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EU से क्यों बाहर आया ब्रिटेन, जानें- इतिहास और उसके पीछे का विवाद?

ब्रिटेन ने आखिरकार खुद को यूरोपीय संघ से अलग कर लिया जिसको लेकर लंबे समय से ब्रिटेन में दो गुट बने हुए थे। आपको बताते हैं यूरोपीय संघ और ब्रिटेन से उसके जुड़ने और अलग होने की कहानी

By Atul GuptaEdited By: Published: Fri, 24 Jun 2016 02:57 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2016 03:17 PM (IST)

नई दिल्ली, [अतुल गुप्ता]। बीते करीब दो साल से चर्चा का विषय बना और कभी हां कभी ना के बीच आखिरकार ब्रिटेन में जनमत संग्रह हुआ और ब्रिटेन की जनता ने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर करने के फैसले पर मुहर लगा दी। इससे पहले स्कॉटलैंड को ब्रिटेन से अलग करने को लेकर भी जनमत संग्रह हुआ था जिसमें स्कॉटलैंड ब्रिटेन से अलग-होते होते बच गया था लेकिन आवाज उठने लगी थी कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग होने को लेकर भी जनमत संग्रह होना चाहिए। आइए, आपको बताते हैं कि ये पूरा विवाद क्या है और क्या है यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन की कहानी? सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि यूरोपीय यूनियन क्या है और ये कैसे बना?

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क्या है यूरोपीय यूनियन और ये कैसे अस्तित्व में आया?

यूरोपियन यूनियन एक कस्टम्स यूनियन है जिसमें कानून है कि यूनियन के एरिया से बाहर के देशों से व्यापार के लिए कानून एक होगा। दरअसल दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप के देशों की स्थिति बहुत खराब हो गई। उनके गुलाम देश भी आज़ाद होने लगे और उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ने लगी। इसी बीच अमेरिका, रूस और कई देशों ने मौका पाकर अपना व्यापार बढाना शुरू कर दिया। व्यापार में खुद को पिछड़ता देख 1956 में 6 यूरोपियन देशों फ्रांस (जो उस समय का पश्चिम जर्मनी था), इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्सेम्बर्ग के बीच ट्रिटी और रोम पैक्ट साइन हुआ।

इस समझौते के अंतर्गत यूरोपियन इकोोनॉमिक कम्यूनिटी बनाई गई। इस कम्यूूनिटी का मतलब यूरोप के देशों के लिए ‘कॉमन मार्केट’ यानी एक दूसरे के साथ व्यापार के लिए एक ही बाजार बनाना था जिससे आपस में सामान खरीद-बेच में कोई दिक्कत नहीं हो।

यूनियन में शामिल होने को लेकर ब्रिटेन में पहले से थे मतभेद

उस समय ब्रिटेन यूरोपियन देशों को यूरोपियन यूनियन में एक साथ होते देखता रहा लेकिन उसने यूरोपीय संघ का सदस्य बनने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई लेकिन पांच साल के अन्दर ब्रिटेन को समझ में आ गया कि उसका यूरोपीय यूनियन के साथ शामिल होने से ही फायदा है। उस समय ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में थी। प्रधानमंत्री हेरॉल्ड मैकमिलन ने यूरोपीय संघ में ब्रिटेन को शामिल करने की कोशिशें शुरू कर दी लेकिन विपक्षी लेबर पार्टी उनके इस फैसले का विरोध करने लगी। हेरॉल्ड विपक्ष को मनाने में ही जुटे थे कि फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल्स द गॉल ने ब्रिटेन के प्रस्ताव को वीटो कर दिया और ब्रिटेन की यूरोपीय संघ में शामिल होने की उम्मीद पूरी तरह खत्म हो गई।

यूरोपीय यूनियन में शामिल होने के मुद्दे पर ही पहली बार ब्रिटेन में हुआ था जनमत संग्रह

इसके बाद साल 1973 में अगले कंजर्वेटिव पार्टी के प्रधानमंत्री एडवर्ड हीथ ने काफी प्रयासों के बाद ब्रिटेन की यूरोपियन यूनियन में शामिल करा दिया लेकिन 1974 में लेबर पार्टी सत्ता में आ गई और उसमें यूरोपीय यूनियन में रहने को लेकर दो गुट हो गए। एक गुट यूरोपीय यूनियन के साथ रहना चाहता था तो दूसरा यूनियन से बाहर निकलना चाहता था। इसी बात को लेकर पहली बार साल 1975 में ब्रिटेन के इतिहास में पहली बार किसी मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया गया। इस जनमत संग्रह में जनता ने यूरोपीय यूनियन के साथ रहने को लेकर वोट दिया। लेकिन 1980 में लेबर पार्टी के कुछ नेताओं ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के नाम से नई पार्टी बना ली और विरोध करते रहे.

दूसरी तरफ यूरोपियन इकोनॉमिक कम्यूूनिटी भी बदली। पहले यूरोपियन कम्यूूनिटी और फिर यूरोपियन यूनियन बन गया और 6 देशों के सहयोग से बने इस संघ के आज 28 देश सदस्य हैं। रूस से अलग हुए यूक्रेन और इस्लामी देश टर्की भी यूरोपीय यूनियन में शामिल होने की कोशिश कर रही हैं।

कैसे काम करता है यूरोपीय यूनियन?

यूरोपियन यूनियन में सारे सदस्य राज्यों की तरह हैं और यूनियन की एक संसद है जिसमें हर सदस्य देश से सदस्य हैं। यूरोपियन कमीशन भी है और इसमें राष्ट्रपति और एक कैबिनेट भी है और इसके बनाये कानून सारे सदस्य देशों पर लागू होते हैं।

यूरोपीय यूनियन में रहते हुए भी अलग रहा है ब्रिटेन

ब्रिटेन और आयरलैंड दोनों ऐसे देश हैं जो यूरोपियन यूनियन में रहते हुए भी इससे अलग हैं। यूनियन में 1992 में एक मास्ट्रिच समझौता पर हस्ताक्षर हुए जिसमें यूनियन की एक करेंसी बनाने का प्रस्ताव किया गया जिसे बाद में यूरो नाम दिया गया। इसके बाद एक ‘सेंसेजन समझौता भी हुआ जिसके मुताबिक साथी देशों के लिए बॉर्डर पर पेपरवर्क ख़त्म कर दिया गया लेकिन ब्रिटेन और आयरलैंड दोनों ही इस शर्त से परे रहे यानी इन दो देशों के लिए ये नियम लागू नहीं था।

ब्रिटेन में लेबर और कंजर्वेटिव पार्टी के बीच मतभेद

यूरोपीयन यूनियन को लेकर लेबर और कंजर्वेटिव के बीच मामला बिगड़ता चला गया। लेबर पार्टी कामगारों का एजेंडा लेकर चलती है और इनको महसूस हुआ कि यूरोपियन इकोनॉमिक कम्यूूनिटी में रहने में ही भलाई है और इन्होंने संघ से बाहर होने का इरादा बदल दिया पर कंजर्वेटिव पार्टी का दांव उल्टा पड़ गया क्योंकि वो फ्री मार्केट तो चाहते थे पर राजनीतिक और कानूनी गठजोड़ नहीं। ब्रिटेन की आयरन-लेडी मार्गरेट थैचर कंजर्वेटिव पार्टी से पीएम थीं उन्होंने काफी कोशिश की कि इस मामले में बहुत ज्यादा कानून न बनें लेकिन उनकी पार्टी में भी दो गुट बन गए थे।

इस गुटबाजी के चलते 1990 में थैचर हार गईं यही नहीं इस गुटबाजी ने कंजर्वेटिव पार्टी को तीन चुनाव हरा दिए। जब कंजर्वेटिव पार्टी के डेविड कैमरून प्रधानमंत्री बने और उन्होंने हिदायत दिए कि लोग इस मामले पर उग्र ना हों और वो खुद इस मामले को देखेंगे।

ब्रिटेन को आखिर संघ में रहते हुए क्या है परेशानी?

1.कंजर्वेटिव पार्टी की मुख्य समस्या फ्री लेबर मूवमेंट से है क्योंकि यूनियन इकलौता बाजार है और किसी देश का इंसान किसी भी देश में काम कर सकता है।

2. संघ से बाद में जुड़े पूर्वी यूरोप के देशों से भी किसी भी सदस्य देश में लोग आ-जा सकते हैं। माना जाता है कि ये देश आर्थिक तौर पर दूसरे देशों के मुकाबले पिछड़े हुए हैं।

3. तीसरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि यूरोपियन यूनियन की सरकार जनता के चुनाव से नहीं आती बल्कि देशों के नेता ही किसी को वहां भेज देते हैं जोकि लोकतांत्रित व्यवस्था के खिलाफ है।

4.इसके अलावा मेम्बर रहने के लिए हर साल संघ को पैसे देने पड़ते हैं हालांकि सारे सदस्यों के पैसो को मिलकार भी ये पैसा यूरोपियन यूनियन के जीडीपी का 2.5 फीसदी ही है।

5. यूरोपीय यूनियन का कानून बहुत जटिल होता जा रहा है और इसमें लगभग 7000 नियम-कानून बन गए हैं।

6.इसके अलावा अभी सीरिया, ईराक से विस्थापन बड़ी संख्या में हो रहा है और इसके अलावा ग्रीस को भी पैसे देने पड़ रहे हैं।


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