ना कोई विरासत, ना कोई गाड फादर
राहुल सक्सेना, बुलंदशहर। वाकई अगर हार में भी एक जीत मिले तो शायद आज उसे भुवनेश्वर के नाम से ही जाना जा सकता है। 04 ओवर, 0
राहुल सक्सेना, बुलंदशहर। वाकई अगर हार में भी एक जीत मिले तो शायद आज उसे भुवनेश्वर के नाम से ही जाना जा सकता है। 04 ओवर, 09 रन और तीन विकेट। इस शानदार गेंदबाजी विश्लेषण में बुलंदशहर का अपना योगदान है। अपने पहले ही अंतरराष्ट्रीय मैच में पाकिस्तान के खिलाफ तीन बार विकेट उखाड़ देने वाले 21 साल के भुवनेश्वर की तुलना क्रिकेट समीक्षक दुनिया के नामीगिरामी गेंदबाजों से कर रहे हैं, लेकिन जिले के लुहराली गांव के लिए तो वह अपना भुवी ही है।
मंगलवार रात भुवी की हर अपील पर पूरा लुहराली झूम रहा था। गांव के बेटे के शानदार प्रदर्शन पर बुधवार को भी ढोल-नगाड़े बजते रहे, मिठाइयां बंटती रहीं। लुहारली की अब दुनिया के क्रिकेट नक्शे पर अपनी हैसियत है। भुवनेश्वर कुमार उर्फ भुवी मूलत: इसी गांव के रहने वाले हैं। भुवी के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शानदार आगाज पर इस गांव की अपनी व्याख्याएं हैं। किसी को इस बात का मलाल है कि आखिरी ओवर भुवी ने क्यों नहीं फेंका, तो कोई इस बात से नाराज है कि भुवी को बल्लेबाजी क्रम में इतने पीछे क्यों रखा गया। लेकिन इस मलाल में भी पूरे गांव की खुशी छुपाए नहीं छुपती। भुवी के पड़ोसी डॉ. यतेंद्र, डॉ. अनिल कहते हैं कि पढ़ाई में ध्यान न देने पर उसे अक्सर डांट पड़ती थी, लेकिन उसने कुछ अलग ठानी थी और अपना सपना सच कर दिखाया। गुलावठी के गांव सधानपुर में भुवी की रिश्तेदारी है। वहां कुछ पूछने पर भूपेंद्र नागर, रामेंद्र, विनयपाल एक साथ बोल पड़ते हैं। कोई भुवी की स्विंग के बारे में बताने लगता है तो कोई उनके एक्शन का मुरीद है। सारांश बस इतना है कि भुवी के पास क्रिकेट की कोई विरासत नहीं थी। सुविधाएं भी ऐसी कुछ खास नहीं, कोई गॉड फादर भी नहीं। फिर भी भुवी अपनी लगन से आज ऐसी जगह पहुंच गया है, जहां बिना किसी हिचक के टीम इंडिया के कप्तान उसे नई गेंद सौंपते हैं और भुवी अपने कप्तान ही नहीं पूरे देश की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं। वर्तमान में भुवी का परिवार मेरठ के गंगानगर में रहता है। भुवी के पिता उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा हैं और वर्तमान में बागपत में तैनात है।
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