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अाम बजट 2016- छोटे बैंकों को मिला कर बनेंगे महाबैंक

दो दिन पहले पेश आर्थिक सर्वे में भी यह बात थी, बजट से पहले तमाम आर्थिक थिंक टैंक ने भी कही थी और सोमवार को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इसे स्वीकार किया कि देश के सरकारी बैंकों की स्थिति बेहद नासाज है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 29 Feb 2016 07:33 PM (IST)Updated: Mon, 29 Feb 2016 11:24 PM (IST)
अाम बजट 2016- छोटे बैंकों को मिला कर बनेंगे महाबैंक

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दो दिन पहले पेश आर्थिक सर्वे में भी यह बात थी, बजट से पहले तमाम आर्थिक थिंक टैंक ने भी कही थी और सोमवार को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इसे स्वीकार किया कि देश के सरकारी बैंकों की स्थिति बेहद नासाज है। बहरहाल, हालात को स्वीकारते हुए जेटली ने स्थिति को संभालने का रोडमैप दिया है। रोडमैप साफ है कि अब जिस तरह से सरकारी बैंकों का काम काज चल रहा था वैसा नहीं चलेगा। छोटे व कमजोर सरकारी बैंकों को मिला कर बड़े व विशाल बैंक (महाबैंक) बनाने की तैयारी का मंशा बजट के बाद वित्त मंत्री ने प्रकट भी कर दी। हालांकि वह इन बैंकों में फंसे कर्जे की समस्या के समाधान के लिए कोई खास रोडमैप वित्त मंत्री नहीं दे सके।

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जेटली ने कहा कि, सार्वजनिक बैंकों को सुदृढ़ और प्रतिस्प‌र्द्धी बनना होगा। अगले वित्त वर्ष से बैंक बोर्ड ऑफ ब्यूरो भी काम करने लगेगा। ब्यूरो बैंकों को मजबूत करने के लिए भावी कार्य योजना तैयार करेगा। इसके साथ ही जेटली ने एक अहम संकेत यह दिए कि सरकारी बैंकों में सरकार अपनी हिस्सेदारी 50 फीसद से भी नीचे ले जाने को तैयार है। बताते चलें कि इस तरह का एक प्रस्ताव वर्ष 2001 में पूर्व राजग सरकार के समय भी तैयार किया गया था। तब सरकारी बैंकों में केंद्र की न्यूनतम हिस्सेदारी घटा कर 33 फीसद करने का प्रस्ताव आया था। इतनी कम इक्विटी रह कर भी सरकारी बैंकों का मौजूदा स्वरूप बरकरार रखा जा सकता है। इसके बाद यूपीए के कार्यकाल में भी इस पर विचार किया गया था लेकिन लागू करने के लिए जो राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए वह नहीं दिखाया जा सका था। अब मोदी सरकार ने इसकी घोषणा की है जो आगे चल कर एक अहम राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।

एनपीए पर चुप्पी

इसके बावजूद जेटली सरकारी बैंकों की सबसे बड़ी समस्या यानी फंसे कर्जे की समस्या का कोई उचित समाधान नहीं दे पाये हैं। बढ़ते फंसे कर्जे (एनपीए-नॉन परफॉरमिंग एसेट्स) की समस्या से बैंकों के पास फंड की काफी कमी हो गई है। अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार ने इन्हें 25 हजार करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव किया है लेकिन वित्त मंत्रालय जानता है कि यह उंट के मुंह में जीरा जैसा है। यही वजह है कि वक्त आने पर और फंड देने की बात भी वित्त मंत्री ने कही है। सरकार इन्हें अन्य स्त्रोतों से फंड जुटाने की भी छूट देगी। एनपीए को कम करने को लेकर उन्होंने कोई खास करामात नहीं दिखा सके ऋण वसूली प्राधिकरणों (डीआरटी) को और मजबूत बनाने का ऐलान किया है। वित्त मंत्री ने इन बैंकों को आश्वस्त किया कि सरकार इस चुनौतीपूर्ण समय में उनके साथ मजबूती से खड़ी है। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकारी बैंक देश की जरुरत हैं और इनसे पूरी तरह से बंद नहीं किया जा सकता।

मुद्रा का विस्तार

दरअसल, सरकार की कई समाजिक विकास से जुड़ी स्कीमों को चलाने के लिए सरकारी बैंकों की भूमिका अहम है। इस बजट में भी प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) का विस्तार करते हुए अगले वर्ष इसके तहत 1,80,000 करोड़ रुपये का कर्ज देने का लक्ष्य रखा गया है। चालू वित्त वर्ष के दौरान लगभग 2.5 करोड़ लोगों को इसके तहत एक लाख करोड़ रुपये की राशि बतौर कर्ज दी चुकी है ताकि वह अपना रोजगार शुरु कर सके।

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