धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने की राह पर बांग्लादेश
बांग्लादेश का आधिकारिक धर्म इस्लाम है, लेकिन सरकार इस दर्जे को हटाने पर विचार कर रही है।
नई दिल्ली। अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ने से चिंतित बांग्लादेश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने की राह पर चल पड़ा है। वहां इस्लाम का राजकीय धर्म का दर्जा वापस लिया जा सकता है। बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल पहले तत्कालीन सैन्य सरकार द्वारा इस्लाम को राजकीय धर्म बनाने के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी है।
इस्लामी आतंकवादियों के हाल के हमलों में कई बांग्लादेशी ब्लॉगरों तथा प्रमुख हस्तियों की मृत्यु हो चुकी है। हिंदुओं, ईसाइयों तथा शिया अल्पसंख्यकों और उनके धर्मस्थलों पर हमले बेतहाशा बढ़े हैं।
किया था संविधान में संशोधन
1988 में बांग्लादेश में तत्कालीन सैन्य सरकार ने संविधान में संशोधन करके इस्लाम को राजकीय धर्म घोषित किया था। उसी वर्ष देश के 15 प्रमुख लेखकों, पूर्व न्यायाधीशों, शिक्षाविदों तथा संस्कृतिकर्मियों ने इस फैसले के विरोध में याचिका दायर की थी।
हालांकि, इतने लंबे अर्से के दौरान अदालतों में सुनवाई नहीं हुई। हाल के महीनों में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने 29 फरवरी को उस याचिका पर अधिकृत तौर पर सुनवाई शुरू कर दी है।
संविधान में यह था
बांग्लादेश 1971 में जब अलग राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया तब संविधान में उसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का दर्जा दिया गया था। वहां इस समय 90 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिमों की है। आठ प्रतिशत हिंदू तथा दो प्रतिशत अल्पसंख्यक रहते हैं।
अमेरिकी खुफिया विभाग द्वारा बांग्लादेश सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि वहां आतंकी संगठन आईएस ने भर्ती शुरू करके अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। इसके बाद सरकार ने भी माना कि यह समस्या बाहर से नहीं, अंदर से ही पैदा हुुई है।
पहल का स्वागत
सुप्रीम कोर्ट की पहल का अल्पसंख्यकों व बुद्धिजीवियों ने स्वागत किया है। कैथोलिक बिशप क्रिश्चियन यूनिटी और इंटर-रिलीजियश डॉयलाग कमीशन के चेयरमैन बिशप बिजॉय एन. डिक्रूज ने कहा कि पुराने आदेश की पुनःसमीक्षा करने का निर्णय सराहनीय है, इससे धार्मिक अल्पसंख्यकों में नई उम्मीद जगी है। उन्होंने कहा कि इसलाम को राजधर्म बनाने के फैसले के दुष्प्रभावों के कारण ही अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं।
अदालत जल्द बदले फैसला
एक अन्य धार्मिक नेता तथा बांग्लादेश नेशनल हिंदू अलायंस के सचिव गोविंद चंद प्रमानिक ने कहा कि इस्लाम को राजकीय धर्म बनाने से अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का आधार तैयार हो गया, खास तौर पर हिंदुओं का। मुस्लिम लगातार अल्पसंख्यकों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे हैं, शोषण कर रहे हैं। अदालत को पुराने फैसले को जल्द बदलना होगा।