कलम के सरदार थे वृंदावन लाल वर्मा
इलाहाबाद : वृंदावन लाल वर्मा के उपन्यास उनकी ऐतिहासिक दृष्टि और उपन्यास कला का बेजोड़ नमूना हैं। 1927 में प्रकाशित गढ़ कुंडार से लेकर उनके सभी 13 उपन्यास हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण थाती हैं। यह बातें प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह ने हिंदुस्तानी एकेडमी की ओर से आयोजित एक संगोष्ठी में कहीं। संगोष्ठी का आयोजन वर्मा जी की पुण्यतिथि पर किया गया था।
इससे पूर्व कार्यक्रम का दीपजला कर और वर्मा जी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। विशिष्ट वक्ता प्रो. राम किशोर शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद अगर कलम के सिपाही थे तो वर्मा जी को कलम का सरदार कहना उचित होगा।
प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी ने कहा कि झांसी की रानी एक युगांतकारी और कालजयी रचना है। एकेडमी के सचिव बृजेश चंद्र ने आधार वक्तव्य रखते हुए कहा कि साहित्य जगत में वर्मा जी को इतिहासकार माना जाता है जो उनकी प्रतिभा और विषय में पैठ का उदाहरण है। एकेडमी के कोषाध्यक्ष रविनंदन सिंह ने कहा कि वर्मा जी की दृष्टि राष्ट्र के पुनर्निर्माण की दृष्टि थी। कवि सुरेंद्र कुमार नूतन ने इस अवसर पर अपने खंडकाव्य झलकारी बाई के अंश सुनाए। इस अवसर पर अनुपम आनंद, नंदल हितैषी, विवेक सत्यांशु, श्लेष गौतम, हीरा लाल, एहतराम इस्लाम समेत तमाम साहित्यकार व साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे।
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