मिट्टी जांच व खाद के संतुलित प्रयोग का होने लगा असर
मिट्टी की सेहत जांचने की सरकार की योजना के सकारात्मक नतीजे सामने आने लगे हैं। खेती की लागत में कमी लाने और पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार ने दोहरी योजना बनाई।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कृषि क्षेत्र में सुधार के उपायों का असर खेतों से लेकर किसानों की जेब तक होने लगा है। खेती की लागत में कटौती करने की सरकार की मंशा सिरे चढ़ने लगी है। फसल की अधिक उपज लेने की चाहत में फर्टिलाइजर के अंधाधुंध प्रयोग पर अंकुश दिखना शुरु हो गया है। जबकि फर्टिलाइजर के संतुलित प्रयोग से उपज की पैदावार में बढ़त दर्ज की गई है।
मिट्टी की सेहत जांचने की सरकार की योजना के सकारात्मक नतीजे सामने आने लगे हैं। खेती की लागत में कमी लाने और पैदावार बढ़ाने के लिए सरकार ने दोहरी योजना बनाई। इसके तहत लागत घटाने के कई उपाय किये गये, जिसमें मिट्टी की जांच को उच्च प्राथमिकता दी गई। कुल 12 करोड़ किसानों को स्वायल हेल्थ कार्ड देने का लक्ष्य तय किया गया। दो वर्ष के भीतर अब तक नौ करोड़ लोगों को यह कार्ड वितरित भी कर दिया गया है।
मिट्टी की जांच होने के चलते बेहिसाब रासायनिक खादों के प्रयोग पर रोक लगी। खाद की खपत में 10 फीसद तक की कमी आई है। एक ओर जहां कम खाद का प्रयोग किया गया, वहीं इसके विपरीत 12 फीसद तक पैदावार में वृद्धि दर्ज की गई है। खेती की लागत घटाने में सफलता मिली है। संसदीय कंसलटेटिव कमेटी की बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने यह रिपोर्ट पेश की।
समिति के सदस्यों ने स्वायल हेल्थ कार्ड के बारे में विस्तार से जानकारी मांगते हुए इसके फौरी नतीजे बताने को कहा। सिंह ने स्वायल हेल्थ कार्ड से किसानों में आई जागरुकता के बारे में बताया। कृषि मंत्री ने किसानों की आय बढ़ाने के अन्य उपायों के संबंध में बताया कि खेती के साथ अन्य उद्यम पर जोर दिया जा रहा है। पशु पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन के साथ कृषि वानिकी जैसी योजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।
स्वायल हेल्थ कार्ड बनाने के मामले में 16 राज्यों ने पूर्ण लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। जबकि नौ राज्यों में इसी महीने के आखिर तक लक्ष्य पूरा हो जायेगा। लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब, असम, जम्मू-कश्मीर और मणिपुर जैसे सात राज्यों में स्वायल हेल्थ कार्ड बनाने की गति बहुत धीमी है।