94 साल पुराने जख्म हुए 'हरे'
धीरज कुमार झा, अमृतसर
94 साल पुराने जख्म 'हरे' हो गए हैं। हजारों देशवासियों के खून से रक्तरंजित धरती हरित हो गई है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड केमरून ने भले ही हिन्दुस्तानियों से माफी मांगते हुए जख्म भरने की भरपूर कोशिश की, लेकिन जलियांवाला बाग की पावन धरती पर यह जख्म अभी भी 'हरे' हैं। यहां आने वाले देशभक्तों को यह कुरेद रहे हैं। डायर समेत सैकड़ों ब्रिटिश सैनिक निहत्थों पर गोलियां बरसा रहे हैं, जबकि भारतीय इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए वीरगति को प्राप्त कर रहे हैं।
शहीदों की धरती कैसे ही पल भर में हो गई थी लाल, हरियाली चीख-चीख कर इसका कर रहा है इस्तकबाल। 13 अप्रैल 1919 की घटना को जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल कमेटी ने जीवंत बनाने के लिए अनूठी पहल की है। रक्तरंजित धरती पर हरित क्रांति के जरिये देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को 13 अप्रैल का घटनाक्रम समझाने की कोशिश की गई है। डायर ने जहां से गोलियां बरसाई थी, उस स्थान पर ट्री गार्ड में पौधे लगाए गए हैं। ट्री गार्ड को अंग्रेज सैनिक की शक्ल दी गई है। जलियांवाला बाग में सैकड़ों ऐसे सैनिक हरे रंग में नजर आएंगे।
शहीदी कुआं से लेकर शहीदी स्मारक तक जहां-जहां भारतीय गोलियों की परवाह किए बिना इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, वहां भी शहीदों को हरे रंग में पिरोया गया है। हाथ खड़े कर शहीद इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं। ट्री गार्ड को हाथ की शक्ल देकर उसमें पौधे लगाए गए हैं। 13 अप्रैल की घटना को जीवंत बनाने के लिए यूं तो लाइट एंड साउंड शो भी लोगों को भा रहा है, लेकिन खून से लथपथ धरती पर हरियाली की शपथ समाज के लिए एक प्रेरणा भी है। कड़ी मशक्कत के बाद ट्री गार्ड को शक्ल दी गई है। इसमें उसके मुताबिक ही पौधे लगाए गए हैं।
ठंडी छांव की बयार से कम होंगे दर्द के गुबार : मुखर्जी
जलियावांला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के सचिव एसके मुखर्जी कहते हैं कि 13 अप्रैल की घटना को जीवंत बनाने की कोशिश की गई है। इसके लिए हरियाली का सहारा लिया गया है। खून से सनी धरती पर ठंडी छांव की बयार दर्द के गुबार को भी कम करने में अहम भूमिका निभा रही है। पौधे जब बड़े होकर ट्री गार्ड की शक्ल में ढलेंगे तो कटिंग के बाद यह लोगों का और भी ध्यान खीचेगा।
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