जुटे रहे, जब तक कि सभी सदस्यों को अपने पक्ष में नहीं कर लिया। खास बात यह है कि जिस दिन पंडित को पद छोड़ना पड़ा, ठीक उसी दिन सुबह में उन्हें सिटी के बेहतर वित्तीय नतीजों के लिए बधाइयों वाले ईमेल का ताता लगा हुआ था।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर