आज है खेल जगत का बेहद खास दिन, ये हैं वो यादें जो भारत कभी नहीं भूल पाएगा
आज की तारीख (23 जून) खेल जगत के इस सबसे बड़े मंच को समर्पित है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। क्रिकेट के दीवाने अपने देश में हर चार साल में एक बार हम अन्य खेलों को लेकर भी एक्टिव हो जाते हैं। सफलता हासिल होने पर सब सोशल मीडिया पर 'गर्व महसूस करने वाले' स्टेटस डालते हैं और फिर चार साल के लिए जोश ठंडा हो जाता है। हर चार साल में ये मौका 'ओलंपिक' के रूप में आता है। आज की तारीख (23 जून) खेल जगत के इस सबसे बड़े मंच को समर्पित है। आज है अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस।
- कैसा रहा अब तक का सफर
1896 में 42 खेल स्पर्धाओं व 14 देशों के साथ शुरू हुआ ओलंपिक 2016 आते-आते 306 खेल स्पर्धाओं व 207 देशों की भागीदारी वाला विशाल मंच बन गया। भारत ने पहली बार वर्ष 1900 में पेरिस में ओलंपिक में भाग लिया। ओलंपिक में भारत की ओर पहले एथलीट नार्मन प्रिचार्ड (मूल रूप से ब्रिटिश) थे। नार्मन प्रिचार्ड ने 200 मीटर की दौड़ और 200 मीटर की बाधा दौड़ में भारत को रजत पदक दिलाया। अब तक भारत ने ओलंपिक में 28 मेडल जीते हैं| फील्ड हॉकी में भारत को सबसे अधिक 11 मेडल मिले हैं। इसके अलावा शूटिंग में 4 ,एथलेटिक्स में 2 , रेसलिंग में 5 , बैडमिंटन में 2 , बॉक्सिंग में 2 , टेनिस में 2, वेटलिफ्टिंग में 1 पदक जीता है।
- राष्ट्रीय खेल में दबदबे का दौर
भारत के ओलंपिक सफर की चर्चा हो और इसमें हॉकी का जिक्र न हो, ये भला कैसे हो सकता है। भारत ने ओलंपिक के हॉकी इतिहास में सबसे ज्यादा 8 गोल्ड मेडल जीते। ये वो सुनहरा दौर था जब भारतीय हॉकी टीम से दुनिया की हर टीम कांपा करती थी। टीम ने मेजर ध्यानचंद जैसे एक ऐसे महान खिलाड़ी की मौजूदगी देखी जिसने अपनी जादूगरी से एडॉल्फ हिटलर जैसे कठोर तानाशाह को भी 1936 के बर्लिन ओलंपिक के दौरान खुद से मुखातिब होने के लिए मजबूर कर दिया था। ये अलग बात है कि आज जिस ध्यानचंद के जन्मदिन को देश खेल दिवस के रूप में मनाता है, राष्ट्रीय खेल के उसी महारथी को अपनी मृत्यु के सालों बाद आज भी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के लिए तरसना पड़ रहा है।
- वो 'स्वर्णिम' सफलता
भारत वर्ष 1900 से खेलों के इस महाआयोजन में हिस्सा ले रहा है लेकिन उसको आज तक व्यक्तिगत सफलताओं में सिर्फ एक बार शीर्ष स्थान पर खड़ा होने का मौका मिला। ये मौका आया 2008 में जब बीजिंग (चीन) में भारतीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर रायफल ने सबसे सटीक निशाना साधते हुुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। ये पहला मौका था जब किसी व्यक्तिगत खेल स्पर्धा में भारत ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। उसके बाद से अब तक हम दोबारा कभी उस सफलता को किसी भी खेल में दोहरा नहीं पाए हैं।
- खेल परियों की उड़ान
भारतीय ओलंपिक इतिहास में महिला खिलाड़ियों की कोशिश शुरू तो काफी पहले हो गई थी लेकिन उनको पहली सफलता 2000 के सिडनी खेलों में हाथ लगी जब वेटलिफ्टिंग (69 किलोग्राम) में भारत की कर्नम मलेश्वरी ने देश के लिए कांस्य पदक जीता। इसके बाद वेटलिफ्टिंग में न सही लेकिन 2012 के लंदन ओलंपिक में बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल (कांस्य पदक) और मुक्केबाजी में मैरी कॉम (कांस्य पदक) ने सफलताएं हासिल करके भारतीय फैंस को गौरवान्वित महसूस कराया। जबकि 2016 के रियो ओलंपिक में पहलवान साक्षी मलिक (फ्रीस्टाइल 58 किलोग्राम में कांस्य पदक) और बैडमिंटन में पीवी सिंधू (रजत पदक) ने यादगार सफलताएं हासिल करके आगे की उम्मीदों को हौसला दे दिया।
- कुश्ती, टेनिस और निशानेबाजी में बड़ी ताकत
ओलंपिक में भारत धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ाता चला। बेशक एथलीटों की संख्या और विशाल देश को देखते हुए हमारी सफलताएं बहुत कम रही हैं लेकिन कुछ खेलों में भारत ने अपनी ताकत का अहसास दुनिया को जरूर कराया है। इसमें कुश्ती, टेनिस और निशानेबाजी शीर्ष पर हैं। हॉकी की ढलान के बाद इन खेलों में उम्मीदों की एक नई लहर देखने को मिली। साल 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में खाशाबा जाधव के कांस्य पदक के बाद सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त जैसे पहलवानों ने जहां कुश्ती में देश का नाम रोशन किया वहीं निशानेबाजी में राज्यवर्धन सिंह राठौर के बाद से अभिनव बिंद्रा, विनय कुमार और गगन नारंग जैसे निशानेबाजों ने उम्मीदों को बोझ अपने कंधों पर रखा। टेनिस में 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस (मेंस सिंगल्स में कांस्य पदक) के बाद से भारत को कोई सफलता तो हाथ नहीं लगी लेकिन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में भारतीय खिलाड़ियों के दम ने कहीं न कहीं फैंस के चेहरे पर आशाओं की झलक को जरूर जन्म दिया है।
अगला ओलंपिक साल 2020 में जापान के टोक्यो शहर में होगा, जिसके लिए अभी से भारतीय सरकार और खिलाड़ियों ने कमर कस ली है। उम्मीद है कि आने वाले ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर भारत की झोली मेडल से भर देंगे।
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