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सीएम तक पहुंचा विंध्यवासिनी मंदिर अधिग्रहण मामला

काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर विंध्यधाम मंदिर ट्रस्ट बनाने का प्रस्ताव शासन स्तर पर अंतिम दौर में है। उत्तर प्रदेश के धर्मार्थ कार्यमंत्री आनंद सिंह ने जिला प्रशासन की रिपोर्ट पर अपनी सहमति जता दी है। अब फाइल पर सिर्फ मुख्यमंत्री की मुहर लगनी बाकी है।

By Edited By: Published: Fri, 07 Jun 2013 12:04 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jun 2013 04:10 PM (IST)

मीरजापुर, [आनन्द स्वरूप चतुर्वेदी]। धर्माथ कार्यमंत्री आनन्द सिंह ने मंदिर के संबंध में डीएम द्वारा चालीस बिंदुओं पर शासन को भेजी गई रिपोर्ट पर मुहर लगाते हुए फाइल मुख्यमंत्री तक पहुंचा दी है। प्रशासन का कहना है कि इस पर अब मुख्यमंत्री की सहमति की जरूरत है। अगर मुख्यमंत्री ने अपनी मुहर लगा दी तो 61 साल से विंध्य पंडा समाज द्वारा संचालित मंदिर पंडों के हाथ से निकल जाएगा।

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मां विंध्यवासिनी मंदिर में हर वर्ष लगभग चालीस से पचास लाख भक्त दर्शन-पूजन को आते हैं। इस दौरान मंदिर की व्यवस्था का संचालन विंध्य पंडा समाज व विंध्य विकास परिषद करता है। इसमें विंध्य पंडा समाज का अध्यक्ष पंडा समाज व विंध्य विकास परिषद का अध्यक्ष डीएम होता है। दोनों नवरात्र सहित पूरे वर्ष में परिषद के खाते में लगभग दो करोड़ से अधिक की आमदनी होती है। इसी तरह पंडा समाज को 80-90 लाख की आमदनी होती है। इसमें पंडा समाज मंदिर के श्रृंगार व पूजन की व्यवस्था करता है जिसमें प्रतिदिन लगभग 15 हजार रुपया खर्च होता है। अगर मंदिर के ट्रस्ट की व्यवस्था व अधिग्रहण की कार्रवाई हो गई तो जहां विंध्याचल के दस हजार से अधिक परिवारों की रोजी-रोटी छिन जाएगी वहीं पंडा समाज की दशा खराब हो जाएगी।

डीएम द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर मंदिर का अधिग्रहण हो गया तो श्रद्धालुओं को सुविधा मिलने के साथ ही मंदिर का विकास होगा। प्रशासन की इस कार्रवाई को लेकर पंडा समाज आक्रोशित हो गया है। शासन-प्रशासन के खिलाफ धरना-प्रदर्शन के साथ हवन-पूजन व न्यायालय जाने की भी तैयारी शुरू है।

मां विंध्यवासिंनी मंदिर अनादि काल से है। यहां के रहने वाले पंडा पूजा-पाठ करते चले आ रहे हैं। 1952 में आपसी सहमति से विंध्य पंडा समाज का गठन हुआ। पंडा समाज स्थानीय प्रशासन के सहयोग से मतदान द्वारा अध्यक्ष, मंत्री, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष सहित मंदिर व्यवस्था प्रमुख व सदस्यों का चुनाव करता है। यही मंदिर की व्यवस्था का संचालन करते हैं। वहीं दूसरी ओर 1982 में विंध्य विकास परिषद का गठन हुआ। इसका अध्यक्ष डीएम, उपाध्यक्ष एसपी व सचिव सिटी मजिस्ट्रेट होता है। इसके खाते का संचालन अलग होता है। इसमें दानपात्र में चढ़ने वाला चढ़ावा [रुपया व आभूषण] जमा होता है। इससे परिषद मंदिर की बिजली, सफाई, कर्मचारियों के वेतन आदि की व्यवस्था करता है।

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मां विंध्यवासिनी मंदिर प्रमुख शक्तिपीठों में एक है। यहां लाखों भक्त दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।

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