Move to Jagran APP

बड़ी ही दिलचस्प है कोहिनूर की कहानी, जानना चाहेंगे

कोहिनूर पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी जिसमें कहा गया कि कोर्ट इसे वापस लाने का आदेश नहीं दे सकता, लेकिन कोहिनूर की कहानी आप जानते हैं क्या?

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Sat, 22 Apr 2017 12:47 PM (IST)Updated: Sat, 22 Apr 2017 12:47 PM (IST)
बड़ी ही दिलचस्प है कोहिनूर की कहानी, जानना चाहेंगे
बड़ी ही दिलचस्प है कोहिनूर की कहानी, जानना चाहेंगे

नई दिल्ली, जेएनएन। 105 कैरेट के कोहिनूर हीरे को भारत लाने की कवायद कई साल से चल रही है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि हम ब्रिटेन को इसे वापस करने का आदेश नहीं दे सकते। 13वीं सदी में भारत में खोजा गया कोहिनूर इस वक्त ब्रिटेन के शाही परिवार के पास है। उन तक इसके
पहुंचने की कहानी भी दिलचस्प है।

loksabha election banner

कोहिनूर की खोज

माना जाता है कि 13वीं सदी में दक्षिण भारतीय हिंदू काकतीय वंश के दौर में इसे आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के हीरे के प्रसिद्ध कोलूर खान से खोजा गया था। उस वक्त इसका भार 793 कैरेट (158.6 ग्राम) था।


दिल्ली सल्तनत
खिलजी वंश के शासक अलाद्दीन खिलजी के जनरल मलिक काफूर ने 1310 में काकतीय वंश की राजधानी वारंगल पर हमलाकर लूटा। वहां से वह कोहिनूर को दिल्ली ले आया। दिल्ली सल्तनत के विभिन्न शासकों के बाद यह मुगल वंश के कब्जे में आया। हुमायूं के संस्मरण में इसका जिक्र मिलता है। पांचवें मुगल शासक शाहजहां के मयूर सिंहासन में यह जड़ा गया था। औरंगजेब के दौर में इसे काटा गया। उसके बाद इसका भार घटकर 186 कैरेट (37.2 ग्राम) रह गया।


नादिर शाह
1739 में फारस के शाह नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया। उसने कमजोर पड़ चुके मुगल साम्राज्य के खजाने को लूटा। उसे अन्य महत्वपूर्ण सामग्री के साथ मयूर सिंहासन में कोहिनूर मिला। वह इसे साथ ले गया और वहीं इसे कोहिनूर (माउंटेन ऑफ लाइट) नाम मिला।


महाराजा रणजीत सिंह
1747 में नादिर शाह की हत्या और उसके साम्राज्य के पतन के बाद उसके एक जनरल और अफगानिस्तान के अमीर अहमद शाह दुर्रानी के हाथ कोहिनूर लगा। उसका एक वंशज शुजा शाह दुर्रानी एक ब्रेसलेट में इसे धारण करता था। अपने दुश्मनों से घिरने के बाद शुजा शाह 1813 में लाहौर आया। वहां महाराज रणजीत सिंह से वह मिला। उनकी आवभगत के बदले में कोहिनूर उसने रणजीत सिंह को दे दिया।

अंग्रेजों का कब्जा
महाराजा रणजीत सिंह ने इसे जगन्नाथ पुरी को दान करने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन 1839 में उनकी मृत्यु होने के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनकी इच्छा पूरी नहीं की। मार्च, 1849 में द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध के बाद पंजाब रियासत को ब्रिटिश भारत में शामिल कर लिया गया। लाहौर संधि के तहत कोहिनूर को ब्रिटिश साम्राज्ञी महारानी विक्टोरिया के पास भेज दिया गया।1852 में महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट के आदेश पर इसे फिर काटा गया। उसके बाद यह 42 प्रतिशत हल्का होकर 105.6 कैरेट (21.12 ग्राम) का रह गया। आजादी के बाद से भारत और पाकिस्तान इस पर अपना दावा करते हुए इसे वापस मांगते रहे हैं। अफगानिस्तान भी इस पर अपना दावा करता रहा है। 

यह भी पढ़ें: कोहिनूर वापस लाने का आदेश नहीं दे सकता सुप्रीम कोर्ट

यह भी पढ़ें: ....तो इस विश्वासघात के कारण भारत के हाथ से फिसल गया कोहिनूर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.