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अपने ही हुए खून के प्यासे, जानें- क्यों जल रहा है सहारनपुर का शब्बीरपुर

सहारनपुर सुलग रहा है। भीमराव अंबेडकर प्रतिमा की स्थापना को लेकर जो बवाल हुआ उसकी तपिश में सामाजिक ताना बाना झुलस रहा है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 25 May 2017 11:33 AM (IST)Updated: Mon, 29 May 2017 04:42 PM (IST)
अपने ही हुए खून के प्यासे, जानें- क्यों जल रहा है सहारनपुर का शब्बीरपुर
अपने ही हुए खून के प्यासे, जानें- क्यों जल रहा है सहारनपुर का शब्बीरपुर

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । सहारनपुर के समरस माहौल पर किसी की नजर लग गई है। जातीय हिंसा की आग में आपसी रिश्ते झुलस चुके हैं। शब्बीरपुर में डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा का मुद्दा कुछ इस कदर गरमाया कि दो पक्ष एक दूसरे के आमने सामने आ गए। पिछले 14 अप्रैल से लेकर आज तक एक ऐसे माहौल का निर्माण हो चुका है जिसमें लोगों के चेहरे पर भय का भाव देखा जा सकता है। सहारनपुर में माहौल को सामान्य बनाने के लिए बड़े अधिकारी कैंप कर रहे हैं। गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्रा ने भरोसा दिलाया है कि अगले 48 घंटे में माहौल सामान्य हो जाएगा। 

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 अब तक क्या हुआ

सहारनपुर में हिंसा को रोकने में नाकाम रहे डीएम, एसएसपी को जहां निलंबित कर दिया गया है। वहीं सहारनपुर के कमिश्नर और डीआइजी को हटा दिया गया है। हालात को बेकाबू देखते हुए गृह सचिव मणिप्रसाद मिश्रा, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर आदित्य मिश्रा को विशेष विमान से भेजा गया था। अब तक इस संबंध में आठ मुकदमे दर्ज किए गए। बुधवार को मारे गए दलित आशीष के परिजनों को 15 लाख रुपये की मदद दी गई। इसके अलावा घायलों को 50-50 हजार की मदद का ऐलान किया गया। खुफिया विभाग के मुताबिक बाहरी जिलों के उपद्रवियों ने हिंसा फैलायी थी और उसकी जांच की जा रही है।  बसपा मुखिया मायावती के मंगलवार को यहां आने से पहले और उनके जाने के बाद शब्बीरपुर गांव और बड़गांव में हिंसा भड़क उठी थी। बुधवार को ठाकुर और दलित पक्षों ने एक दूसरे पर हमले किये थे। शब्बीरपुर गांव में नेताओं के प्रवेश और इंटरनेट सर्विस पर रोक लगा दी गई है। अब तक 25 लोगों की गिरफ्तारी की गई है।

जानकार की राय

Jagran.com से खास बातचीत में यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि पश्चिम यूपी में जातिगत संघर्ष का ये पहला मामला नहीं है। करीब 20 वर्ष पहले आगरा में जाट और जाटवों के बीच संघर्ष हुआ था। उन्होंने कहा कि आज जरुरत है कि सामान्य जनता और अपराधियों को अलग कर कार्रवाई हो। इसके अलावा गैंगेस्टर और रासूका जैसे प्रावधानों का इस्तेमाल किया जाना चाहिेए। प्रभावित इलाके में पुलिस को गहन कार्रवाई कर वैध और अवैध हथियारों को अपने कब्जे में लेना चाहिए। 

कब, क्यों और कैसी भड़की हिंसा

विवाद की शुरुआत 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के दिन से ही शुरू हो गई थी। ग्राम प्रधान की अगुवाई में ड़ा भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की जानी थी। लेकिन दूसरे पक्ष ने ये कहकर ऐतराज जताया कि प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई थी। ये मामला कुछ इस कदर बढ़ा कि 5 मई को महाराणा प्रताप की जयंती मनाने के लिए गाजियाबाद जा रहे युवकों को रोक कर लिया गया। जैसे ही युवकों को रोका गया बरसों से शांति और सौहार्द री मिसाल कायम करने वाला शब्बीरपुर सुलग उठा। तब प्रधान पक्ष के कुछ लोगों के घर फूंक दिए गए। पथराव और हिंसक संघर्ष में दूसरे पक्ष का एक युवक मारा गया।

भाजपा के लिए क्या हैं मायने

यूपी में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले भाजपा ने सहारनपुर से परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की थी। सहारनपुर से सर्वसमाज को जोड़ने की पहल का असर भी सर्वव्यापी हुआ और चारों दिशाओं से निकली यात्रा में इसका संदेश भी गया। लेकिन इस घटना के बाद भाजपा की परेशानी बढ़ गई है। सहारनपुर में पहली बार नगर निगम के चुनाव होने हैं। भीम सेना की सक्रियता के बावजूद मायावती के सहारनपुर दौरे ने माहौल को नई हवा दे दी। आम तौर पर मायावती किसी भी बड़ी घटना के बाद मौके पर नहीं जाती रही हैं। प्रशासनिक समीक्षकों का भी कहना है कि जमीनी स्तर पर अधिकारियों से चूक हुई है।

उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि बुधवार को जो हिंसा हुई उसके लिए मायावती पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। भाजपा के प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि ये मायावती का स्टंट है। वो सिर्फ और सिर्फ घड़ियाली आंसू बहा रही हैं। भाजपा की चिंता इस लिए भी है कि दलितों के बीच पिछले दो चुनावों में उसकी पैठ बढ़ी है। 2014 में लोकसभा में आरक्षित सभी 17 सीटों और 2017 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित 86 में से 76 सीटों पर पार्टी को विजय पताका फहराया था।

 मायावती के निशाने पर भाजपा 

शब्बीरपुर का दौरा करने के बाद मायावती ने जहां भीम सेना की कारगुजारियों पर मौन नहीं तोड़ा वहीं भाजपा और संघ को जमकर कोसा। उन्होंने कहा कि भाजपा का चेहरा बेनकाब हो चुका है। प्रदेश में भगवा ब्रिगेड को सांप्रदायिक और जातिवादी जुल्म-ज्यादती करने की छूट मिल गई है।

Jagran.com से खास बातचीत में यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि ऐसे हालात में किसी भी राजनीतिक दल के प्रवेश पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए। घटनास्थल पर राजनीतिक दलों की बयानबाजी से माहौल सुधरने की जगह और बिगड़ता है। 

सीएम ने क्या कहा

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार किसी खास वर्ग के लिए काम नहीं कर रही है। सबका साथ और सबका विकास ही उनका मूल मंत्र है। उन्होंने लोगों भड़काऊ बयानों पर ध्यान नहीं देने की अपील की।

देश के कुछ बड़े जातीय हिंसा

मियांपुर कांड

औरंगाबाद ज़िले के मियांपुर में 16 जून 2000 को 35 दलित लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में जुलाई 2013 में उच्च न्यायलय ने साक्ष्य के अभाव में 10 अभियुक्तों में से नौ को बरी कर दिया था। निचली अदालत ने इन सभी अभियुक्तों को आजीवन कारावास का सजा सुनाई थी।

सेनारी हत्याकांड

साल 1999 में बिहार में जातीय हिंसा की कई घटनाएं घटीं। सबसे बड़ी घटना जहानाबाद ज़िले के सेनारी की थी जहां पर अगड़ी जाति के 35 लोगों की हत्या कर दी गई। इससे पहले इसी साल इसी ज़िले के शंकरबिघा गांव में 23 और नारायणपुर में 11 दलितों की हत्या की गई।

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार

एक दिसम्बर 1997 को बिहार के जहानाबाद ज़िले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में कुख्यात रणवीर सेना ने 61 लोगों की हत्या कर दी. मारे गए लोगों में कई बच्चे और गर्भवती महिलाएं भी शामिल थीं। इस मामले के सभी 26 अभियुक्तों को बुधवार को उच्च न्यायलय ने साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया।


बथानी टोला

1996 में भोजपुर ज़िले के बथानी टोला गांव में दलित, मुस्लिम और पिछड़ी जाति के 22 लोगों की हत्या कर दी गई। बताया जाता है कि बारा गांव नरसंहार का बदला लेने के लिए इस घटना को अंजाम दिया गया। 2012 में पटना उच्च न्यायलय ने इस मामले के 23 अभियुक्तों को भी बरी कर दिया था।

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