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भू-अधिग्रहण पर सख्ती

भूमि अधिग्रहण विधेयक पर संसदीय समिति की सिफारिशो को मान लिया गया तो नए उद्योग लगाने और शहर बसाने के लिए इंच भर जमीन भी नही मिल पाएगी। संसदीय समिति ने किसी भी प्रकार की खेती योग्य भूमि, चाहे वह सिंचित हो या असिंचित, के अधिग्रहण पर पूरी तरह रोक लगाने का सिफारिश की है। साथ ही समिति ने निजी क्षेत्र के लिए सरकार की तरफ से होने वाले अधिग्रहण के प्रस्ताव को रद करने को कहा है।

By Edited By: Published: Fri, 18 May 2012 03:17 AM (IST)Updated: Fri, 18 May 2012 05:09 PM (IST)
भू-अधिग्रहण पर सख्ती

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर संसदीय समिति की सिफारिशों को मान लिया गया तो नए उद्योग लगाने और शहर बसाने के लिए इंच भर जमीन भी नहीं मिल पाएगी। संसदीय समिति ने किसी भी प्रकार की खेती योग्य भूमि, चाहे वह सिंचित हो या असिंचित, के अधिग्रहण पर पूरी तरह रोक लगाने का सिफारिश की है। साथ ही समिति ने निजी क्षेत्र के लिए सरकार की तरफ से होने वाले अधिग्रहण के प्रस्ताव को रद करने को कहा है।

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संसद में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुन‌र्व्यवस्थापन विधेयक-2011 पर स्थाई समिति ने अपनी सिफारिशें पेश की है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि संशोधित विधेयक को मानसून सत्र में पेश किया जाएगा।

समिति ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में ही सरकार के भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सवाल खड़ा करते हुए इसे गैर जरूरी करार दिया है। कहा गया है कि अमेरिका, इंग्लैंड, जापान और कनाडा जैसे तमाम विकसित देशों में सरकारें निजी क्षेत्र के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं करती है। फिर भारत 21वीं सदी में यह गलत प्रथा क्यों शुरू करने जा रहा है?

ग्रामीण विकास मंत्रालय के प्रस्तावित विधेयक में खाद्य सुरक्षा के नाम पर बहु फसली सिंचित भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाने की बात कही गई है। इस प्रावधान पर स्थायी समिति ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि खाद्य सुरक्षा सिर्फ गेहूं एवं चावल से नहीं होती है। देश में तिलहन और दलहन की भारी कमी है, जिसे आयात से पूरा करना पड़ता है। देश में दलहन व तिलहन फसलों की खेती असिंचित भूमि में होती है। ऐसे में खेती वाली किसी भी जमीन, चाहे वह सिंचित हो या असिंचित, के अधिग्रहण की अनुमति नहीं होनी चाहिए।

स्थायी समिति ने इस बात पर हैरानी जताई है कि जिन विशेष आर्थिक जोन [सेज] को लेकर भूमि अधिग्रहण कानून लाने का फैसला किया गया, उन्हें ही इसमें शामिल नहीं किया गया है। भूमि अधिग्रहण के लिए 16 तरह के केंद्रीय कानून हैं, जिन्हें प्रस्तावित विधेयक में शामिल किया जाना चाहिए।

विधेयक में लोक प्रयोजन की व्याख्या पर आपत्तिजताते हुए समिति ने इसे पुनर्भाषित करने की सिफारिश की है। विधेयक में बाजार मूल्य और मुआवजा फार्मूले के निर्धारण में भूमि गंवाने वाले लोगों को ग्रामीण क्षेत्र में चार गुना और शहरी क्षेत्र में दोगुना मुआवजे का प्रस्ताव किया गया है। समिति की सिफारिशों में कहा गया है कि पूरे देश में बाजार मूल्य, पंजीकृत मूल्य या सर्किल रेट भूमि के मौजूदा वास्तविक मूल्य से काफी कम हैं। स्टांप शुल्क से बचने के लिए न्यूनतम मूल्य पर खरीद दर्ज कराई जाती है।

प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक में पहले के निम्नलिखित 16 केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानूनों को शामिल नहीं किया गया है :

1-प्राचीन स्मारक, पुरातात्विक स्थल व अवशेष अधिनियम 1958

2-परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962

3-छावनी अधिनियम 2006

4-दामोदर घाटी निगम अधिनियम 1948

5-भारतीय ट्राम अधिनियम 1948

6-भूमि अर्जन खान अधिनियम 1885

7-भूमिगत रेल अधिनियम 1978

8-राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956

9-पेट्रोलियम और खनिज पाइप लाइन 1962

10-स्थावर संपत्तिअधिग्रहण और अर्जन अधिनियम 1952

11-विस्थापित व्यक्तियों का पुन‌र्व्यवस्थान अधिनियम 1948

12-विशेष आर्थिक जोन अधिनियम 2005

13-विद्युत अधिनियम 2003

14-कोयला धारक क्षेत्र अर्जन विकास अधिनियम 1957

15-रेल अधिनियम 1989

16-रक्षा संकर्म अधिनियम 1903।

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