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हौसलों के पुल ने थामी जिंदगी की डोर

आपदा की इस घड़ी में जहां लोग सरकार का मुंह ताक रहे हैं, वहीं हरगांव के युवाओं ने श्रमदान कर एक मिसाल कायम की। इन युवाओं ने अपने हौसले के दम पर पांच हजार से ज्यादा ग्रामीणों को मौत के मुंह में जाने से बचाया। हर कोई इनके जज्बे को सलाम कर रहा है। विकास खंड कर्णप्रयाग के आदिबदरी क्षेत्र में

By Edited By: Published: Mon, 24 Jun 2013 08:18 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2013 08:21 AM (IST)
हौसलों के पुल ने थामी जिंदगी की डोर

गोपेश्वर(चमोली) [हरीश बिष्ट]। आपदा की इस घड़ी में जहां लोग सरकार का मुंह ताक रहे हैं, वहीं हरगांव के युवाओं ने श्रमदान कर एक मिसाल कायम की। इन युवाओं ने अपने हौसले के दम पर पांच हजार से ज्यादा ग्रामीणों को मौत के मुंह में जाने से बचाया। हर कोई इनके जज्बे को सलाम कर रहा है।

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विकास खंड कर्णप्रयाग के आदिबदरी क्षेत्र में छोटा सा गांव है हरगांव। 16 जून को आई भीषण आपदा से अलकनंदा की सहायक नदी आटागाड़ उफान पर आई तो क्षेत्र के 10 से अधिक गांवों को जोड़ने वाले तीन पुल बह गए। पुल बहने से 20 जून तक हरगांव, पज्याणा, तलसारी, मंडल, हरकोटी, नागणी, ढंकर, खाड़ी, मिरोली, मणिघाट सहित अन्य गांवों के लोग अपने घरों में कैद रहे। इन पांच दिनों में गांव में खाद्यान्न व अन्य जरूरी चीजें भी समाप्त हो गई थी।

लगातार हो रही बारिश से आटागाड़ का उफान थमने का नाम नहीं ले रहा था। लिहाजा इन गांवों के पांच हजार से अधिक लोगों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई थी। तब गांव के बुजुर्गो ने युवाओं को इस संकट से उबारने के लिए अस्थाई पुल निर्माण की प्रेरणा दी। युवाओं ने 21 जून को हरगांव के निकट शिवालय चौठंगी में अस्थाई पुल का निर्माण करने की ठानी। फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए सबसे पहले पुल निर्माण के लिए इन युवाओं को संसाधनों की कमी खली।

इसके लिए नदी में बही लकड़ियां, पाइप व गांवों के घरों में पड़ी लकड़ियां एकत्रित कर शिवालय चौठंगी में लाई गई। पुल का निर्माण करने के दौरान इनकी भूख-प्यास सब मिट गई थी। 22 जून को सुबह पुल निर्माण का कार्य शुरू किया गया। दिनभर काम करने के बाद शाम को युवाओं की मेहनत रंग लाई और आटागाड़ नदी पर 15 फीट लंबा पुल तैयार हो गया। इसके बाद गांव के कुछ लोग आदिबदरी बाजार आए और वहां से खाने-पीने की वस्तुएं गांव तक पहुंचाई। तब जाकर इन गांवों के लोगों ने राहत की सांस ली।

गांव के 54 वर्षीय बादर सिंह युवकों का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं कि अगर ये पुल का निर्माण न करते तो करीब पांच हजार लोग तिल-तिल कर मर जाते।

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