अनोखी परम्परा! लाल मिर्च से अभिषेक
भगवान के प्रति आस्था और पूजा ककी परम्पराओं के बारे में आपने कई किस्स-कहानियां सुने होंगे। आज हम आपको एक खास तरह की पूजा के बारे में बताने जा रहे है जिसे जानकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। तमिलनाडु में वर्नामुत्तु मरियम्मन नाम का एक मंदिर है। इसमें सबसे अनोखी परम्परा
वेलुप्पुरम। भगवान के प्रति आस्था और पूजा ककी परम्पराओं के बारे में आपने कई किस्स-कहानियां सुने होंगे। आज हम आपको एक खास तरह की पूजा के बारे में बताने जा रहे है जिसे जानकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे। तमिलनाडु में वर्नामुत्तु मरियम्मन नाम का एक मंदिर है। इसमें सबसे अनोखी परम्परा है लाल मिर्च से अभिषेक।
अब आप सोच रहे होंगे कि लाल मिर्च से अभिषेक भला ये कैसी परम्परा है। इस परम्परा के बारे में जानने से पहले थोड़ा सा इस मन्दिर के बारे में जान लीजिए। वर्नामुत्तु मरियम्मन मंदिर तमिलनाडु के सबसे बडे जिले वेलुप्पुरम में विश्व प्रसिद्ध ऑरोविले इंटरनेशनल टाउनशिप (सिटी ऑफ डॉन) के पास एक गांव इद्यांचवाडी में स्थित है। यहां हर साल इन्ही दिनों में 8 दिनों तक चलने वाला त्योहार मनाया जाता है जिसमें लोगों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिये एक भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक शामिल होते है। इस त्योहार में रविवार का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसी दिन इस अनोखी 'चिली अभिषेक' परम्परा को निभाया जाता है।
इस परम्परा के लिए मंदिर की ट्रस्ट में शामिल तीन बड़े लोगों को पहले तो हाथ में पवित्र कंगन पहनाकर पूरे दिन का व्रत रखवाया जाता है। इसके बाद उनका मुंडन किया जाता है। मुंडन के बाद में देवताओं की तरह ही उन्हें भी पूजा स्थल पर बीच में बिठाया जाता है और बाद में मंदिर के पुजारी उन तीनों को भगवान मानकर 108 सामग्रियों से उनका अभिषेक करते हैं। इन सामग्रियों में कई तरह के तेल, इत्र, विभूति, कुचले हुये फल, चंदन, कुमकुम, हल्दी आदि के लेप के अलावा सबसे ज्यादा दिलचस्प था मिर्च का लेप।
पहले तो तीनों को मिर्च का ये लेप खिलाया जाता है, उसके बाद में ऊपर से लेकर नीचे तक इसी लेप से उनका अभिषेक किया जाता है। आखिर में उन्हें नीम के लेप से नहलाकर मंदिर के अंदर ले जाया जाता है।
इद्यांचवाडी गांव के लोगों के अनुसार अभिषेक की ये परम्परा पिछले 85 वर्षों से चली आ रही है। कहा जाता है कि 1930 में गांव के हरिश्रीनिवासन ने एक नीम के पेड़ से बाहर आते गोंद को देखा और इसे पी लिया। फिर, उसके सामने भगवान प्रकट हुए और वहां एक मंदिर का निर्माण करवाने को कहा। ग्रामीणों को किसी भी रोग से पीडि़त ना होना पड़े इसके लिये प्रार्थना के हिस्से के रूप में मिर्च से अभिषेक करने का आदेश दिया। हरिश्रीनिवासन के मरने के 19 साल पहले तक मिर्च से अभिषेक की ये परम्परा उन्हीं पर ही निभाई गयी।