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अविवाहित मां को मिली कानूनी पहचान

सुप्रीमकोर्ट ने बच्चे पर मां के नैसर्गिक हक पर मुहर लगाते हुए अविवाहित मां को कानूनी पहचान दे दी है। कोर्ट ने अपने दूरगामी परिणाम वाले ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अविवाहित मां को बच्चे का संरक्षक बनने के लिए पिता से मंजूरी लेना जरूरी नहीं। इतना ही नहीं

By Sanjay BhardwajEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2015 11:17 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2015 02:26 AM (IST)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने बच्चे पर मां के नैसर्गिक हक पर मुहर लगाते हुए अविवाहित मां को कानूनी पहचान दे दी है। कोर्ट ने अपने दूरगामी परिणाम वाले ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि अविवाहित मां को बच्चे का संरक्षक बनने के लिए पिता से मंजूरी लेना जरूरी नहीं। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई अविवाहित या अकेली रह रही मां बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करती है तो सिर्फ एक हलफनामा देने पर उसे जन्म प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा।

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विभिन्न देशों के कानूनों का हवाला देते हुए सोमवार को जस्टिस विक्रमाजीत सेन और जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की खंडपीठ ने कहा, 'बेपरवाह पिता के अधिकारों से अधिक जरूरी नाबालिग संतान का कल्याण है। कोर्ट ने एक ऐसी ही बिन ब्याही मां को उसका हक और पहचान देते हुए निचली अदालत को आदेश दिया कि वह पिता को नोटिस भेजे बगैर बच्चे का संरक्षण मांगने वाली मां की अर्जी का शीघ्र निपटारा करे। खंडपीठ ने एक अविवाहित मां की याचिका स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है।

पिता को नोटिस अनिवार्य नहीं :
कोर्ट ने बच्चे का संरक्षण मांगते समय वार्ड एंड गार्जियनशिप कानून की धारा 11 में दूसरे पक्ष को नोटिस भेजने की अनिवार्यता के प्रावधानों पर लचीला रुख अपनाते हुए कहा है कि धारा तब जरूरी हो जाती है जब बच्चे का संरक्षण माता-पिता के अलावा किसी तीसरे पक्ष ने मांगा हो। लेकिन जैसा कि यहां है बगैर शादी के जन्मे बच्चे के मामले में मां ने संरक्षण मांगा है और पिता हमेशा विरक्त रहा है, ऐसे में पिता की राय महत्वपूर्ण नहीं रह जाती। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में मां के संरक्षण मांगने पर पिता को नोटिस भेजने की अनिवार्यता नहीं है।

मां की पहचान पर संदेह नहीं :
कोर्ट ने ऐसे बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने में आने वाली दिक्कतों पर विचार करते हुए कहा है कि अभी तक इस मां ने अपने पांच साल के बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र नहीं लिया है जो कि आगे चल कर बच्चे के लिए समस्या बनने वाला है। कोर्ट ने कहा कि स्कूल में बच्चे के एडमीशन और पासपोर्ट हासिल करने के लिए आवेदन करते समय पिता का नाम देना जरूरी नहीं रह गया है लेकिन इन दोनों ही मामलों में जन्म प्रमाणपत्र लगाना पड़ता है। कानून गतिशील होता है और उसे समय के साथ चलना चाहिए। मां की पहचान के बारे में कभी संदेह नहीं रहा।

जन्म पंजीकरण राज्य का काम :
कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब कभी भी एकल संरक्षक या अविवाहित मां अपने गर्भ से जन्मे बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए आवेदन करेगी तो जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ एक हलफनामा लेकर उसे जन्म प्रमाणपत्र जारी करेंगे। कोर्ट ने कहा है कि यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि कोई भी नागरिक इस कारण परेशानी न भुगते कि उसके माता-पिता ने उसके जन्म को रजिस्टर नहीं कराया। ये राज्य की जिम्मेदारी है कि वह प्रत्येक नागरिक के जन्म पंजीकरण के लिए कदम उठाए। कोर्ट ने साफ किया कि जन्म प्रमाणपत्र जारी करने के मामले वर्तमान केस में दर्ज परिस्थितियों तक ही सीमित नहीं होंगे।

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