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उत्तराखंड: जख्मों पर 'नमक' छिड़क रही सरकार

पहले आपदा ने कभी न भरने वाले जख्म दिए तो अब सिस्टम भी इस काम में पीछे नहीं। मरहम लगाने की बजाए सिस्टम जख्मों पर 'नमक' छिड़कने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। इससे ज्यादा दुखद और क्या होगा कि केदारनाथ में आई जलप्रलय में परिवार के नौ सदस्य खो देने के बावजूद बचे हुए सदस्यों को आपदा के तीन माह बाद भी सरकारों को मुआवजा राशि देने की सुध नहीं। राजस्थान का एक परिवार आपदा के बाद सिस्टम की यही मार झेल रहा है।

By Edited By: Published: Wed, 25 Sep 2013 09:49 AM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2013 09:51 AM (IST)

देहरादून [अमित ठाकुर]। पहले आपदा ने कभी न भरने वाले जख्म दिए तो अब सिस्टम भी इस काम में पीछे नहीं। मरहम लगाने की बजाए सिस्टम जख्मों पर 'नमक' छिड़कने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। इससे ज्यादा दुखद और क्या होगा कि केदारनाथ में आई जलप्रलय में परिवार के नौ सदस्य खो देने के बावजूद बचे हुए सदस्यों को आपदा के तीन माह बाद भी सरकारों को मुआवजा राशि देने की सुध नहीं। राजस्थान का एक परिवार आपदा के बाद सिस्टम की यही मार झेल रहा है।

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केदारनाथ में बीती 16-17 जून को आई जलप्रलय के बाद उत्तराखंड सरकार सहित तमाम प्रदेशों की सरकारों ने लापता लोगों के परिजनों को मुआवजा देने का ऐलान किया। लेकिन, सरकार के दावों को कसौटी पर परखा जाए तो पता चलता है कि ये केवल दावों तक ही सीमित हैं।

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राजस्थान के जयपुर निवासी एक परिवार ने जलप्रलय में अपने नौ सदस्यों को खो दिया था। तब कई दिनों तक यह लोग देहरादून व ऋषिकेश में अपनों की तलाश में खाक छानते रहे, लेकिन सफलता नहीं मिली। तब मिला तो सिर्फ मुआवजा राशि का आश्वासन। विडंबना देखिए कि तीन माह गुजरने के बाद भी न तो इस परिवार के लापता लोगों के बारे में कोई जानकारी मिली और न उसे राहत के नाम पर फूटी कौड़ी ही नसीब हुई।

जयपुर के जामडोली गांव निवासी यह परिवार डीएनए सैंपल देने के लिए मंगलवार को दून अस्पताल पहुंचा। इस आस में कि केदारनाथ क्षेत्र में जिन लोगों का अंतिम संस्कार हुआ, शायद उनमें से किसी का डीएनए मेल खा जाए तो लापता परिजनों के बारे में जानकारी मिल सके। इस दौरान अस्पताल में इस परिवार के कमलेश, शुभम व रामदास ने बताया कि 16-17 जून को उनकी मां प्रेम देवी, चाचा मुंशी लाल, चाची विमला देवी, भाई कृष्ण मुरारी, जगदीश सहित दोनों भाभी उर्मिला व कौशल्या और भतीजे संदीप व रोहित जलप्रलय में लापता हो गए। उनकी तलाश में कई दिनों तक देहरादून, ऋषिकेश समेत अन्य स्थानों पर आपदा राहत केंद्रों में तलाश की, मगर कुछ पता नहीं चला।

कमलेश के अनुसार उस वक्त उत्तराखंड व राजस्थान सरकार ने लापता लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख मुआवजा देने का आश्वासन दिया, मगर उन्हें आज तक कुछ नहीं मिला। जबकि, परिवार के बाकी सदस्यों की इतनी भी हैसियत नहीं की वह अपना गुजर-बसर ही ठीक से कर पाएं। कमलेश के मुताबिक चाचा व दोनों भाईयों की कमाई से ही परिवार चलता था, लेकिन अब उनके सामने संकट खड़ा हो गया है। देहरादून आने तक के लिए उन्होंने इधर-उधर से रुपयों का बंदोबस्त किया। अब इन लोगों के चेहरे पर यही सवाल है कि नियति आखिर और कितना जुल्म ढहाना चाहती है।तीन वर्षीय कान्हा को नहीं मालूम कि मां कहां है, लेकिन पिछले तीन माह से उसकी निगाहें मां को ही ढूंढ रही हैं। बूंदी [राजस्थान] निवासी कान्हा, उन अभागों में शामिल है जिन्हें केदारनाथ में आई जलप्रलय ने कभी न भूलने वाले जख्म दे डाले हैं। कान्हा की मां नेहा भी इसी जलप्रलय में लापता है।वह और उसके पिता नवनीत किसी प्रकार मौत के मुंह से बच निकले थे। मंगलवार को डीएनए सैंपल देने के लिए दून अस्पताल पहुंचे कान्हा से जब मां का जिक्र हुआ तो मासूम की निगाहें मां को तलाशने लगीं। मां के न दिखने पर उसकी आंखों से अश्रुधारा छलक पड़ी।

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