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आइटी कंपनियों पर अमेरिकी वीजा प्रोग्राम के दुरुपयोग का आरोप

जेटली ने एच-1बी वीजा पर पाबंदियों के मसले पर अमेरिकी वित्त मंत्री स्टीवन न्यूचिन से बातचीत की और उन्हें अपनी चिंताओं से अवगत कराया।

By Mohit TanwarEdited By: Published: Sun, 23 Apr 2017 09:51 PM (IST)Updated: Sun, 23 Apr 2017 09:51 PM (IST)
आइटी कंपनियों पर अमेरिकी वीजा प्रोग्राम के दुरुपयोग का आरोप

नई दिल्ली, प्रेट्र। अमेरिका ने भारतीय आइटी कंपनियों टीसीएस, इन्फोसिस और कग्निजेंट पर नाजायज तरीके से ज्यादा से ज्यादा एच-1बी वीजा हासिल करने के लिए अतिरिक्त आवेदन लॉटरी सिस्टम में डालने का आरोप लगाया है। ट्रंप प्रशासन वीजा जारी करने की इस व्यवस्था को बदलकर योग्यता आधारित इमिग्रेशन पॉलिसी अपनाना चाहता है।

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पिछले सप्ताह व्हाइट हाउस में ट्रंप प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि कुछ बड़ी आउटसोर्सिग कंपनियां वीजा जारी करने की प्रणाली में ज्यादा आवेदन जमा करती हैं। इससे लॉटरी ड्रॉ में उन्हें ज्यादा वीजा मिलने की संभावना बढ़ जाती है। अमेरिकी प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आप इन कंपनियों के नाम जानते हैं। एच-1बी वीजा पाने वाली शीर्ष कंपनियों में टीसीएस, इन्फोसिस और कग्निजेंट जैसी कंपनियां शामिल हैं। ड्रॉ में ज्यादा आवेदन करने की वजह से ये कंपनियां ज्यादा अनुपात में वीजा पाने में सफल हो जाती हैं। यह जानकारी व्हाइट हाउस की वेबसाइट पर जारी किये गये ब्रीफिंग के ब्योरे से मिली है।

सिर्फ भारतीय कंपनियों पर सवाल उठाये जाने पर जवाब दिया गया कि ये तीनों वीजा पाने वाली शीर्ष कंपनियां हैं। तीनों कंपनियां एच-1बी वीजाधारकों को औसतन 60,000-65,000 डॉलर वार्षिक वेतन देती हैं। जबकि सिलिकॉन वेली में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों का औसत वेतन डेढ़ लाख डॉलर है।

अधिकारी के अनुसार ये कंपनियां एंट्री-लेवल के पदों पर कर्मचारियों की भर्ती के लिए ज्यादातर वीजा हासिल करती हैं। उधर, इन कंपनियों ने अमेरिकी प्रशासन के आरोपों पर कोई टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया। एच-1बी वीजा इस समय लॉटरी ड्रॉ के जरिये जारी किये जाते हैं। इनमें से 80 फीसद वीजाधारकों को अमेरिकी में प्रचलित औसत वेतन से कम वेतन दिया जाता है। सिर्फ पांच-छह फीसद वीजाधारकों को अमेरिकी श्रम विभाग द्वारा निर्धारित अधिकतम वेतन के बराबर भुगतान मिलता है। ज्यादातर वीजाधारकों को अमेरिकी कर्मचारियों से कम वेतन दिया जाता है। इसलिए अमेरिकी कर्मचारियों की जगह इनकी नियुक्ति की जाती है। यह वीजा प्रोग्राम के सिद्धांत के खिलाफ है। वीजा प्रोग्राम का मकसद कुशल पेशेवरों को अमेरिका में काम करने की अनुमति देना है।

वित्त मंत्री ने अमेरिका के समक्ष उठाया वीजा मुद्दा

वाशिंगटन। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एच-1बी वीजा पर पाबंदियों के मसले पर अमेरिकी वित्त मंत्री स्टीवन न्यूचिन से बातचीत की और उन्हें अपनी चिंताओं से अवगत कराया। भारत को आशंका है कि इन पाबंदियों से भारतीय आइटी प्रोफेशनल्स को अमेरिका जाकर काम करने में दिक्कतें हो सकती हैं। जेटली ने अमेरिकी वित्त मंत्री के साथ बातचीत में भारतीय कंपनियों और आइटी प्रोफेशनल्स के अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान पर जोर दिया।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वीजा प्रोग्राम का 'दुरुपयोग' रोकने के लिए प्रशासनिक आदेश जारी करके कड़े शर्ते लगाई हैं। अमेरिका का कहना है कि यह वीजा सिर्फ अत्यंत कुशल और उच्चतम वेतन पाने वाले पेशेवरों को ही दिया जाएगा। इस फैसले से भारतीय आइटी उद्योग पर बुरा असर पड़ने का अंदेशा है। वित्त मंत्री ने अमेरिकी वाणिज्य सचिव विलबर रॉस के साथ बातचीत में भी वीजा मुद्दा उठाया।

टीसीएस ने अमेरिका में11 हजार भर्तियां की

नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी आइटी कंपनी टीसीएस ने कहा है कि उसने वर्ष 2016-17 के दौरान अमेरिका के इंजीनियरिंग और बिजनेस कॉलेजों से 11,500 स्नातकों की भर्ती की है। कंपनी वीजा संबंधी चुनौतियां का सामना करने के लिए ऑफशोर मार्केट्स में स्थानीय स्तर पर ज्यादा भर्तियां कर रही है। वैसे कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान कुल 79,000 कर्मचारियों की भर्ती की।

नौकरी छोड़कर जाने वालों को समायोजित करने के बाद कंपनी ने 33,380 नए कर्मचारी जोड़े। इसके बाद उसके कर्मचारियों की कुल संख्या 3.87 लाख हो गई। आउटसोर्सिग कंपनियों के लिए ऑफशोर मार्केट्स में स्थानीय स्तर पर भर्तियां करने से ज्यादा लागत उठानी पड़ती है। लेकिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में वीजा संबंधी सख्त किये जाने के बाद भारतीय आइटी कंपनियां इन देशों में स्थानीय भर्तियां कर रही हैं।

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