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कमजोर होते ही सीबीआइ से हारे लालू

चारा घोटाले में रांची की विशेष अदालत का फैसला सीबीआइ की जीत कम और राजनीतिक रूप से कमजोर हो गए लालू प्रसाद की हार ज्यादा है। वरना सात साल पहले यही लालू यादव आय से अधिक संपत्ति के मामले में अदालत से मुस्कराते हुए बाहर निकले थे और हाईकोर्ट में अपील तो दूर सीबीआइ को मजबूरन सुप्रीम कोर्ट में उनके पक्ष खड़ा होना

By Edited By: Published: Tue, 01 Oct 2013 03:45 AM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2013 03:46 AM (IST)

नई दिल्ली [नीलू रंजन]। चारा घोटाले में रांची की विशेष अदालत का फैसला सीबीआइ की जीत कम और राजनीतिक रूप से कमजोर हो गए लालू प्रसाद की हार ज्यादा है। वरना सात साल पहले यही लालू यादव आय से अधिक संपत्तिके मामले में अदालत से मुस्कराते हुए बाहर निकले थे और हाईकोर्ट में अपील तो दूर सीबीआइ को मजबूरन सुप्रीम कोर्ट में उनके पक्ष खड़ा होना पड़ा था। उस समय राजद के 22 सांसदों की बदौलत संप्रग सरकार में लालू यादव की तूती बोलती थी।

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आय से अधिक संपत्ति के मामले में पटना की विशेष सीबीआइ अदालत के फैसले पर उस समय लालू यादव की राजनीतिक ताकत की छाप साफ तौर पर देखी जा सकती है। तमाम विवादों के बावजूद फैसले के पहले दो जजों को किनारे करते हुए मुन्नीलाल पासवान को लालू की केस सुनवाई कर रही विशेष अदालत का जज बनाया गया। उम्मीद के मुताबिक अपने एक पंक्ति के फैसले में उन्होंने लालू यादव एवं उनकी पत्नी राबड़ी देवी को निर्दोष करार दिया। वैसे सीबीआइ ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की कोशिश तो की, पर केंद्र सरकार ने उसे चुप करा दिया था। बाद में नीतीश सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान सीबीआइ लालू यादव के साथ पूरी ताकत से साथ खड़ी हो गई। वैसे 2006 की तरह लालू यादव ने इस बार भी बचने की हर संभव कोशिश की। लेकिन चार सांसदों के साथ राजनीतिक हाशिए पर पहुंचे लालू इस बार सफल नहीं हो सके। मुन्नीलाल पासवान को प्रोन्नति के फैसले से लेकर नीतीश सरकार की अपील तक पर लालू यादव के पक्ष में फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने इस बार जज बदलने की उनकी मांग खारिज कर दी। दागी सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता बनाए रखने के लिए कैबिनेट से पारित अध्यादेश उनके लिए उम्मीद की अंतिम किरण बन सकती थी। लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस पर भी पानी फेर दिया।

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