मतदान महज औपचारिकता नहीं
मताधिकार को छोड़कर शायद ही ऐसा कोई ऐसा अधिकार हो जिसके लिए जागरूकता अभियान चलाना पड़ता हो। चुनाव के वक्त महज रस्म अदायगी के लिए वोट न डालें, प्रत्याशी को जांचे-परखें तब उसे अपना मत दें।
मताधिकार को छोड़कर शायद ही ऐसा कोई ऐसा अधिकार हो जिसके लिए जागरूकता अभियान चलाना पड़ता हो। चुनाव के वक्त महज रस्म अदायगी के लिए वोट न डालें, प्रत्याशी को जांचे-परखें तब उसे अपना मत दें।
ऐसे ही पाठक आलोक शर्मा की माने तो अधिकतर वोटर जाति-पांति के नाम पर वोट देने की रस्म अदायगी करते हैं। उन्हें इस चीज से कोई मतलब नहीं होता कि जिसे वह चुने रहे हैं वह कैसा व्यक्ति है। राजनीति और विकास के नारे का संबंध पुराना और परंपरागत है। यह बात अलग है कि इस नारे के साथ राजनीति तो आगे बढ़ती गयी, लेकिन विकास पीछे ही छूट गया। क्षेत्र के विकास के सवाल पर अब जनता अचंभित नजर नहीं आती, लेकिन यह बात उसे जरूर हैरान कर रही है कि विकास के लिए उनके वोटों पर जीतकर सदन पहुंचे माननीय की ही उपेक्षा करते हैं। जागरण को आये कई और ई-मेल में लोगों का कहना है कि लोकतंत्र की बेहतरी के लिए चुनाव के दौरान नियम-कानूनों को और भी सख्त किया जाना चाहिए ताकि राजनीति में गलत लोगों का प्रवेश बिल्कुल न होने पाये और घोटाले दर घोटाले और भ्रष्टाचार में जनता की गाढ़ी कमाई को लुटने से बचाया जा सके। जरूरत इसकी है, समय-समय पर नेताओं की अर्जित संपत्ति, इसके स्रोतों की जांच की जाये। गुरसहायगंज के जिया वारिस लिखते हैं कि चुनाव के वक्त नेताओं के दाखिल हलफनामे के सत्यापन के बाद उनकी संपत्ति और उसके स्रोतों का ब्योरा जनता के सामने रखा जाना चाहिए। इससे चुनाव मैदान में खड़े नेता के सही चेहरे और चरित्र से जनता वाकिफ हो सकेगी।
त्रिलोक कुमार के अनुसार किसी प्रत्याशी को इसलिए वोट नहीं देना चाहिए कि उसकी फिजा है और वह जीत रहा है। हमें अपने वोट की कीमत समझनी होगी। मताधिकार का प्रयोग करते हुए ऐसे प्रत्याशी को चुनना होगा जो कि सच्चा हो और क्षेत्र के लिए कुछ करे न कि खुद के लिए।
डॉ. साजिद अली के मुताबिक धर्म और जाति के बजाए देश हित को ध्यान में रखकर मतदान करना चाहिए। खासतौर से युवा वर्ग को अपने वोट का इस्तेमाल सोच समझकर करना चाहिए।
लखनऊ के गोमतीनगर के मनोज श्रीवास्तव आह्वान करते हैं कि देश का सम्मान इसी में हैं कि हम सही व्यक्ति को चुनें। वोट देकर हमें अपनी आजादी का अहसास करना चाहिए। कानपुर के संतोष कुमार के मुताबिक देश में रोज एक नई पार्टी बन रही है। जोड़-तोड़ की राजनीति ने देश का विनाश कर दिया है। उनका सुझाव है कि देश में दलों की संख्या सीमित कर देनी चाहिए। दर्जनों दलों की जगह एक मजबूत बड़ा दल बने जो देश को टिकाऊ सरकार दे सके।
शरद गुप्ता का मानना है कि चुनाव के दौरान मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। वो प्रत्याशियों की सच्चाई जनता तक पहुंचाए। ग्वालटोली कानपुर की डा. आरती मोहन लिखती हैं कि चुनाव जीतने के बाद भी नेताओं को इसी तरह जनता से मिलना चाहिए। [चुनाव डेस्क]
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