दस्तखत हो न हों, फैसला लेते हैं मुख्यमंत्री ही
उत्तर प्रदेश में हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर हो न हों, लेकिन फैसला वह ही लेते हैं। यह बात राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में साफ कर दी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि सीएम कार्यालय आने वाली हर फाइल पर फैसला मुख्यमंत्री ही
माला दीक्षित, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर हो न हों, लेकिन फैसला वह ही लेते हैं। यह बात राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में साफ कर दी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि सीएम कार्यालय आने वाली हर फाइल पर फैसला मुख्यमंत्री ही लेते हैं। कुछ पर वह स्वयं हस्ताक्षर करते हैं और कुछ पर उनके अनुमोदन से अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं। सरकार ने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री ने फाइलों पर फैसला लेने की अपनी शक्तियां किसी को भी नहीं दी हैं। राज्य सरकार ने ये बातें सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने ताजा हलफनामे में कही हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुख्यमंत्री कार्यालय जाने वाली हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर की अनिवार्यता की मांग उठाने वाली याचिका विचार के लिए बड़ी पीठ को भेज दी थी। जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर सरकार से कहा था कि वह हलफनामा दाखिल कर बताए कि किन मामलों में मुख्यमंत्री हस्ताक्षर करते हैं और किन मामलों में नहीं करते हैं। कोर्ट ने सरकार से फाइलों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया पूछी थी। प्रदेश सरकार ने वकील रवि प्रकाश मेहरोत्र के जरिये दाखिल किए गए हलफनामें में फाइलों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया बताई है, जिसमें रूल आफ बिजनेस व संवैधानिक प्रावधानों का ब्योरा दिया गया है।
सरकार ने कहा है कि उत्तर प्रदेश रूल आफ बिजनेस 1975 के तहत मुख्यमंत्री कार्यालय आने वाली हर फाइल मुख्यमंत्री के सामने उनके आदेश के लिए पेश की जाती हैं। मुख्यमंत्री या तो स्वयं हस्ताक्षर करके अपने फैसले की जानकारी देते हैं या फिर उनके अनुमोदन पर मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात अधिकारी हस्ताक्षर करते हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय में ये परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि मुख्यमंत्री ने फाइलों पर निर्णय लेने की अपनी शक्तियां किसी को नहीं दी हैं। राज्य सरकार में कामकाज के संवैधानिक प्रावधानों के अलावा बिजनेस रूल का ब्योरा पेश करते हुए बताया है कि नीतिगत मसलों और प्रशासनिक महत्व के मामले निर्णय के लिए मुख्यमंत्री के समक्ष पेश किए जाते हैं। शांति व्यवस्था व नियुक्तियों संबंधी मामले भी मुख्यमंत्री के पास जाते हैं।
मुख्यमंत्री कार्यालय जाने वाली फाइलों के अलावा राज्य सरकार ने सभी तरह की फाइलों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया बताई है। जिसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सचिवालय निर्देश 1982 और सचिवालय मैनुअल के मुताबिक सभी फाइलें संबंधित खंडों के प्रशासनिक विभाग जाती हैं। कार्य बंटवारे के अनुसार फाइल सेक्सन अधिकारी से होती हुई अंडर सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी, ज्वाइंट सेक्रेटरी स्पेशल सेक्रेटरी, सेक्रेटरी, प्रिंसिपल सेक्रेटरी और उसके बाद संबंधित मंत्री या मुख्यमंत्री तक जाती है। वकील नूतन ठाकुर ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि मुख्यमंत्री कार्यालय जाने वाली हर फाइल पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर होने जरूरी हैं, जबकि ऐसा नहीं होता फाइलों पर मुख्यमंत्री की जगह अधिकारियों के हस्ताक्षर होते हैं जो कि गैर कानूनी हैं।
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