दुष्कर्म के झूठे केस पर महिलाओं को मिले सजा : कोर्ट
अब समय आ गया है, जब अदालत को महिलाओं द्वारा दायर दुष्कर्म के झूठे मामलों में कड़ाई के साथ पेश आना चाहिए। ऐसी महिलाएं उत्पीड़क हैं न कि पीड़िता। इन्हें कानून की उचित धाराओं के तहत सजा मिलनी चाहिए।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अब समय आ गया है, जब अदालत को महिलाओं द्वारा दायर दुष्कर्म के झूठे मामलों में कड़ाई के साथ पेश आना चाहिए। ऐसी महिलाएं उत्पीड़क हैं न कि पीड़िता। इन्हें कानून की उचित धाराओं के तहत सजा मिलनी चाहिए।
द्वारका कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट ने दुष्कर्म से जुड़े़ मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यह सही है कि पीड़िता के लिए दुष्कर्म एक गहरी पीड़ा है, लेकिन इस समस्या के दूसरे पहलू पर भी हमें गौर करना चाहिए। दुष्कर्म के झूठे मामलों में फंसाए गए व्यक्ति को समाज का तिरस्कार व मानसिक वेदना का शिकार होना पड़ता है। इस मामले में आरोपी को कोर्ट ने बरी करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में आरोपियों को खोया सम्मान कोर्ट द्वारा उन्हें बरी किए जाने के बाद भी नहीं मिलता।
वर्ष 2011 में नजफगढ़ थाने में मामला दर्ज किया था। सौ नंबर डायल कर पीड़िता की ओर से दुष्कर्म की शिकायत की गई थी। पीड़िता ने पुलिस को वह जगह भी दिखाई, जहां उसके साथ कथित रूप से दुष्कर्म किया गया था। पीड़िता ने उस जगह पुलिस को कुछ टूटे हुए आभूषण भी दिखाए, जिन्हें उसने अपना बताया। पीड़िता ने पुलिस को बताया कि नौकरी की तलाश में उसने कुलजीत नामक शख्स को फोन लगाया था। इसके बाद नौकरी लगाने के नाम पर एक दिन उसे धोखे से बुलाकर सुनसान जगह ले जाया गया। जहां उसके साथ दुष्कर्म किया गया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि तमाम गवाहों व सबूतों के आधार पर यह साबित हो चुका है कि पीड़िता ने इस मामले में झूठी शिकायत की थी। ऐसा उसने किसी के कहने पर किया था। इस मामले में पीड़िता का इस्तेमाल अन्य शख्स ने मोहरे के तौर पर किया। कोर्ट ने कहा कि यह मामला इस बात का आदर्श उदाहरण है कि पुरुषों को दुष्कर्म के झूठे मामलों में फंसाकर लोग निजी विवादों को निपटाना चाहते हैं।
कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म के झूठे मामलों से अपराध का ग्राफ तीव्र गति से बढ़ रहा है। कोर्ट ने झूठी गवाही व झूठा मामला दर्ज कराने के लिए पीड़िता के खिलाफ मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की कोर्ट में शिकायत दर्ज करने का आदेश कोर्ट रीडर को दिया है।
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