साइबर तकनीक का इस्तेमाल कर भारत में बैठे-बैठे अमेरिकियों के साथ ठगी
घोटाले के इस मामले में टेलीकॉलर पीडि़त अमेरिकी को फंसाता था और उसे बातों से उलझाकर उसके द्वारा की गई टैक्स चोरी की जानकारी लेता था
मुंबई, प्रेट्र । अमेरिकी लोगों से पांच सौ करोड़ रुपये से ज्यादा के ठगी मामले में काल सेंटर रैकेट ने प्रतिष्ठित लोगों की वेबसाइट से नाम और पते तलाशे। उनके अवैध कारोबार की संभावना का पता लगाया और उसके बाद उन्हें ठगने की रूपरेखा तैयार की।
पुलिस के साइबर सेल के विशेषज्ञों के अनुसार इंटरनेट पर आधारित कॉल कई फोनों पर समान रूप से की जा सकती है। तकनीक रूप से इसे ब्लास्टिंग के नाम से जाना जाता है। रैकेट ने पीडि़त व्यक्ति को धमकाने के लिए इसी तरह की कॉल की। इस कॉल से डरकर कुछ लोगों ने पलटकर कॉल की। ठगे गए लोगों ने समझा कि उनके पास अमेरिका के टैक्स डिपार्टमेंट से फोन आया। पता चला है कि गोरखधंधे का मास्टरमाइंड सागर ठक्कर उर्फ शैगी और उसके साथी इस तरह की ब्लास्टिंग अहमदाबाद से करते थे। ये कॉल डायरेक्ट इनवार्ड डायलिंग (डीआइडी) के माध्यम से की जाती थीं। इसमें एक ही सॉफ्टवेयर से दस लोगों को कॉल की जा सकती है। इसमें सेल फोन पर दिखाई देने वाला नंबर समान होता है।
घोटाले के इस मामले में टेलीकॉलर पीडि़त अमेरिकी को फंसाता था और उसे बातों से उलझाकर उसके द्वारा की गई टैक्स चोरी की जानकारी लेता था और उसे जेल भेजने का डर दिखाकर रिश्वत देने के लिए तैयार कर लेता था। इसके बाद वह अपनी कॉल आगे की बातचीत के लिए अपने बॉस (उच्चाधिकारी) को ट्रांसफर कर देता था। बॉस उसे स्पीकर ऑन करके बात करने के लिए कहता था और नजदीक के सुपर मार्केट में जाने के लिए कहता। सुपरमार्केट में बॉस गिफ्ट कार्ड खरीदकर उस पर अपना 16 डिजिट वाला अकाउंट नंबर लिखने और उसे बोलने के लिए कहता। इसके बाद भारत में उनकी बातचीत सुन रहा अन्य व्यक्ति 16 डिजिट वाला नंबर शैगी को भेज देता था। इसके बाद शैगी अपने अमेरिकी साथी से उक्त कार्ड पर धनराशि भरकर उसे प्राप्त करने के लिए कहता, जो बाद में उसे हवाला के जरिये मुंबई या अहमदाबाद में मिल जाती थी। इस तरह शैगी ने सैकड़ों करोड़ रुपये बनाए।
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