अभियान को अंजाम देना चाहते हैं शनिचरवा
रांची : शनिचरवा उरांव की उम्र 47 को छू रही है। तिरिल गांव, जो अब बस्ती के नाम से ज्यादा जानी जाती है
रांची : शनिचरवा उरांव की उम्र 47 को छू रही है। तिरिल गांव, जो अब बस्ती के नाम से ज्यादा जानी जाती है, अखड़ा के पास उनका घर है। पढ़ाई के साथ ही, जब कोई सोलह-सत्रह की उम्र रही होगी, नशे के खिलाफ एकला चलते हुए टूट पड़े। न कारवां की फिक्र न समाज की। सालों नशे की बेड़ियों से जकड़े समाज-परिवार की मुक्ति का सपना ही आंखों में था। इस बीच नौकरी लगी। पर, अभियान मद्धिम नहीं हुआ। शनिचरवा बिजली विभाग में नौकरी करते हैं। नौकरी के साथ समाज की सेवा भी।
नशे की लत से वे वाकिफ हैं। नशे के दुष्प्रभाव से टूटते परिवार, बिलखते बचपन और ऐसे परिवारों में शिक्षा के प्रति उदासीनता को उन्होंने एकदम नजदीक से देखा था। इसलिए, उन्होंने इसके लिए कदम उठाया। नशा, नाश का जड़ है। इसे गांव-मुहल्ले के लोगों को भी समझाना था। इससे होने वाली हानि से भी अवगत कराना था। पहले वह अकेले थे, अब उनके साथ सौ महिलाएं जुड़ गई हैं। महिलाएं सबसे पीड़ित होती हैं। परिवार का मुखिया नशेड़ी निकल जाए तो परिवार को पालने का पूरा दारोमदार महिलाओं के सिर पर आ जाता है। इसलिए, इन महिलाओं ने अपने घर से शुरुआत की। संगठन बनाई और अब सब मिलकर गांव-समाज को सजग-जागरूक कर रही हैं। गीता गाड़ी, सानू उरांव और कमला उरांव शनिचरवा के साथ कदम से कदम मिलाकर नशे के खिलाफ अभियान को अंजाम तक पहुंचाने में जुटी हैं। गीता गाड़ी कहती हैं कि घर में विरोध से कुछ प्रभाव पड़ा है। समाज में भी। पहले लोग सूरज के उगते ही हड़िया से आचमन करते थे। अब बदलाव आया है। डर भी।
शनिचरवा कहते हैं कि हड़िया आदिवासी समाज का पवित्र पेय है, पर इसे नशा का एक औजार बना दिया गया। इस पवित्र चीज का व्यापार होने लगा। जबकि हमारे पुरखों ने इसकी व्यवस्था दूसरे कारणों से की थी। पूजा-पर्व में इसका प्रयोग प्रसाद के तौर करने का है। नशे के तौर पर नहीं। हम इसके विरोध में भी हैं। सानू कहती हैं कि अभी पिछले रविवार को अखड़ा में नशे के विरोध में काफी महिलाएं एकजुट हुई थीं। सभी ने संकल्प लिया कि इस क्षेत्र को नशा मुक्त बनाना है। उस बैठक में साफ-साफ कहा गया कि अब इस क्षेत्र में हड़िया, दारू के अलावा नशीली वस्तुएं नहीं बिकेंगी। अभी यह चेतावनी है। आगे नशे का व्यापार करने वाले नहीं सुधरे तो उनके साथ सख्ती की जाएगी। हालांकि अभियान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक कमेटी का भी गठन कर लिया गया, ताकि ठीक से अभियान चल सके।
शनिचरवा कहते हैं कि जो परिवार हड़िया बेच आजीविका चलता है, ऐसे परिवार को कुछ अलग विकल्प दिया जाएगा। महिला समितियों के माध्यम से कुटीर उद्योग के जरिए पापड़, मोमबत्ती, अगरबत्ती आदि का निर्माण कर रोजगार मुहैया कराया जाएगा।
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