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एक बेटी की करुण गुहार- सीएम अंकल! मुझे अनाथ होने से बचा लीजिए...

एक छोटी-सी लड़की ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिट्ठी लिखकर गुहार लगाई है कि -सीएम अंकल, मेरे पिताजी को बचा लीजिए नहीं तो मैं और मेरे भाई अनाथ हो जाएंगे।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 11 Aug 2016 11:59 AM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2016 11:04 PM (IST)
एक बेटी की करुण गुहार- सीएम अंकल! मुझे अनाथ होने से बचा लीजिए...

रोहतास [ जेएनएन]। सीएम अंकल ! मेरे पिता को बचा लीजिए। नहीं तो मैं अनाथ हो जाउंगी। अगर वे मर गए तो हम बच्चों को कौन संभालेगा? मुझे और मेरे भाई को कौन पढ़ाएगा? हम बच्चों की जिंदगी तबाह हो जाएगी।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भेजकर यह फरियाद लगाई है संझौली ग्राम की छठी कक्षा में पढऩे वाली 11 वर्षीय दलित बच्ची निशा ने। दरअसल निशा के पिता जतन पासवान को उसके पड़ोसियों ने शौचालय बनाने को लेकर उपजे विवाद में चाकू मार गंभीर रूप से जख्मी कर दिया था।

जतन पीएमसीएच (पटना) में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। इस मारपीट के दौरान पड़ोसियों ने निशा के भी एक हाथ जख्मी कर दिया है।

सीएम को भेजे पत्र में निशा ने कहा है कि 31 जुलाई को शौचालय निर्माण को ले घटी घटना में उसके पिता के साथ मां शीला देवी के साथ ही वह भी जख्मी हो गई थी। घोर गरीबी में जी रहे पिता को ग्रामीणों ने करीब 30 हजार चंदा इकट्ठा कर इलाज के लिए वाराणसी भेजा था।

लेकिन निशा के पति जतन इतने जख्मी हैं कि इलाज में करीब ढाई लाख रुपये की जरूरत है। पैसों के अभाव में गांव के लोगों ने ही वाराणसी के अस्पताल से पटना पीएमसीएच में रेफर करा दिया है। घर में केवल वह और उसका नौ वर्षीय भाई राहुल है।

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निशा ने लिखा है -नीतीश अंकल ! पुलिस उन लोगों को भी नहीं पकड़ रही जिन्होंने मेरे पापा को मारा है। सुना है आप बड़े दयालु हैं। सबकी सुनते हैं। मुझ पर दया कीजिए, नहीं तो मेरे पापा मर जाएंगे। मैं और मेरा छोटा भाई दोनों अनाथ हो जाएंगे। साहबों से भी फरियाद की, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। निशा का पत्र तो यहीं समाप्त हो जाता है, लेकिन उसकी मासूमियत ने समाज के सामने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

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पुलिस की लापरवाही की भी बच्ची ने पोल खोल दी है। जतन पर शौचालय बनाने को लेकर पड़ोसियों ने ऐसा कहर बरपाया कि वह मौत से जंग लडऩे को विवश हो गया। 15 अगस्त तक संझौली प्रखंड को पूरी तरह निर्मल बनाने के अभियान ने इस दलित परिवार की जिंदगी को पूरी तरह अंधकार में धकेल दिया है। ग्रामीण किसी तरह चंदा इकट्ठा कर पैसा जुटा रहे हैं, लेकिन 10-20 रुपए के चंदे से जतन की जिंदगी की रोशनी नहीं लौट सकती...।


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